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Sunday, May 9, 2021

महाराणा प्रताप जयंती विशेष : अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक राष्ट्र गौरव महाराणा प्रताप, पढ़िये 30 महत्वपूर्ण तथ्य

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अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक महाराणा की आज जयंती है। राष्ट्र गौरव महाराणा प्रताप की जयंती के मौके पर आज राजस्थान समेत देशभर में लोग गर्व से उनको याद कर रहे हैं। कोरोना काल होने के कारण हालांकि कहीं बड़े और सामूहिक आयोजन नहीं हुये हैं लेकिन आज दिनभर सोशल मीडिया में महाराणा प्रताप छाये रहे। सोशल मीडिया के जरिये में लाखों लोगों ने महाराणा प्रताप को नमन किया। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर तमाम राजनीतिक हस्तियों, राजपूत समेत अन्य संगठनों और आम आदमी ने श्रद्धापूर्वक महाराणा प्रताप को नमन किया।  


महाराणा प्रताप अधर्म के आगे कभी नहीं झुके

महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा किसी से छिपी हुई नहीं है। शौर्य एवं स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप की संघर्ष की गाथा बच्चे-बच्चे की जुबान है। मेवाड़ से लेकर जयपुर और अन्य स्थानों पर कई जगह ऑन लाइन वर्चुवल कार्यक्रम हुये। वेबीनार के जरिये महाराणा प्रताप को याद किया गया। अद्भुत शौर्य, अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प के अद्वितीय प्रतीक वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने हिन्द देश का गौरव बढ़ाया। वे हर भारतीय के दिल में आज भी मौजूद हैं। राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले महाराणा प्रताप अधर्म के आगे कभी नहीं झुके। देशभक्ति से ओत-प्रोत, उनका जीवन हमें मातृभूमि पर अपना सर्वस्व समर्पित करने की सीख देता है।

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अकबर की विशाल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ

9 मई, 1540 ई. को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में में जन्मे महाराणा प्रताप भारत के मान-सम्मान, स्वाभिमान, स्वावलंबन, त्याग और वीरता के प्रतीक हैं। महाराणा प्रताप के पिता का नाम महाराणा उदय सिंह (द्वितीय) और माता का नाम रानी जीवंत कंवर था। महाराणा प्रताप अपने पच्चीस भाइयों में सबसे बड़े थे इसलिए उनको मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाया गया। उनके पास चेतक घोड़ा और रामप्रसाद हाथी स्वामी भक्त थे। 18 जून, 1576 को अकबर की विशाल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। महाराणा प्रताप को भील, इत्यादि समाज के सभी राष्ट्र भक्तों का साथ मिला। महाराणा प्रताप की सेना में झालामान, डोडिया भील, रामदास राठौड़ और हाकिम खां सूर जैसे शूरवीर थे। 

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गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं

हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध में हार जीत का निर्णय नहीं निकला। युद्ध बाद महाराणा प्रताप परिवार सहित जंगलों में विचरण करते हुए अपनी सेना को संगठित करते रहे। भामाशाह की ओर से आर्थिक सहयोग से महाराणा को पुनः सेना संगठित करने में काफी सहयोग मिला। महाराणा प्रताप दुनिया के उन महान शासकों में से एक मिशाल हैं जिनकी वीरता, शौर्य-पराक्रम के किस्से और गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वियतनाम जैसा छोटा सा देश अमेरिका जैसे महाशक्ति से महाराणा प्रताप की प्रेरणा से लंबे समय तक युद्ध लड़ता रहा। महाराणा प्रताप की मौत की खबर सुनकर अकबर भी रोया था। 


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महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य (इतिहास के विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त)


  • नाम - श्री महाराणा प्रताप सिंह

  • जन्म - 9 मई, 1540 ई.

  • जन्म भूमि - कुम्भलगढ़, राजस्थान

  • पुण्य तिथि - 29 जनवरी, 1597 ई.

  • पिता - श्री महाराणा उदयसिंह 

  • माता - राणी जीवंत कंवर 

  • राज्य - मेवाड़ 

  • शासन काल - 1568–1597ई.

  • शासन अवधि - 29 वर्ष
  •  वंश - सूर्यवंश 

  • राजवंश - सिसोदिया
  • राजघराना - राजपूताना

  • धार्मिक मान्यता - हिंदू धर्म
  • युद्ध - हल्दीघाटी का युद्ध

  • राजधानी - उदयपुर

  • पूर्वाधिकारी - महाराणा उदयसिंह

  • उत्तराधिकारी - राणा अमर सिंह


एक समाज, एक मंच, एक विचारधारा, एक लक्ष्य


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महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारियां-

  1. - महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी। 
  2. - महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।
  3. - महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था। वहीं कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था। 
  4. महाराणा प्रताप के कवच, भाला, ढाल और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।
  5. - महाराणा प्रताप दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में।
  6. - हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहां जमीनों में तलवारें पाई गईं। 
  7. - हल्दी घाटी में आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में मिला था। 
  8. - महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा श्री जैमल मेड़तिया जी ने दी थी। 
  9. - उस युद्ध में 48000 मारे गए थे। इनमें 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे
  10. - आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान 
  11. उदयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित है। 
  12. - हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और
  13. - अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए। 
  14. - महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है 
  15. - महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारों लोगों ने भी घर छोड़ा
  16. - गाड़िया लुहारों दिन रात राणा की फौज के लिए तलवारें बनाईं। इसी 
  17. समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाड़िया लोहार कहा जाता है।  
  18. - मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में
  19.  अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे।
  20. - राणा बिना भेदभाव के उनके साथ रहते थे।
  21.  आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील। 
  22. - महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ। 
  23. - चेतक का एक टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहां चेतक घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है। वहां पर चेतक की मृत्यु हुई।
  24. - वहां चेतक मंदिर बना हुआ है। चेतक बहुत ताकतवर था। उसके 
  25. मुंह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी। 
  26. - मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था। 
  27. - सोने चांदी और महलों को छोड़कर वे 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे। 
  28. - अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं तो आधा हिंदुस्तान के वारिस होंगे लेकिन बादशाहत अकबर की ही रहेगी।
  29. - महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया।
  30. - महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था। 


कोरोना काल: चिकित्सा व्यवस्थाओं में राजस्थान के राजा-महाराजाओं की अतुलनीय देन हैं ये बड़े अस्पताल

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कोरोना वायरस ने दुनियाभर में तबाही मचा रखी है।

कोरोना काल (Corona era) में इसकी दूसरी लहर से दुनियाभर में भय का माहौल है। संक्रमण तेजी से फैलता जा रहा है और मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। मरीज बढ़ रहे हैं संसाधन कम पड़ रहे हैं। राजस्थान (Rajasthan) में भी हालात भयावह होते जा रहे हैं। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद हालात काबू में नहीं आ रहे हैं लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य (Surprise) होगा कि राजस्थान में आज के हालात में भी बड़े शहरों में वे ही अस्पताल कोरोना मरीजों को संभाले हुये जिनकी नींव बरसों पहले राजस्थान के विभिन्न राजपूत राजा-महाराजाओं (Rajput King-Maharajas) ने रखी थी। 


हजारों मरीजों के लिये जीवनरेखा बने हुये हैं ये अस्पताल

यह बात दीगर है कि राजस्थान पत्रिका के संपादक गुलाब कोठारी जैसे कुछ तथाकथित बु्द्धिजीवी राज-महाराजाओं की मंशा पर गाहे-बगाहे सवाल उठाते हुये उन्हें खलनायक बताने से नहीं चूकते, लेकिन वे भूल जाते हैं कि राजस्थान में आज भी बड़े सरकारी एवं सार्वजनिक भवन वे चाहे अस्पताल हों या फिर कचरही सभी तत्कालीन राजा महाराजाओं की ही देन है। इन इमारतों की नींव इतनी मजबूत है कि वे आधुनिक समय में अल्ट्रा मॉर्डन और मजबूत कही जाने वाली बिल्डिंगों के मुकाबले आज भी शान से खड़ी हैं। वर्तमान हालात में अस्पताल सबसे ज्यादा अहम हो रहे हैं। आज हम आपको बताते हैँ राजस्थान के वे बड़े अस्पताल जिन्हें राजपूत राजाओं ने बनावाया और वे कोरोना काल में हजारों मरीजों के लिये जीवन रेखा बने हुये हैं। 


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सवाई मानसिंह अस्पताल, जयपुर।

सवाई मानसिंह अस्पताल, जयपुर

राजस्थान का सबसे बड़ा और देशभर में ख्याति प्राप्त सवाई मानसिंह अस्पताल का निर्माण 1934 में शुरू किया गया था। यह 1936 में बनकर तैयार हुआ। इसका नाम जयपुर के तत्त्कालीन महाराजा सवाई मानसिंह के नाम पर रखा गया। शुरुआत में इसे 200 बेड का अस्पताल बनाया गया था। लेकिन अस्पताल के के लिये इतनी रिजर्व जमीन रखी गई कि वह आने वाले 80-90 बरसों में पर्याप्त रूप से अपना विस्तार कर सके। आज इस अस्पताल में 4200 बेड हैं। इसमें 1500 डॉक्टर और रेजिडेंट डॉक्टर हैँ। वहीं करीब 1800 का नर्सिंग स्टाफ है। आज इस अस्पताल पर पूरे प्रदेश का भार है क्योंकि यहां सभी सुविधायें उपलब्ध हैं।   

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महात्मा गांधी अस्पताल, जोधपुर।

महात्मा गांधी अस्पताल एवं उम्मेद अस्पताल, जोधपुर

महात्मा गांधी अस्पताल को जोधपुर के तत्कालीन महाराजा उम्मेद सिंह ने 1932 में बनवाया था। उस समय अस्पताल का नाम विंडम अस्पताल रखा गया था। बाद में इसे ही 1949 में महात्मा गांधी अस्पताल नाम दे दिया गया। पहले अस्पताल की क्षमता 500 बेड की थी। उसका अब विस्तार कर दिया गया है। महाराजा उम्मेद सिंह ने इसके बाद 1938 में महिलाओं के अलग से उम्मेद जनाना अस्पताल का निर्माण करवाया। इसमें शुरुआत में 66 कॉटेज वार्ड के साथ एक हजार बेड की क्षमता रखी गई। बाद में इसकी सुविधाओं में और विस्तार कर दिया गया। ये दोनों अस्पताल आज स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में जोधपुर संभाग की बैक बोन हैं।

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महाराणा भूपाल अस्पताल, उदयपुर।

  महाराणा भूपाल अस्पताल, उदयपुर

विश्वप्रसिद्ध पर्यटन स्थल एवं लेकसिटी उदयपुर संभाग के सबसे बड़े अस्पताल महाराणा भूपाल अस्पताल का निर्माण 1937 में उदयपुर के तत्कालीन महाराणा ने करवाया। उस समय इस अस्पताल की शुरुआत छोटे स्तर पर हुई। बाद में इसकी सुविधाओं में विस्तार होता गया। वर्तमान में यहां 1500 बेड हैं। यहां भी चिकित्सा संबंधी लगभग सभी सुविधायें उपलब्ध हैं। यह अस्पताल राजस्थान से सटे मध्यप्रदेश के लोगों के लिये भी जीवन रेखा बना हुआ है। 

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महाराव भीम सिंह अस्पताल, कोटा।

महाराव भीम सिंह अस्पताल, कोटा

कोटा संभाग के इस सबसे बड़े अस्पताल के लिये कोटा के महाराव भीम सिंह ने अपने पोलो ग्राउंड की जमीन दी थी। वर्ष 1952 में इसकी नीवं रखी गई। यह पांच साल में बनकर तैयार हुआ और 1958 में महाराव भीम सिंह ने इसका उद्घाटन किया। आज इस अस्पताल की क्षमता करीब 750 बेड की है। यहां भी आधुनिक चिकित्सा से जुड़ी प्रमुख सुविधायें उपलब्ध है। यह अस्पताल भी हाड़ौती संभाग के कोटा-बूंदी, झालावाड़ और बारां जिले की बैक बोन है। यहां भी हाड़ौती संभाग के साथ ही इससे सटे मध्यप्रदेश राज्य के कई लोग इलाज करवाने आते हैं।

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पीबीएम अस्पताल, बीकानेर।

पीबीएम अस्पताल, बीकानेर

आधुनिकता और विकास कार्यों के लिये दुनियाभर में पहचाने जाने वाले बीकानेर रियासत के तत्कालीन महाराज गंगा सिंह ने 1937 में इसका निर्माण करवाया। शुरुआती दौर में इसमें कोटेज वार्ड समेत 244 बेड की व्यवस्था रखी गई। इनमें 137 बेड पुरुषों और 107 महिलाओं के बेड रखे गये थे। कालांतार में इस अस्पताल का भी अच्छा विकास हुआ। आज इस अस्पताल की क्षमता करीब 1700 बेड है। किसी समय यह अस्पताल अपने संसाधनों और विशेषज्ञ डॉक्टरों के कारण नार्थ इंडिया का बेहतरीन अस्पताल था। 

Amazing-Success-Story-3 : जैसलमेर के सांकड़ा गांव की बहू प्रियंका कंवर बनी डॉक्टर, धोरों से निकली प्रतिभा

प्रदेश में दर्जनों अस्पताल राजा महाराजाओं के नाम पर हैं

इनके अलावा प्रदेशभर में पुराने समय में राजा महाराजाओं ने कई अस्पतालों और डिस्पेंसरियों का निर्माण कराया। वहीं कहीं अस्पतालों के लिये जमीनें उपलब्ध करवाई। प्रदेश के दर्जनों अस्पताल राजा महाराजाओं के नाम पर हैं। इन अस्पतालों के भवन इतने खुले स्वरूप में मजबूत बनाये गये थे कि आज भी शान से खड़े प्रदेश की जनता को चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध करवा रहे हैं। 


Friday, May 7, 2021

Amazing-Success-Story-3 : जैसलमेर के सांकड़ा गांव की बहू प्रियंका कंवर बनी डॉक्टर, धोरों से निकली प्रतिभा

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प्रियंका कंवर जैसलमेर

सफलता (Success) किसी की थाती नही है। सफलता की राहत दृढ़ इच्छाशक्ति (Strong will power) से निकलती है। पश्चिमी राजस्थान में भारत-पाकिस्तान की सरहद पर बसे जैसलमेर और बाड़मेर (Jaisalmer and Barmer) जैसे इलाके से इन दिनों कुछ सुकुनभरी खबरें आ रही हैं। रेतीले धोरों में बसे इन इलाकों में भी अब राजपूत समाज की बेटियां (Daughters of rajput society) शिक्षा के क्षेत्र में कदम आगे बढ़ा रही हैं। अब इन इलाकों की बेटियां भी समय के साथ कदम ताल मिलाकर अपना और परिवार का भविष्य संवारने में जुटी है। गति भले ही धीमी हो लेकिन चलने की शुरुआत करने से रास्ते बनने लगे हैं। प्रतिभायें घंघूट की आड़ छोड़कर करियर (Career) आगे आने लगी हैं। ऐसा ही एक सुखद समाचार जैसलमेर जिले के सांकड़ा गांव से आया है। यहां की बहू प्रियंका कंवर (Priyanka Kanwar) ने डॉक्टर बनकर घर परिवार का नाम रोशन किया है। 


शिक्षा के क्षेत्र में मजबूत कदम बढ़ाया

जैसलमेर के सांकडा गांव की बहू प्रियंका कंवर ने एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर चिकित्सा जगत में पदार्पण किया है। प्रियंका कंवर की इस कामयाबी से इलाके में खुशी की लहर है। प्रियंका कंवर ने जैसलमेर जैसे परापंगत जिले में नारी शक्ति की शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ती भूमिका को और मजबूत किया है। अब प्रियंका का डॉक्टर बनने सपना साकार हो गया है। 

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प्रियंका ने पश्चिमी राजस्थान में शिक्षा के क्षेत्र में नया आयाम स्थापित किया है।

पिता की प्रेरणा और ससुराल के सहयोग ने दिलाई सफलता

प्रियंका ने अपनी इस सफलता का श्रेय बताया माता पिता को दिया है। बकौल प्रियंका पिता सेवानिवृत्त एक्सईएन जैतसिंह पडिहार की प्रेरणा और ईश्वर के आशीर्वाद से उसने पश्चिमी राजस्थान की महिलाओं की लिए कठिन समझे जाने वाली चिकित्सा पेशे में जाने की ठानी। शादी के बाद पति और ससुराल वालों का भी पिछले चार साल से सकारात्मक सहयोग मिला। पिता की प्ररेणा, पति व ससुराल का साथ और ईश्वर के आशीर्वाद का परिणाम है कि आज प्रियंका का डॉक्टर बनने का उनका सपना साकार हो गया। 


प्रियंका कंवर के पति भी लेखा अधिकारी हैं

जैसलमेर जिला हेडक्वार्टर से ही लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सांकडा गांव निवासी प्रियंका के ससुर शिक्षाविद गिरधरसिंह राठौड ने भी बहू की सफलता पर ससुर ईश्वर का शुक्रिया अदा किया है। प्रियंका के पति देरावर सिंह राठौड़ राजस्थान प्रशासनिक सेवा में चयन उपरांत लेखा अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। देरावर सिंह का इससे पहले बैंक, शिक्षक और असिस्टेंट कमांडेंट में चयन हो चुका है। जाहिर इस दंपति ने शिक्षा के महत्व को समझा है और अपना मुकाम पाने के लिये दोनों ने अच्छी मेहनत भी की है। इसका नतीजा सबके सामने है.


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अपना मुकाम पाने के लिये प्रियंका ने कड़ी मेहनत की और इसका नतीजा सामने है।

बेटियों और बहुओं के लिये प्ररेणा बनी प्रियंका कंवर

जैसलमेर जैसे जिले में राजपूत परिवार की बेटी और बहू का शिक्षा के क्षेत्र में आगे आना निश्चित तौर पर अन्य बेटियों और बहुओं के लिये मील का पत्थर साबित होगा। प्रियंका की यह उपलब्धि जिले में बेटियों की शिक्षा को लेकर की नई अलख जगाएगा। प्रियंका ख़ुद भी क्षेत्र की नारी शक्ति को आगे बढ़ाने एवं उनकी मदद करने की इच्छुक है ताकि इलाके का सर्वांगीण विकास हो और प्रतिभायें आगे आयें। इसके लिये वे अब खुद भी प्रयास करेंगी.

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धारणायें धीरे-धीरे टूटती जा रही हैं

उल्लेखनीय है कि पश्चिमी राजस्थान में स्थित बाड़मेर और जैसलमेर इलाके में बेहद परंपरागत होने के साथ ही अभी यहां पढ़ाई के प्रति रुझान अन्य इलाकों के मुकाबले काफी कम है। विशेषकर राजपूत समाज में आज भी लड़के और लड़कियों की शिक्षा में भेद किया जाता है। हालांकि अब ये धारणायें धीरे-धीरे टूटती जा रही हैं। लड़कों के साथ ही लड़कियां भी घर से बाहर निकलकर शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में कदम बढ़ाने लगी हैं। इन इलाकों के कई साधारण परिवारों से राजपूत लड़के और लड़कियों ने शिक्षा, खेल और सरकारी नौकरियों में अपना मुकाम हासिल किया है। ऐसी ही प्रतिभा प्रियंका कंवर को डॉक्टर बनने पर क्षत्रिय समाज की तरफ हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनायें।  


जरुरत है हौसला बढ़ाने की

ऐसा नहीं है कि इन इलाको में राजपूत समाज में प्रतिभाओं की कमी है। जरुरत है तो बस उन्हें प्रोत्साहित करने और आगे बढ़ाने की। क्योंकि इन रेतीले धोरों से कई ऐसे हीरे निकले हैं जिन्होंने देश दुनिया में न केवल राजपूत समाज का बल्कि पूरे प्रदेश का नाम रोशन किया है। आज उनकी रोशनी में दूसरी प्रतिभायें भी अपना भविष्य संवारने में जुटी है। 

Sunday, May 2, 2021

विचारणीय : कभी गुलाबचंद कटारिया तो कभी गुलाब कोठारी, आखिर कब तक सहेगा क्षत्रिय समाज

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क्षत्रिय समाज के खिलाफ आखिर यह सब कब तक होता रहेगा।

देश के लिये मर मिटने वाले और अपना सब कुछ त्यागने वाले क्षत्रिय समाज (Kshatriya society) को आखिर कब तक अपमान के कड़वे घूंट पीने पड़ेंगे। कभी गुलाबचंद कटारिया (Gulabchand Kataria) जैसे नेता तो कभी गुलाब कोठारी (Gulab Kothari) जैसे कथित बुद्धीजीवी पत्रकार आखिर कब तक क्षत्रिय समाज की अस्मिता पर हमला बोलते रहेंगे। पहले कड़वे बोल बोलकर और तथ्यहीन बातों पर लेखनी चलाकर फिर चार लाइन में माफी मांगते रहेंगे। अगर यह सबकुछ ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ी हमारे गौरवशाली इतिहास (Glorious history) को संदेह की दृष्टि से देखने लगेगी। क्योंकि किसी बात को अलग-अलग मुंह और अलग-अलग तरीकों से बार-बार गलत तरीके से दोहराया जायेगा तो वह प्रथमदृष्टया इंसान को सही लगने लगती है. 

कटारिया और कोठारी की मानसिकता को समझें

राजस्थान पत्रिका के मालिक एवं प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने दो दिन पहले 30 अप्रेल के अंक में लिखे अपने अग्रलेख 'सत्ता मालदार' की शुरुआत ही क्षत्रिय समाज के पूर्वजों के अपमान से की है। गुलाब कोठारी ने क्षत्रिय समाज के पूर्वजों को 'मर्यादाहीन महाराजा' बताकर जिस तरह से तुच्छ ज्ञान का प्रदर्शन किया है वैसी उनसे कभी उम्मीद नहीं की जाती है। लेकिन उन्होंने ऐसा किया। वहीं पिछले दिनों राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने विधानसभा उपचुनाव के दौरान 12 अप्रेल को राजसमंद के कुंवारिया गांव में राष्ट्र गौरव महाराणा प्रताप को लेकर ओछे शब्दों का प्रयोग किया था. 

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राजस्थान पत्रिका में 30 अप्रैल को प्रकाशित गुलाब कोठारी का आलेख।

क्षत्रिय समाज का इतिहास निसंदेह किताबों में 'स्वर्ण अक्षरों' में दर्ज है। लेकिन आज किताब कोई पढ़ता नहीं है. सोशल मीडिया ही सर्वेसर्वा है। आज सोशल मीडिया से ही 'मीडिया' चल रही है. युवा पीढ़ी उसी पर टिकी है। वह वहीं से ज्ञान लेती और उसी पर अपने विचार व्यक्त करती है। इतिहास की किताबें अलमारियों में रखी हैं। जबकि वर्तमान में लिखा और बोला गया सबकुछ 'ऑनलाइन' है। वह वैश्विक यात्रा करता है। लिहाजा आज किताब की बजाय ऑललाइन ज्ञान ज्यादा हावी है। आज हर कोई भी किसी भी तरह के तथ्य रखकर अपने आप को बुद्धजीवी साबित करने में लगा है। इसका अगर समय रहते पुरजोर विरोध नहीं किया गया तो ऐसे नेताओं और लेखकों-पत्रकारों के हौंसले बुलंद होते जायेंगे। दोनों ही प्रकरणों में क्षत्रिय समाज ने जिस तरह से सोशल मीडिया के माध्यम से शालीनतापूर्वक जो विरोध दर्ज कराया वह काबिल-ए-तारीफ है। 


दर्द का विरोध करना उससे भी ज्यादा जरुरी है

फिलहाल केवल इन दो प्रकरणों की बात करें तो खुशी इस बात है कि हमें इन कड़वे बोल और असत्य लेखनी का दर्द होने लगा है। यह दर्द जरुरी है। इस दर्द का विरोध करना उससे भी ज्यादा जरुरी है। क्योंकि पुरानी कहावत है कि ''बिना रोये तो बच्चे को मां भी दूध नहीं पिलाती''। वैसे ही बिना विरोध दर्ज कराये अपने शब्दों को वापस लेने की कोई बात नहीं करता और ना ही खेद प्रकट करता है। इन दोनों प्रकरणों में क्षत्रिय समाज बंधुओं ने जिस तरह से एक स्वर में पुरजोर विरोध जताया तो परिणाम आपके सामने है। बीजेपी नेता गुलाबचंद कटारिया को भी तीन बार माफी मांगने पर मजबूर होना पड़ा वहीं राजस्थान पत्रिका को भी गुलाब कोठारी के आलेख के लिये स्पष्टीकरण (खेद) प्रकाशित करना पड़ा। इससे पहले पत्रिका ने हाल ही में पुलिस महकमे पर भी ओछी टिप्पणी की थी। उस मामले में भी विरोध होने पर पत्रिका खेद प्रकट करना पड़ा था। किसी भी अखबार के लिये एक ही सप्ताह में दो बार खेद प्रकट करना साबित करता है कि अखबार की टीम में गंभीरता की कितनी कमी है। 

कटारिया के बाद मेवाड़ के एक और बीजेपी नेता ने डाला आग में 'घी', जानिये क्या कहा ?

सोशल मीडिया की टिप्पणी आंखें खोलने के लिये काफी है

गुलाब कोठारी की ओर से अपने अग्रलेख में लिखे गये अमर्यादित शब्द के विरोध में सोशल मीडिया पर एक क्षत्रिय की ओर से लिखा गया आलेख यहां बेदह प्रासंगिक है। वहीं श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन की ओर से गुलाब कोठारी को लिखे गये पत्र से शायद उनकी आंखे खुल जानी चाहिये। आप भी पढ़िये दो खुले पत्र। 

स्व० श्री कर्पूर चन्द्र जी कुलिश के पुत्र गुलाबजी कोठारी,

    नमस्कार 

                आपके आलेख तब से पढ़ता आ रहा हूँ जब से आपने ‘मंथन’ शीर्षक से लिखना आरंभ किया था, जो बाद में पुस्तकाकार रूप में भी पत्रिका ने प्रकाशित करके बेचा। आपको व्यक्तिगत रूप से नहीं देखा किन्तु चित्रों के माध्यम से इतनी बार देखा कि हम आमने-सामने हों तो आपको पहचान जाऊँगा । सत्य कह रहा हूँ कि आपके आलेख पढ़ कर और आपका छायाचित्र देख कर मैं सदैव यह सोचता था कि इस आदमी द्वारा लिखे गये सूचनापरक (ज्ञानपरक या अनुभवपरक नहीं) लेख, संस्कारों के प्रति लेखों में टपकती हुई चिन्ता और अन्यथा लिखे लेख पढ़ कर आपके बारे में पाठक के मन में बनने वाली छवि का आपके छायाचित्र से बिल्कुल भी मेल नहीं बैठता।सोचता था मैं ग़लत हूँ; कभी आपसे रूबरू मिलूँगा तो मेरा यह भ्रम दूर हो जायेगा और आपको शायद समाज में संस्कारों के गिरते स्तर के प्रति सच्चे मन से चिन्तित होने वाले इन्सान के रूप में पाऊँगा ।

       आप द्वारा आज ३० अप्रेल, २०२१ के ‘राजस्थान पत्रिका ‘ के मुख्य पृष्ठ पर  ‘सत्ता मालदार’ नामक एक लेख लिखा गया है, जिसकी शुरुआत आपने  ‘मर्यादाहीन महाराजाओं से छुटकारा पाने’ शब्द लिख कर की है।

       इस बारे में कुछ बातें स्पष्ट कर दूँ.......। आपने लिखा है—‘ऐसी व्यवस्था(राज नहीं)’ जबकि ‘राज ही’ चाहा गया था तत्कालीन उन तथाकथित नेताओं द्वारा, यह बात अब स्पष्ट हो चुकी है और आपके कई लेखों में यह आपने ही लिखा है, आप कहेंगे तो मैं उन लेखों को आपके समक्ष ला दूँगा ।

   ‘मर्यादाहीन महाराजा’ जिनके लिये आप उपयोग कर रहे हैं, तो जहाँ तक मुझे ध्यान है आप सोडा गाँव के  रहने वाले हैं, जो तत्कालीन जयपुर राज्य के अन्तर्गत आता था। उस राज्य में जब से जयपुर बसा है तब से लेकर अर्थात् जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंहजी से लेकर स्व० महाराज कुमार ब्रिगेडियर श्रीमान भवानीसिंहजी तक (जिनके समय में यह तथाकथित संप्रभु लोक कल्याणकारी धर्मनिरपेक्ष समाजवादी प्रजातांत्रिक गणतंत्र रूपी राज  -व्यवस्था नहीं- आया है) एक भी राजा का उदाहरण आप दे दीजिये, जिसने मर्यादाहीन आचरण किया हो।

       यदि महाराजा मर्यादाहीन होते श्रीमान जैसा  आप ‘श्रीमान’ मान रहे और उनके लिये शब्दों का उपयोग कर रहे हैं तो प्रजातांत्रिक चुनाव प्रणाली में भाग लेने वाले इन राजाओं को लाखों वोटों के जीत के अंतर से ये जनता उनको लोकसभाओं और विधान सभाओं में चुनकर न भेजती। संभवतः सबसे अधिक वोटों के अंतर से जीतकर आने के जिस रिकॉर्ड को आज ७५ वर्ष के लोकतंत्र के  ‘ये मर्यादित आचरण वाले नेता’ तोड़ नहीं पाये हैं; उस रिकॉर्ड को क़ायम करने वाली जयपुर राज की-जिस राज्य की आपके ख़ानदान में पिता के समय तक की पीढ़ी प्रजा थी- की महारानी ही थी जिन्हें आप श्रीमान मर्यादाहीन कह रहे हैं और आपको याद दिला दूँ इस अटूट रिकॉर्ड को बनाने में सहयोग और समर्थन देने वाली आम जनता ही थी; कोई EVM मशीनें नहीं।

         और संपूर्ण भारत में एक भी ‘RULING PRINCE’ का उदाहरण आप ‘श्रीमान’ मुझे दे दीजिये, जो भारी मतों से जीत कर नहीं आया हो, जिसे जनता ने भारी समर्थन और सहयोग नहीं दिया हो।

     आप द्वारा बताये गये ‘मर्यादाहीनों’ का एक उदाहरण आप ‘तथाकथित मर्यादितों’ की आँखें खोलने के लिये काफ़ी होगा। बीकानेर के महाराजा करणीसिंहजी- जो पाँच बार (१९५२-१९७७ तक) लगातार बीकानेर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा में जनता द्वारा (कुल पड़े मतों में से ७०% से अधिक मत अपने पक्ष में लेकर) चुन कर भेजे गये।आख़री चुनाव में आपकी जीत का अंतर १ लाख से कम वोटों का रहा था । श्रीमान कर्पूर चन्द्र जी कुलिश के पुत्र गुलाबजी द्वारा बताये गये इन ‘मर्यादाहीन महाराजा’ ने अगला चुनाव यह कह कर लड़ने से मना कर दिया कि - अब जनता का प्रेम और विश्वास मुझमें घट रहा है। इनसे आप तुलना कीजिये आप ‘श्रीमान’ द्वारा बताये गये ‘राज नहीं व्यवस्था चाहने वाले’ प्रजातंत्र के रक्षकों की जो राजस्थान राज्य एक वोट से हार गये तो बेशर्मी पूर्वक केन्द्र में उसी जनता पर मंत्री बना दिये गये। आपको थोड़ा आश्चर्य से और भर दूँ- महाराजा करणीसिंहजी ने पाँचों चुनाव किसी पार्टी की नाव पर चढ़ कर नहीं लड़े थे; बल्कि निर्दलीय लड़ कर ७० जनता का विश्वास और प्रेम उनमें था। इस बात को सिद्ध किया था। आप बतायें कि जनता की उनके प्रति  समझ सही थी या आप जैसे बुद्धिजीवी और वित्तजीवी बता रहें हैं जो पिछले ७५ वर्षों से, वह सही है।

          फिर आप ही बतायें कि मैं आपकी लिखी हुई बात को किस प्रकार गले उतारूँगा कि मेरे पूर्वज आप बता रहे हैं वैसे थे। आप बुद्धिजीवियों और वित्तजीवियों को अब इस बात को समझना चाहिये कि आप ‘राजा लोग अच्छे नहीं थे’ इसी गढ़े हुए नैरेटिव को लेकर प्रजातंत्र ले ज़रूर आये किंतु इस प्रजातंत्र की जड़ें  जमाने के लिये आप उक्त झूठे नैरेटिव से ही काम चलाने की असफल कोशिश न करें बल्कि अब ईमानदारी से मेहनत करें और वास्तव में प्रजातंत्र को ‘राज नहीं व्यवस्था’ मान कर कार्य में जुटें तो आप प्रजातंत्र को हम सभी के लिये उपयोगी साबित कर सकेंगे—जो आप भी जान रहे हैं-श्रीमान, कि यह आप दोनों वर्गों द्वारा किया जाना लगभग असंभव हो रहा है।

        इन बुद्धिजीवियों और वित्तजीवियों की चालाकी को श्रमजीवी तो पहले समझ चुका था और आयुधजीवी भी अब समझ रहा है।अत: मेरा इशारा किस तरफ़ है यह आप काफ़ी समझदार(जिसके सबूत आपको सार्वजनिक मंचों से इस हेतु मिले पुरस्कार हैं) होने की वजह से भलीभाँति समझ रहे हैं, सो आप (चूँकि आपकी इतिहास विषय में गति नहीं है) भविष्य में मेरे पूर्वजों के लिये ऐसे शब्दों का प्रयोग करने से परहेज़ करेंगे, ऐसा आपके व्यक्तित्व को समझने की वजह से मैं आशा से भरे 

 मन से आपसे करबद्ध प्रार्थना करता हूँ । 

      मैं जानता हूँ कि मेरा यह mail यदि आप तक पहुँचा तो आपको बेधेगा परंतु इससे कम, मैं आपके प्रति कुछ कर नहीं सकता था, इसलिये आप मुझे समझेंगे, इस विश्वास के साथ ................

       एक क्षात्र धर्मी


श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन की ओर से गुलाब कोठारी को लिखा गया पत्र


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श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन।

इसी तरह के और भी पत्र लेखक को क्षत्रिय समाज की विभिन्न संस्थाओं की ओर से लिखे गये हैं

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यह क्षत्रिय समाज की अस्मिता पर हमला है

यूं देखे तो मुंह से निकला हुआ और छपा हुआ वक्तव्य को ना तो मिटाया जा सकता है और ना ही भुलाया जा सकता है। लेकिन ऐसा करने वालों को सबक जरुर सिखाया जा सकता है ताकि भविष्य में कोई भी क्षत्रिय समाज के बारे में अर्नगल बोलने या लिखने की हिम्मत ना कर सके। जिस इतिहास को क्षत्रिय समाज ने अपना सबकुछ न्योछावर करके लिखा उसके बारे में कोई कुछ भी बोल दे यह असहनीय है। यह क्षत्रिय समाज की अस्मिता पर हमला है। इनका सही समय पर विरोध किया जाना बेहद जरुरी है। 


जानिये क्या कहता है इतिहास: खींची चौहान वंश से ताल्लुक रखती थीं पन्नाधाय

पद्मावत ने दिखाया फिल्मकारों को आइना

क्षत्रिय समाज के बारे में ये दो प्रकरण पहली बार नहीं आये हैं। इससे पहले भी आते रहे हैं। फिल्मकारों ने तो ठाकुर बिरादरी को जुल्म और अन्याय का प्रतीक ही मान लिया और उसे बार-बार जनता के सामने 'आततायी' के रूप में ही पेश किया। लेकिन कभी क्षत्रिय समाज ने उसके खिलाफ आवाज नहीं उठायी। अगर उठायी तो भी दबी कुचली आवाज में। उसका कभी कोई असर नहीं हुआ। उसी का परिणाम है कि फिल्मों में बहुत सी बार क्षत्रिय परंपराओं को बेहद गलत तरीके पेश किया जाता है। लेकिन गत वर्ष 2018 में आई संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावत' के मामले में ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ पर विरोध के स्वर उठाने के बाद अब फिल्म जगत कुछ सोचने पर मजबूर हुआ है। हालांकि अब भी क्षत्रिय समाज के तथ्यों और परंपराओं से खिलवाड़ करने से वे बाज नहीं आ रहे हैं, लेकिन अगर समय पर ही उनका पुरजोर विरोध दर्ज करा दिया जायेगा तो भविष्य में कोई ऐसा काम करने से पहले चार बार सोचेगा। 

Saturday, May 1, 2021

स्मृति शेष: इस टीस के साथ दुनिया से विदा हुए राजपूत सभाध्यक्ष गिरिराज सिंह लोटवाड़ा, इसकी गहराई को समझिये

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गिरिराज सिंह लोटवाड़ा

 श्री राजपूत सभा (Shri-Rajput-Sabha) जयपुर के अध्यक्ष गिरिराज सिंह लोटवाड़ा अब हमारे बीच नहीं रहे। बरसों तक समाज सेवा में जुटे रहे गिरिराज सिंह लोटवाड़ा (Giriraj Singh Lotwara)  ने गुरुवार को सुबह अंतिम सांस ली। कोरोना संक्रमण (Corona infection) से पीड़ित लोटवाड़ा अंतिम सांस तक समाज सेवा से जुड़े रहे। दुख की बात तो यह है कि लोटवाड़ा मन में एक टीस लेकर दुनिया से अलविदा हुये। यह टीस थी सिस्टम की लापरवाही से हो रही आमजन परेशानी की। यह टीस थी दूसरों को सुरक्षित रखने की और सिस्टम को 'सिस्टम' में लाने की। 


इस दर्द की गहराई की इंतिहा को समझें

लोटवाड़ा ने अपनी इस टीस को अपने स्वर्गवास से एक सप्ताह पूर्व सोशल मीडिया में बयां किया था। आप भी पढ़िए, जानिए और इस टीस को समझिये। पार्टी पॉलिटिक्स को परे रखकर इस टीस को महसूस कीजिये। इस दर्द की गहराई की इंतिहा को समझने की कोशिश कीजिए। बाकी परिणाम तो आज आपके सामने है ही। लोटवाड़ा ने अपनी इस टीस को फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिये 19 अप्रेल को सुबह 11 बजकर 14 मिनट पर शेयर किया था। 


पढ़िये गिरिराज सिंह लोटवाड़ा की पीड़ा उन्हीं के शब्दों में

गिरिराज सिंह लोटवाड़ा ने अपनी पोस्ट में लिखा कि ''आज सुबह 9 बजे 70 km गाड़ी में आ जा कर covid का टेस्ट करवाया। मैं आभारी हूं महुआ chc के पूर्ण स्टॉफ डाक्टर्स ने आत्मीयता दिखाते हुए टेस्ट किया। मैं उनको धन्यवाद औए आभार प्रकट करता हु। परंतु मन में एक पीड़ा है। मैंने चिकित्सा मंत्री जी को निवेदन किया था कि टेस्ट की व्यवस्था मरीज़ के घर या गांव phc में व्यवस्था करवाई जावे। पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। मेरा मतलब स्वयं की जांच से नहीं था पर मंत्री जी वो दिन भूल गये जो तीन बार चुनाव हार चुके और उप चुनाव में अजमेर से चुनाव लड़ा।'' 


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लोटवाड़ा ने मन में दबी अपनी टीस को फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिये शेयर किया।

राजपूत समाज सिर्फ स्वाभिमान को लेकर जिन्दा है

लोटवाड़ा ने आगे अपना दर्द बयां करते हुये लिखा ''हमारा समाज जो bjp का कट्टर समर्थक था पर आप राजपूत सभा पधारे और समाज को आश्वस्त किया कि वे समाज के साथ खड़े रहेंगे। पर आप तो चुनाव जीतने के बाद आज तक राजपूत सभा नहीं पधारे। आप फिर mla का चुनाव लड़ लिए और विजयी हुए लेकिन आज तक आपका समर्थन करने वाले मिलने को भी तरस गए। मंत्रीजी विनम्र निवेदन है अहंकार होता है पद के साथ पर अपने सहयोगियों को नज़र अंदाज करना कहां तक जायज है। राजपूत समाज सिर्फ स्वाभिमान को लेकर जिन्दा है। आपको कुर्सी मुबारक, जै हिन्द,जै भारत।।।''


सहयोग के बदले रुसवाई मिले तो क्या किया जाये ?

किसी समाज को सामाजिक स्तर पर नेतृत्व प्रदान करने वाले व्यक्ति की यह पीड़ा अपने आप में बहुत कुछ कहती है। कई बार इंसान जब बोलकर कुछ नहीं कह पाता है वह उसे कागज पर उतार देता है। अब जमाना कागज का नहीं सोशल मीडिया का है, लिहाजा लोटवाड़ा ने अपनी टीस को उस पर उतार दिया। उनकी यह टीस बहुत कुछ कहती है। उनकी यह टीस बताती है कि जब कोई समाज किसी भी पार्टी के नेता के समर्थन में किसी संस्था के माध्यम से कुछ करता है तो उसे अंदरुनी स्तर कई झंझावातों को झेलना पड़ता है। कुछ रूठ जाते हैं तो उन्हें मनाना पड़ता है। समाज का हर इंसान समाज का नेतृत्व करने वाले के फैसले से खुश नहीं होता है। लेकिन भी फिर भी संस्था बड़ी होती है। व्यक्ति नहीं। लेकिन बाद में जब उसी संस्था या समाज को बदले में रुसवाई मिलती है तो पीड़ा होना लाजिमी है। 


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लोटवाड़ा ने कहा कि राजपूत समाज सिर्फ स्वाभिमान को लेकर जिन्दा है।

टीस गहरा असर दिखाती है, वह कभी कभी नश्तर बन जाती है

कभी कभी यह पीड़ा व्यक्ति विशेष से लेकर समाज तक में घर कर जाती है। वह बड़ा नश्तर भी बन जाती है। उसके परिणाम भविष्य में नकारात्मक भी हो सकते हैं। बाद यह बाद दीगर है कि उसे समझने में कुछ समय लग जाये, लेकिन वह कहीं ना कहीं अपना असर जरुर दिखाती है। किसी भी नेता की कुर्सी का समय बड़ा अल्प होता है। उस अल्प समय में भी सैंकड़ों लोग उस कुर्सी पर नजर गड़ाये हुये हैं। कुर्सी पर बैठने वाला अगर थोड़ी सी भी असावधानी बरतता है तो उसे भविष्य में उसकी कीमत चुकानी पड़ती है। 


एक या दो वोट भी नेता की कुर्सी खींचने में सक्षम होते हैं

कई बार यह कीमत भले ही सैंकड़ों या हजारों वोट के रूप में नहीं हो, लेकिन एक या दो वोट चोट भी बहुत बड़ी होती है। ये एक या दो वोट किसी भी जनाधार वाले या दमदार नेता की कुर्सी खींचने में सक्षम होते हैं। राजस्थान से लेकर पूरे देश की जनता तक इस 1 वोट की कीमत देख चुका है। 1 वोट की कीमत सरकार गिरा भी सकती है और सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के बाद नेता की टांग खींच भी सकती है। क्योंकि जीत से ज्यादा टीस बड़ी होती है। टीस दिखती नहीं है लेकिन असर गहरा दिखाती है। 



Sunday, April 25, 2021

श्री क्षत्रिय युवक संघ: राजपूत समाज की सामूहिक संस्कारमयी मनावैज्ञानिक कर्मप्रणाली

राजपूत समाज की 'सामूहिक संस्कारमयी मनावैज्ञानिक कर्मप्रणाली' है श्री क्षत्रिय युवक संघ-Founder of Shri kshatriy yuvak sangh Tan Singh Barmer
श्री तनसिंह जी संघ के प्रथम संचालक निर्वाचित हुए।

आधुनिक भारत में आजादी से करीब दो वर्ष पहले सन् 1944 को राजस्थान के झुंझुनूं जिले के पिलानी राजपूत छात्रावास में शुरू हुआ 'श्री क्षत्रिय युवक संघ' देशभर में क्षत्रिय समाज की 'सामूहिक संस्कारमयी मनावैज्ञानिक कर्मप्रणाली' है। शुरुआती दौर में अन्य संस्थाओं की तरह कार्य करने वाली यह संस्था आज देशभर में समग्र क्षत्रिय समाज को संस्कारित करने की दिशा में कार्यरत अग्रणी संस्था है। 22 दिसंबर, 1946 को श्री क्षत्रिय युवक संघ अपने वर्तमान स्वरूप में सामने आया। उसके बाद से यह लगातार क्षत्रिय समाज को क्षत्रियोचित्त व्यवहार, संस्कार और मूल्यों के आधार पर आगे बढ़ाने का कार्य कर रहा है। 


श्री तन सिंह जी द्वारा संघ की स्थापना की गई

श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना परम पूज्य श्री तन सिंह जी द्वारा की गई। आपका जन्म 25 जनवरी 1924 तद्नुसार माघ कृष्णा चतुर्थी संवत 1980 को अपने ननिहाल बैरसियाला (जैसलमेर) में हुआ। श्री तन सिंह जी पिता बाड़मेर के रामदेरिया गांव के ठाकुर बलवंत सिंह महेचा एवं ममतामयी माता श्रीमती मोतीकंवर जी सोढ़ा थीं। श्री तन सिंह जी शिक्षा दीक्षा राजस्थान के बाड़मेर, जोधपुर, झुंझुनूं के पिलानी और महाराष्ट्र के नागपुर में हुई। आपने नागपुर से वकालत की पढ़ाई पूरी कर बाड़मेर में वकालत की। पूज्य तनसिंह जी संघ के प्रथम संचालक थे। श्री तन सिंह जी ने अपनी लेखनी अनूठा साहित्य भी लिखा। आपकी 14 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ये पुस्तकें आज पथप्रेरक के रूप में संपूर्ण समाज का मार्गदर्शन कर रही हैं।


श्री तन सिंह जी का राजनीतिक-सामाजिक सफर

श्री तन सिंह जी 1949 में बाड़मेर नगरपालिका के प्रथम अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उसके बाद 1952 के आम चुनावों में महज 28 वर्ष की उम्र में बाड़मेर से ही राजस्थान की प्रथम विधानसभा के लिए विधायक चुने गए। उस समय वे कुछ समय के लिए संयुक्त विपक्ष के नेता भी रहे। उसके बाद 1957 में श्री तन सिंह जी फिर विधायक बने। आप 1962 में बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए। उसके बाद श्री तन सिंह जी 1967 का चुनाव हार गए तो उन्होंने स्वयं का व्यवसाय प्रारंभ किया। इस दौरान अपने कई साथियों को रोजगार उपलब्ध करवाया। 1977 में वे पुनः इसी क्षेत्र से सांसद चुने गए। 7 दिसंबर 1979 पूज्य श्री तन सिंह जी का देवलोकगमन हो गया। आपने अपने संपूर्ण जीवनकाल में किंकर्त्तव्यविमूढ क्षत्रिय समाज को उसका नैसर्गिक मार्ग प्रदान करने का कार्य किया। 

tan singh barmer founder of shri kshatriy yuvak sangh-लीडिंग लीडर ऑफ राजपूज समाज तन सिंह बाड़मेर
तन सिंह 28 वर्ष की उम्र में बाड़मेर से राजस्थान की प्रथम विधानसभा के लिए विधायक चुने गए। फाइल फोटो


वर्तमान में श्री भगवान सिंह जी रोलसाहबसर के पास है संघ की जिम्मेदारी

श्री तनसिंह जी संघ के प्रथम संचालक निर्वाचित हुए। उसके बाद 1949 में श्री तनसिंह जी पुनः संघप्रमुख निर्वाचित हुए। 1954 में उन्होंने स्वयं निर्वाचन प्रक्रिया से अलग रहकर अपने निकटतम सहयोगी श्री आयुवान सिंह हुडील को संघप्रमुख बनवाया। 1959 में भी तनसिंह जी ने फिर ऐसा ही किया। आयुवान सिंह जी द्वारा पूर्ण कालिक राजनीति में जाने के लिए त्यागपत्र देने के बाद श्री तनसिंह जी पुनः संघप्रमुख चुने गए और 1969 तक संघप्रमुख रहे। 1969 में श्री तन सिंह जी ने संगठन के युवा नेतृत्व को आगे लाते हुये अपने श्रेष्ठतम अनुयायी श्री नारायणसिंह जी रेड़ा को संघप्रमुख बनाया। श्री नारायण सिंह जी ने दस वर्ष तक संघ को सींचा। उन्होंने 1979 से 1989 तक संघ प्रमुख के रूप में संघ का संचालन किया। उसके बाद संघ का संचालन वर्तमान संघ प्रमुख श्री भगवान सिंह रोलसाहबसर के पास आया। वे संघ के चौथे संघ प्रमुख हैं। श्री भगवानसिंह जी आज अपने प्रत्येक सहयोगी के लिए अनासक्त एवं निर्विकार मार्गदर्शक बनकर मार्गदर्शन कर रहे हैं। वे उन्हें अंगुली पकङकर जीवन लक्ष्य की ओर बढ़ा रहे हैं। 

श्री क्षत्रिय युवक संघ-राजपूत समाज की सामूहिक संस्कारमयी मनावैज्ञानिक कर्मप्रणाली-shri kshatriy yuvak sangh
भगवान सिंह रोलसाहबसर (फाइल फोटो)


संघ के बारे में सबकुछ जानने के लिये विजिट करे ये साइट

क्षत्रिय युवक संघ की कार्यप्रणाली, संगठन शक्ति और समाज के प्रत्येक वर्ग से संवाद का सफर काफी लंबा है। संघ आज अपने विचार और लक्ष्य के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है। संघ की भूमिका और उसके कार्यक्षेत्र को एक या दो आलेख में समेटना बेहद मुश्किल है। संघ की व्यापकता और उसका उद्देश्य काफी विस्तृत हैं। इसे समझने के लिये आप संघ की वेबसाइट https://shrikys.org/ पर विजिट कर सकते हैं। इसके माध्यम से आप संघ की प्रत्येक गतिविध से रू-ब-रू हो सकते हैं।


जय संघ शक्ति। 


Saturday, April 24, 2021

जानिये क्या कहता है इतिहास: खींची चौहान वंश से ताल्लुक रखती थीं पन्नाधाय

जानिये क्या कहता है इतिहास: खींची चौहान वंश से ताल्लुक रखती थी पन्नाधाय
श्यामलदास के वीर विनोद वॉल्यूम-2 में पन्नाधाय की जाति के बारे में स्पष्ट उल्लेख किया गया है.

मेवाड़ वंश के महाराणा उदय सिंह की जान बचाने वाली पन्नाधाय खीची चौहान राजपूत परिवार की बेटी थ. इतिहास में सर्वविदित है कि पन्नाधाय ने अपने बेटे चंदन की जान कुर्बान कर मेवाड़ वंश के उदय सिंह के प्राणों की रक्षा की थी। पन्नाधाय की जाति को लेकर इतिहासकारों में कई तरह के मतभेद हैं। लेकिन मेवाड़ की इतिहास की सटीक जानकारी देने वाले महाकवि श्याममलदास द्वारा रचित वीर विनोद के वॉल्यूम-2 का अध्ययन करेंगे कि तो आप पायेंगे कि इसमें पन्नाधाय की जाति को लेकर स्पष्ट उल्लेख किया गया है। 


पन्नाधाय खींची जाति की राजपूतानी थी

इसमें बताया गया है कि पन्नाधाय खींची चौहान वंश की बेटी थी। पन्नाधाय ने मेवाड़ को बचाने के लिये सर्वोच्च बलिदान देते हुये अपने बेटे चंदन की कुर्बानी दे दी थी। मेवाड़ के इतिहास को लेकर सैंकड़ों वृत्तचित्र और एपिसोड प्रकाशित और प्रसारित हो चुके हैं। इन्हीं एपिसोड में एपिक चैनल पर प्रसारित एक एपीसोड में इसे विस्तार से दर्शाया गया है। राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. संबोध गोस्वामी भी पन्नाधाय की जाति को लेकर महाकवि श्याममलदास रचित वीर विनोद का संदर्भ देते हैं। श्यामलदास के वीर विनोद वॉल्यूम-2 में महाराणा उदय सिंह तृतीय प्रकरण में साफ लिखा है कि पन्नाधाय खींची जाति की राजपूतानी थी। 


शिवाजी महाराज और भोंसले वंश का संबंध मेवाड़ के सिसोदिया से है

बरसों से क्षत्रिय और क्षत्रिय मराठा के बीच संबंध को लेकर फैली भ्रांतियों का भी पिछले दिनों पटाक्षेप हुआ था। वर्ष 2019 में महाराष्ट्र में आयोजित एक कार्यक्रम में सिसोदिया वंश के 2 युवराज एक साथ मंच पर आये और इन भ्रांतियों पर विराम लगाया। यह मौका था महाराणा प्रताप के वंशज एवं मेवाड़ के युवराज लक्ष्यराज सिंह और शिवाजी महाराज के वंशज एवं कोल्हापुर के युवराज छत्रपति सम्भाजी के एक मंच पर आने का। इस कार्यक्रम में छत्रपति संम्भाजी ने कहा कि शिवाजी महाराज और भोंसले वंश का संबंध मेवाड़ के सिसोदिया से हैं। 


महाराणा प्रताप के वंशज एवं मेवाड़ के युवराज लक्ष्यराज सिंह
लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ और  छत्रपति सम्भाजी का यह वीडियो देखेें 


राजसमंद के सिसौदा से है राणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी का संबंध

भोसले वंश मेवाड़ के सिसोदियों से ही निकला है। मतलब साफ है कि महाराणा प्रताप शिवाजी महाराज जी के रक्त संबंध पूर्वज है। राणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी का यह रिश्ता राजसमन्द के सिसौदा से है। सिसौदा से ही दोनों का निकास हुआ है। दोनों सिसोदिया वंश के ही चिराग थे। यह वीडियो उन लोगों का मुंह बंद करने के लिये काफी है जो बरसों से क्षत्रिय और क्षत्रिय मराठा के बीच एक खाई खोदने का काम रहे थे।


इतिहास के तथ्यों से छेड़छाड़ कर फैलाया जाता है भ्रम

उल्लेखनीय है कि इतिहास को लेकर हमेशा से इतिहासकारों में मत मतांतर रहा है। इस दौरान इतिहास के तथ्यों से छेड़छाड़ से भी गुरेज नहीं किया गया. इतिहास के इन तथ्यों से छेड़छाड़ का मुद्दा कई बार सियासी रण में बदल चुका है। इतिहास के तथ्यों से छेड़छाड़ कर राजनीति पार्टियां सियासी फायदा उठाने से भी नहीं चूकती हैं। यहां तक की पार्टियां स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल इतिहास की पुस्तकों में भी अपनी विचारधारा को युवा पीढ़ी पर थोपने से बाज नहीं आते हैं। सत्ता परिवर्तन के साथ ही इतिहास की किताबों में तथ्यों से छेड़छाड़ होने लग जाती है। राजस्थान में पिछले दिनों महाराणा प्रताप और विश्वविख्यात चित्तौड़गढ़ के दुर्ग में हुये जौहर को लेकर विवाद पैदा किया जा चुका है। 

संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावती' को लेकर देशभर में संग्राम छिड़ गया था।
संजय लीला भंसाली की पद्मावत में दीपिका पादुकोण ने लीड रोल निभाया था.

आर्थिक मुनाफे के लिये फिल्मकार भी नहीं चूकते हैं इतिहास से छेड़छाड़ करने से

वहीं फिल्मकार भी अपने आर्थिक मुनाफे के लिये ऐतिहासिक विषयों पर फिल्में बनाकर उन्हें चुटिेले अंदाज में पेश करने से बाज नहीं आते हैं। वे इतिहास के तथ्यों से छेड़छाड़ करने से नहीं चूकते हैं। इनको लेकर आये दिन बवाल होता रहता है। करीब तीन साल पहले फिल्मकार संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावती' को लेकर देशभर में संग्राम छिड़ गया था। बेहद विवादों के बाद विवादास्पद दृश्यों को हटाने के बाद यह फिल्म सिनेमाघरों तक पहुंच पाई थी। पद्मावती से पहले और बाद में भी इतिहास से जुड़ी कई फिल्मों को लेकर विवाद हो चुका है। 

Tuesday, April 20, 2021

madhubani murder case: पुलिस, अपराधियों और राजनीति का बेखौफ गठजोड़, पीड़ितों के लिये कौन आयेगा आगे ?


बिहार के मधुबनी जिले में हत्याकांड के शिकार के हुये मृतकों के बच्चों का खैरख्वाह कौन है


भारत में अपराधों के लिये कुख्यात हो चुके बिहार राज्य के मधुबनी जिले में हुई पांच लोगों की हत्या कोई सामान्य घटना नहीं है। मधुबनी जिले के बेनीपट्टी थाना इलाके के महमदपुर गांव में इस हत्याकांड ने होली के दिन के एक परिवार की खुशियों रंगों को बदरंग कर दिया। यहां राजपूत समाज के एक ही परिवार के तीन सगे भाइयों समेत पांच लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या का दी गई। इस वारदात ने जातीय संघर्ष की ऐसी लकीर खींच दी जो शायद ही कभी मिटेगी। लेकिन यह घटना कैसी घटी और इसके पीछे क्या कारण रहे। क्या यह हत्याकांड पुलिस, अपराधियों और राजनीति का बेखौफ गठजोड़ का परिणाम था। इसको समझना जरुरी है। 


बेनीपट्टी हत्याकांड पर शुरू हुई राजनीति

होली पर सरेआम हुई इस गंभीर आपराधिक वारदात ने पीड़ित परिवार के बड़े बुजुर्गों को तोड़कर रख दिया है। बच्चों के सपनों को बिखर दिया है। परिवार की महिलाओं को सिसकियों में डूबो दिया है। उसके बाद इस पर जमकर राजनीति शुरू हो गई है। लेकिन मूल सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ ? किसके इशारे पर यह सब हुआ। किसकी मुखबिरी और किसके बुलंद हौंसले के कारण हुआ। उसके बाद उपजे हालात में पीड़ित परिवार का खैरख्वाह आखिर कौन है जो तात्कालिक नहीं बल्कि इन जख्मों को भरने तक उनका संबल बनेगा ? सरकार या समाज। जवाब किसी के पास नहीं है। 


पीड़ित परिवार बेबस है ? गमों में डूबा हुआ है

इस वारदात में शामिल रहे अपराधियों को कब सजा मिलेगी और कब मृतकों की आत्मा को शांति। कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन आज पीड़ित परिवार बेबस है ? गमों में डूबा हुआ है। सबसे बड़ी पीड़ा यह कि अब उस पर राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही है। राजनीति और वर्चस्व का दम दिखाया जा रहा है। इन सबकी कीमत कौन चुका रहा है। पीड़ित परिवार। क्यों इस परिवार इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है ? इस परिवार ने किसी का बिगाड़ा था जो उसे यह सजा मिली। यह पूरी तरह से साफ नहीं हो पाया है। अभी आधी अधूरी बातें सामने आ रही हैं। वारदात के पीछे के कारणों को लेकर दावे तो खूब किये जा रहे हैं, लेकिन इनमें सच्चाई कितनी है यह अभी सामने आना बाकी है। 


मधुबनी हत्याकांड के कारण अभी सामने आने बाकी है।।
मधुबनी नरसंहार केस की जांच चल रही है।

सत्ता देख रही है विपक्ष हमलावर हो रहा है

इस पूरे घटनाकम्र के बाद राजनीति चरम पर है और सत्ता देख रही है। विपक्ष सरकार पर हमलावर हो रहा है। पीड़ित परिवार को ढांढस बंधाने और न्याय दिलाने के लिये राजपूत समाज एकजुट होने की कोशिश कर रहा है। सत्ता भी शायद अभी सोच विचार कर रही है कि आखिर किसका पलड़ा भारी है। पीड़ितों का या फिर अपराधियों का। चारों तरफ से न्याय की आवाज गूंज रही है। पीड़ितों के घर रहनुमाओं की भीड़ भी लगी है। शिक्षा और आर्थिक संबल दिये जाने वालों की लंबी लाइनें लगी है। लेकिन फिर भी समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इस परिवार का खैरख्वाह कौन है ?


यह बताये जा रहे हैं हत्या के कारण

मधुबनी नरसंहार को लेकर देशभर में छायी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस पूरे कांड की वजह आरोपियों और पीड़ित परिवार दोनों पक्षों के बीच की पुरानी रंजिश को माना जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट और पुलिस के बयानों के मुताबिक यह रंजिश एक मठ (मंदिर) की जमीन को लेकर है। इस रंजिश के साथ ही दूसरा मामला गत वर्ष नवंबर में उस समय जुड़ गया जब मंदिर की इस जमीन पर बने जलाशय से मछली पकड़ने की बात को लेकर दोनों पक्ष भिड़ गये थे। इससे यह मामला पुलिस और कोर्ट कचहरी पहुंचा। उसके बाद इस मसले को लेकर वर्चस्व और साजिशों का सिलसिला तेज हो गया। 


होली के दिन दिया गया साजिशों का अंजाम

इन साजिशों को अंजाम देने के लिये आरोपी पक्ष ने होली के दिन को चुना और गुलाल से नहीं खून से होली खेल डाली। 29 मार्च को अंजाम दी गई इस वारदात ने बिहार समेत पूरे देश को हिला डाला। ये तो कतई संभव नहीं है कि किसी इलाके में इतनी बड़ी साजिश रची जा रही हो और स्थानीय स्तर पुलिस की खुफिया टोली उससे बेखबर हो। बयान तो कुछ भी दिया जा सकता है, लेकिन उस पर यकीन हो यह जरुरी नहीं है। 

आरोपियों नेे बेनीपट्टी हत्या कांड की साजिश को होली के दिन अंजाम दिया।

इस पूरी कितने राजनीतिक पेंच हैं

नीतिश कुमार सरकार में हुये इस हत्याकांड में जातीय और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में कितने राजनीतिक पेंच है समझना मुश्किल तो नहीं है लेकिन कोई समझना नहीं चाहता है। सवाल केवल सत्ता और पुलिस से ही नहीं है सवाल यह भी है कि आखिरकार पीड़ितों का खैरख्वाह कौन है जो होली के गुलाल में मिले खून को उससे अलग करेगा। तेजस्वनी यादव से लेकर तमाम विपक्षी नेता पीड़ित परिवार को संबल बंधाने आ चुके हैं। लेकिन अभी तक मामले की जड़ तक नहीं पहुंचा जा सका है। पहुंचा जा सकता है लेकिन ना तो पुलिस पहुंचना चाहती है और ना नहीं राजनीति पहुंचने देना चाहती है।   


राजनीति से जु़ड़े कई नाम सामने आये हैं

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस मामले में नामजद कुल 34 आरोपियों में से 18 ब्राह्मण, 13 राजपूत, 2 अनुसूचित जाति वर्ग से और एक अन्य वर्ग से बताया जा रहा है। आरोपियों की जातीय फेहरिस्त के आधार पर पुलिस का दावा है मामला जातीय संघर्ष का नहीं बल्कि आपसी रंजिश का है। पूरे मामले में राजनीति से जु़ड़े कई नाम सामने आये हैं। कइयों पर अंगुलियां उठ रही है। कहने को तो राज्य के मुखिया नीतीश कुमार का कहना है कि कोई आरोपी बचेगा नहीं। पुलिस का भी दावा है कि जातिगत वर्चस्व का कोई मामला नहीं है। 


आरोप है कि आरोपियों को पुलिस का खुला संरक्षण है

वहीं पुलिस यह भी का कहना है कि अब यह मामला इतना ज्यादा सुर्खियों में आ चुका है कि किसी को संरक्षण मिल सके ऐसा संभव ही नहीं है। दूसरी तरफ पीड़ित परिवार के मुखिया और अन्य परिजनों का आरोप है कि आरोपियों को पुलिस का खुला संरक्षण है। उनकी राजनीति में घुसपैठ अच्छी है। पुलिस अब भले ही आरोपों के बीच वारदात के तार जोड़ने में लगी हो। राजनीतिक दल भले ही एक दूसरे को टारगेट कर रहे हो। सरकार भले ही न्याय की दुहाई दे रही हो। लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुये फिर वही यक्ष प्रश्न सामने मुंह बाये खड़ा है कि आखिर पीड़ितों का खैरख्वाह कौन है। सरकार, समाज, पुलिस, न्यायपालिका या फिर ईश्वर। जवाब मिले तो बताइयेगा।  



Saturday, April 17, 2021

कटारिया के बाद मेवाड़ के एक और बीजेपी नेता ने डाला आग में 'घी', जानिये क्या कहा ?


जयपुर में बीजेपी प्रदेश कार्यालय के बाहर लगे होर्डिंग में कटारिया की फोटो पर स्याही पोतते आक्रोशित युवा. 


उदयपुर. राष्ट्र गौरव वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप को लेकर हाल ही में बीजेपी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया की ओर से की गई टिप्पणी से मेवाड़ समेत समूचे राजस्थान और देश के अन्य भागों में लोगों में गुस्सा है। लोग जमकर कटारिया के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके पुतले जला रहे हैं। यहां तक कि बीजेपी के प्रदेश मुख्यालय पर लगे होर्डिंग में कटारिया के मुंह पर स्याही पोत दी गई। लोग उनके इस्तीफे और सार्वजनिक रूप से माफी मांगने समेत कई तरह की मांग कर रहे हैं। हालांकि इस बीच कटारिया सोशल मीडिया के जरिये इस पर माफी मांग चुके हैं, लेकिन लोगों का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा है। पूरे प्रदेश में इस मसले पर जमकर बवाल मचा हुआ है। इससे उपचुनाव के ऐन वक्त पर कांग्रेस को भी बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलने का मौका मिला गया। इस समय मेवाड़ की राजसमंद विधानसभा सीट का उपचुनाव है। इसी उपचुनाव के प्रचार के दौरान कटारिया ने महाराणा प्रताप पर यह टिप्पणी की। ऐसे माहौल में यह मसला बीजेपी के गले पड़ता जा रहा है। बीजेपी की वसुंधरा राजे सरकार में राज्य के गृह मंत्रालय जैसा अहम महकमा संभाल चुके अपने इस नेता के बयान से पार्टी बैकफुट पर भी दिख रही है.


कई नेता अपने-अपने तरीके से कर रहे हैं इतिहास का बखान

राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और मेवाड़ के दिग्गज नेता माने जाने वाले गुलाबचंद कटारिया से शायद ही किसी ने उम्मीद की होगी कि वे इस तरह की टिप्पणी करेंगे। कटारिया खुद मेवाड़ से हैं। महाराणा प्रताप से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों में बरसों से जुड़े रहे हैं। उसके बाद उनके द्वारा इस तरह की टिप्पणी किया बेहद खेदजनक है. इस दौरान कई अल्पज्ञानी नेता अपने अपने-अपने तरीके से इतिहास का बखान करने से भी नहीं चूक रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब नेताओं और कथित नेताओं द्वारा पहले तो बिना सोचे समझ कुछ भी बोल दिया जाता है। बाद में सोशल मीडिया के जरिये माफी मांग कर इतिश्री कर ली जाती है। उसके बाद नेता के समर्थक और छुटभैया नेता जैसे-तैसे करके उस विवादित बयान को कहीं न कहीं सही साबित करने का प्रयास भी करते हैं. उसे सही साबित करने के लिये वे महज व्हा‌ट्सअप पर वायरल होने के होने वाले कथित ज्ञान के आधार इतिहास के तथ्यों की जानकारी के बिना उसमेें 'कहीं कीं ईंट और कहीं का रोड़ा' जोड़कर आगे बढ़ाकर आग मेें घी डालने काम करते हैं. 


कटारिया के बचाव में उतरे समर्थक नेता ने की यह टिप्पणी

कुछ ऐसा ही इस मामले में भी हुआ है। कटारिया का विरोध बढ़ता देखकर कुछ भाजपाई उनके बचाव में उतर आये। इसके लिये इतिहास के ऐसे-ऐसे तथ्य पेश किये जाने लगे जो सत्यता से बिल्कुल परे हैं। उनकी फिक्र बस इतनी है कि जैसे भी हो नेताजी के मुंह से निकले शब्दबाणों को सही ठहराया जाये। उसके लिये भले ही  इतिहास के तथ्यों को तोड़ मरोड़ दिया जाये। किसी समाज के भावना आहत होती है तो होती रही। बवाल मचेगा तो वो भी माफी मांगकर इतिश्री कर लेंगे। कटारिया की विवादित टिप्पणी के बाद उनके समर्थक मेवाड़ के एक छुटभैया नेता उनसे भी आगे बढ़कर महाराणा प्रताप के भाई शक्ति सिंह को लेकर फेसबुक पर टिप्पणी कर डाली. बाद में उस पर भी विरोध होता देखकर अपनी पोस्ट को हटा लिया। लेकिन तब तक वह वायरल हो गई. जाहिर है इस तरह के आधे अधूरे ज्ञान और तथ्यों से ना केवल आमजन में भ्रम फैलता है, बल्कि युवा पीढ़ी में भी गलत संदेश जाता है। फेसबुक पर यह टिप्पणी करने वाले नेता भगवती लाल शर्मा हैं। इनकी ओर से फेसबुक पर की गई पोस्ट में लिखा गया है कि राज सत्ता नहीं मिलने के कारण शक्ति सिंह अकबर के पैरों में नतमस्तक हो गए। भगवती लाल शर्मा बीजेपी के कानोड़ मंडल अध्यक्ष बताये जाते हैं। आप भी पढ़िये क्या है वायरल टिप्पणी का मजमून।

भगवती लाल शर्मा द्वारा डाली गई पोस्ट। विरोध होता देखकर बाद में इसे हटा दिया गया. 

इतिहासकारों ने दिया ये जवाब और ये रखे तथ्य

इस वायरल पोस्ट के जवाब में कई इतिहासकारों और प्रबुद्ध लोगों ने कड़ा विरोध जताते हुये प्रतिक्रिया भी दी है और इतिहास से जुड़े तथ्य सामने रखे। इतिहासकारों के अनुसार जगमाल जी से मेवाड़ को वापस महाराणा प्रताप को दिलाने में महाराज शक्तिसिंहजी का अतुलनीय योगदान रहा है। महाराणा प्रताप जब पुनःमेवाड़ की राजगद्दी पर विराजमान हुए तब उस दिन महाराज शक्तिसिंह जी स्वयं उपस्थित थे। महाराणा प्रताप जी ने मनचाही जागीर भेंट करने की बात कही तब महाराज शक्तिसिंहजी ने कहा कि मैं तो भैंसरोडगढ़ में ही ठीक हूं। मुझे को जागीरी की आवश्यकता नहीं है ओर फिर भैंसरोड़गढ़ चले गए। उसके बाद वे अंत समय तक वहीं रहे। हल्दीघाटी युद्ध में अकबर की तरफ़ से महाराज शक्तिसिंहजी युद्ध लड़े ही नहीं थे। महाराजा मानसिंहजी का एक पुत्र या भतीजा था उनका नाम भी शक्तिसिंह ही था जो हल्दीघाटी युद्ध में अकबर की सेना में था। शक्तिसिंह जी कच्छावा को महाराज शक्तिसिंह जी सिसोदिया समझकर कुछ इतिहासकारों ने इसे प्रचारित कर दिया जो जनमानस में प्रचलन में आ गया।


 आप भी सुनिये महाराणा प्रताप के बारे में कटारिया ने क्या कहा

उल्लेखनीय है कि राजसमंद विधानसभा क्षेत्र के कुंवारिया गांव में गत 12 अप्रैल को बीजेपी प्रत्याशी दीप्ती माहेश्वरी के समर्थन में आयोजित चुनावी सभा को संबोधित करते हुये राजस्थान विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने महाराणा प्रताप का उदाहरण देते हुये यह टिप्पणी की थी। इस मामले में हुये विरोध के तत्काल बाद गुलाबचंद कटारिया ने दो बार माफी मांगी। बाद में उन्होंने माफी वाला वीडियो अपने फेसबुक पर शेयर भी किया। कटारिया ने माफी मांगते हुये कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया. उनकी भावना ऐसी नहीं थी.  




बीजेपी नेताओं का यह बड़बोलापन पार्टी पर भारी पड़ सकता है

बहरहाल पहले नेताजी और बाद में उनके समर्थकों ने इस तरह की टिप्पणियां कर आग में घी डालने का काम किया है। इससे मामला शांत होने की बजाय और ज्यादा उबलता जा रहा है। भगवती प्रसाद की इस टिप्पणी के बाद क्षत्रिय समाज एक बार फिर उद्वेलित हो रहा है। इसके लिये बीजेपी से जुड़े मेवाड़ क्षत्रिय समाज के लोग पार्टी लाइन से ऊपर से जाने की बात कहने से भी नहीं चूक रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो मेवाड़ ही नहीं प्रदेश के अन्य इलाकों में भी बीजेपी नेताओं का यह बड़बोलापन पार्टी पर भारी पड़ सकता है. 

Tuesday, April 13, 2021

एक समाज, एक मंच, एक विचारधारा, एक लक्ष्य

 


किसी भी समाज की उन्नति के लिये सबसे पहली आवश्यकता है एकजुटता। इस एकजुटता के लिये जरुरी है एक मंच। इस मंच के लिये जरुरी है समाज की सहभागिता। सहभागिता के लिये आवश्यक है संवाद। संवाद के लिये सबसे महत्वपूर्ण है साधन। वर्तमान में यह साधन है 'सोशल मीडिया।' इस मीडिया के माध्यम से आज कोई भी व्यक्ति कहीं भी किसी भी मंच पर अपनी आवाज को पहुंचा सकता है। जरुरी है कि बात में दम हो, तथ्य हो, तर्क हो और वजन हो। यह सब संभव है विचारों के आदान-प्रदान तथा लगातार संवाद तथा आपके आसपास, देश-प्रदेश और विश्वव्यापी जानकारी से। 


वर्तमान समय में हर समाज निरंतर प्रगति की ओर बढ़ रहा है। वह विषय चाहे शिक्षा का हो, व्यापार का हो, राजनीति का हो या फिर सामाजिक कुरीतियां छोड़ने का। कुछ समाज इस दिशा में बेहद तेजी के साथ सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं। कुछ समाज की गति धीमी है। क्षत्रिय समाज भी उन्हीं में शामिल है। इसकी गति को तेज करने के लिये छोटे-छोटे कदम बढ़ाने की जरुरत है। बदलाव एक साथ नहीं आता है, लेकिन उसकी शुरुआत कहीं न कहीं से करनी होती है। जरुरी नहीं कि हर कदम सही हो। हर प्रयास सफल हो। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम प्रयास ही नहीं करें। समाज का इतिहास, वर्तमान और भविष्य किसी भी समाज बंधु से छिपा हुआ नहीं है।  


हर व्यक्ति दूसरे की कामयाबी और असफलता से कुछ न कुछ सीखता है। बेशक दृष्टिकोण उसका अपना होता है। यह सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी। देश दुनिया की जानकारी आज हर कहीं मौजूद है। समाज विशेष की जानकारी और उसमें होने वाली हलचल, उसकी प्रगति के सोपान सार्वजनिक मंचों पर साझा तो होते हैं, लेकिन उनकी जानकारी सीमित होती है। देश-दुनिया के साथ-साथ हमारे समाज में क्या हो रहा है ? कौन समाज बंधु किस क्षेत्र में सफलता के सोपान गढ़ रहा है। कहां समाज में या समाज के साथ गलत हो रहा है। उसकी जानकारी एक मंच पर मिले तो हम उसके माध्यम से एकदूसरे से जुड़ सकते हैं और सहयोग कर सकते हैं. 


भारत सरकार और विभिन्न राज्यों की सरकारें हमारे समाज के लिये क्या कर रही हैं। कौन सी नयी पुरानी योजनायें हमारे लिये फायदेमंद है। कौन सी ऐसी बातें हैं जो हमारे समाज के लिये घातक हैं। किन सरकारी कदमों का समाज पर क्या असर पड़ रहा है। योजनाओं का हम किस तरह से फायदा उठा सकते हैं। किस क्षेत्र में युवाओं के लिये क्या संभावनायें हैं। कौन इन संभावनाओं का दोहन करने में सरकारी और निजी क्षेत्र में उच्च पदस्थ समाज बंधु हमें क्या गाइड कर सकते हैं। कैसे उनकी गाइडेंस का लाभ हम ले सकते हैं। सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में कौन समाज बंधु क्या बड़ी और अहम भूमिका निभा रहा है। उनसे हमें क्या मदद प्राप्त हो सकती है। इन पर जानकारी साझा करने के लिये यह मंच तैयार किया गया है। 


उम्मीद है इसमें आप सबका का यथायोग्य सहयोग प्राप्त होगा। बस जानकारी सही और सटीक होनी चाहिये ताकि इस मंच की विश्वनयीता बने। जानकारी स्वयं या दूसरे के समाज में राग द्वेष फैलाने वाली नहीं हो। सकारात्मक ऊर्जा के साथ एक मंच को शुरू करने का प्रयास किया है ताकि यह मंच समाज के लिये कुछ उपयोगी साबित हो सके। हम एक दूसरे से कुछ सीख सकें। एक दूसरे के सहयोग से आगे बढ़ सकें। मंच को और बेहतर तथा उपयोगी बनाने के लिये आपके सुझाव सादर आमंत्रित हैं। जल्द ही इसका फेसबुक फेज और सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफॉर्म पर भी उपस्थिति दर्ज कराई जायेगी।

समाज की युवा पीढ़ी को प्रोत्साहित करने वाली प्रोग्रेसिव और रचनात्मक जानकारी साझा करने के लिये इस Mail ID पर सामग्री भेज सकते हैं। kshatradharma777@gmail.com


सादर। 

जय क्षात्र धर्म।