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Sunday, May 9, 2021

महाराणा प्रताप जयंती विशेष : अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक राष्ट्र गौरव महाराणा प्रताप, पढ़िये 30 महत्वपूर्ण तथ्य

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अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक महाराणा की आज जयंती है। राष्ट्र गौरव महाराणा प्रताप की जयंती के मौके पर आज राजस्थान समेत देशभर में लोग गर्व से उनको याद कर रहे हैं। कोरोना काल होने के कारण हालांकि कहीं बड़े और सामूहिक आयोजन नहीं हुये हैं लेकिन आज दिनभर सोशल मीडिया में महाराणा प्रताप छाये रहे। सोशल मीडिया के जरिये में लाखों लोगों ने महाराणा प्रताप को नमन किया। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर तमाम राजनीतिक हस्तियों, राजपूत समेत अन्य संगठनों और आम आदमी ने श्रद्धापूर्वक महाराणा प्रताप को नमन किया।  


महाराणा प्रताप अधर्म के आगे कभी नहीं झुके

महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा किसी से छिपी हुई नहीं है। शौर्य एवं स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप की संघर्ष की गाथा बच्चे-बच्चे की जुबान है। मेवाड़ से लेकर जयपुर और अन्य स्थानों पर कई जगह ऑन लाइन वर्चुवल कार्यक्रम हुये। वेबीनार के जरिये महाराणा प्रताप को याद किया गया। अद्भुत शौर्य, अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प के अद्वितीय प्रतीक वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने हिन्द देश का गौरव बढ़ाया। वे हर भारतीय के दिल में आज भी मौजूद हैं। राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले महाराणा प्रताप अधर्म के आगे कभी नहीं झुके। देशभक्ति से ओत-प्रोत, उनका जीवन हमें मातृभूमि पर अपना सर्वस्व समर्पित करने की सीख देता है।

कटारिया के बाद मेवाड़ के एक और बीजेपी नेता ने डाला आग में 'घी', जानिये क्या कहा ?


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अकबर की विशाल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ

9 मई, 1540 ई. को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में में जन्मे महाराणा प्रताप भारत के मान-सम्मान, स्वाभिमान, स्वावलंबन, त्याग और वीरता के प्रतीक हैं। महाराणा प्रताप के पिता का नाम महाराणा उदय सिंह (द्वितीय) और माता का नाम रानी जीवंत कंवर था। महाराणा प्रताप अपने पच्चीस भाइयों में सबसे बड़े थे इसलिए उनको मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाया गया। उनके पास चेतक घोड़ा और रामप्रसाद हाथी स्वामी भक्त थे। 18 जून, 1576 को अकबर की विशाल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। महाराणा प्रताप को भील, इत्यादि समाज के सभी राष्ट्र भक्तों का साथ मिला। महाराणा प्रताप की सेना में झालामान, डोडिया भील, रामदास राठौड़ और हाकिम खां सूर जैसे शूरवीर थे। 

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गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं

हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध में हार जीत का निर्णय नहीं निकला। युद्ध बाद महाराणा प्रताप परिवार सहित जंगलों में विचरण करते हुए अपनी सेना को संगठित करते रहे। भामाशाह की ओर से आर्थिक सहयोग से महाराणा को पुनः सेना संगठित करने में काफी सहयोग मिला। महाराणा प्रताप दुनिया के उन महान शासकों में से एक मिशाल हैं जिनकी वीरता, शौर्य-पराक्रम के किस्से और गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वियतनाम जैसा छोटा सा देश अमेरिका जैसे महाशक्ति से महाराणा प्रताप की प्रेरणा से लंबे समय तक युद्ध लड़ता रहा। महाराणा प्रताप की मौत की खबर सुनकर अकबर भी रोया था। 


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महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य (इतिहास के विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त)


  • नाम - श्री महाराणा प्रताप सिंह

  • जन्म - 9 मई, 1540 ई.

  • जन्म भूमि - कुम्भलगढ़, राजस्थान

  • पुण्य तिथि - 29 जनवरी, 1597 ई.

  • पिता - श्री महाराणा उदयसिंह 

  • माता - राणी जीवंत कंवर 

  • राज्य - मेवाड़ 

  • शासन काल - 1568–1597ई.

  • शासन अवधि - 29 वर्ष
  •  वंश - सूर्यवंश 

  • राजवंश - सिसोदिया
  • राजघराना - राजपूताना

  • धार्मिक मान्यता - हिंदू धर्म
  • युद्ध - हल्दीघाटी का युद्ध

  • राजधानी - उदयपुर

  • पूर्वाधिकारी - महाराणा उदयसिंह

  • उत्तराधिकारी - राणा अमर सिंह


एक समाज, एक मंच, एक विचारधारा, एक लक्ष्य


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महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारियां-

  1. - महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी। 
  2. - महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।
  3. - महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था। वहीं कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था। 
  4. महाराणा प्रताप के कवच, भाला, ढाल और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।
  5. - महाराणा प्रताप दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में।
  6. - हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहां जमीनों में तलवारें पाई गईं। 
  7. - हल्दी घाटी में आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में मिला था। 
  8. - महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा श्री जैमल मेड़तिया जी ने दी थी। 
  9. - उस युद्ध में 48000 मारे गए थे। इनमें 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे
  10. - आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान 
  11. उदयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित है। 
  12. - हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और
  13. - अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए। 
  14. - महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है 
  15. - महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारों लोगों ने भी घर छोड़ा
  16. - गाड़िया लुहारों दिन रात राणा की फौज के लिए तलवारें बनाईं। इसी 
  17. समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाड़िया लोहार कहा जाता है।  
  18. - मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में
  19.  अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे।
  20. - राणा बिना भेदभाव के उनके साथ रहते थे।
  21.  आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील। 
  22. - महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ। 
  23. - चेतक का एक टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहां चेतक घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है। वहां पर चेतक की मृत्यु हुई।
  24. - वहां चेतक मंदिर बना हुआ है। चेतक बहुत ताकतवर था। उसके 
  25. मुंह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी। 
  26. - मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था। 
  27. - सोने चांदी और महलों को छोड़कर वे 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे। 
  28. - अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं तो आधा हिंदुस्तान के वारिस होंगे लेकिन बादशाहत अकबर की ही रहेगी।
  29. - महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया।
  30. - महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था। 


Saturday, April 17, 2021

कटारिया के बाद मेवाड़ के एक और बीजेपी नेता ने डाला आग में 'घी', जानिये क्या कहा ?


जयपुर में बीजेपी प्रदेश कार्यालय के बाहर लगे होर्डिंग में कटारिया की फोटो पर स्याही पोतते आक्रोशित युवा. 


उदयपुर. राष्ट्र गौरव वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप को लेकर हाल ही में बीजेपी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया की ओर से की गई टिप्पणी से मेवाड़ समेत समूचे राजस्थान और देश के अन्य भागों में लोगों में गुस्सा है। लोग जमकर कटारिया के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके पुतले जला रहे हैं। यहां तक कि बीजेपी के प्रदेश मुख्यालय पर लगे होर्डिंग में कटारिया के मुंह पर स्याही पोत दी गई। लोग उनके इस्तीफे और सार्वजनिक रूप से माफी मांगने समेत कई तरह की मांग कर रहे हैं। हालांकि इस बीच कटारिया सोशल मीडिया के जरिये इस पर माफी मांग चुके हैं, लेकिन लोगों का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा है। पूरे प्रदेश में इस मसले पर जमकर बवाल मचा हुआ है। इससे उपचुनाव के ऐन वक्त पर कांग्रेस को भी बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलने का मौका मिला गया। इस समय मेवाड़ की राजसमंद विधानसभा सीट का उपचुनाव है। इसी उपचुनाव के प्रचार के दौरान कटारिया ने महाराणा प्रताप पर यह टिप्पणी की। ऐसे माहौल में यह मसला बीजेपी के गले पड़ता जा रहा है। बीजेपी की वसुंधरा राजे सरकार में राज्य के गृह मंत्रालय जैसा अहम महकमा संभाल चुके अपने इस नेता के बयान से पार्टी बैकफुट पर भी दिख रही है.


कई नेता अपने-अपने तरीके से कर रहे हैं इतिहास का बखान

राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और मेवाड़ के दिग्गज नेता माने जाने वाले गुलाबचंद कटारिया से शायद ही किसी ने उम्मीद की होगी कि वे इस तरह की टिप्पणी करेंगे। कटारिया खुद मेवाड़ से हैं। महाराणा प्रताप से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों में बरसों से जुड़े रहे हैं। उसके बाद उनके द्वारा इस तरह की टिप्पणी किया बेहद खेदजनक है. इस दौरान कई अल्पज्ञानी नेता अपने अपने-अपने तरीके से इतिहास का बखान करने से भी नहीं चूक रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब नेताओं और कथित नेताओं द्वारा पहले तो बिना सोचे समझ कुछ भी बोल दिया जाता है। बाद में सोशल मीडिया के जरिये माफी मांग कर इतिश्री कर ली जाती है। उसके बाद नेता के समर्थक और छुटभैया नेता जैसे-तैसे करके उस विवादित बयान को कहीं न कहीं सही साबित करने का प्रयास भी करते हैं. उसे सही साबित करने के लिये वे महज व्हा‌ट्सअप पर वायरल होने के होने वाले कथित ज्ञान के आधार इतिहास के तथ्यों की जानकारी के बिना उसमेें 'कहीं कीं ईंट और कहीं का रोड़ा' जोड़कर आगे बढ़ाकर आग मेें घी डालने काम करते हैं. 


कटारिया के बचाव में उतरे समर्थक नेता ने की यह टिप्पणी

कुछ ऐसा ही इस मामले में भी हुआ है। कटारिया का विरोध बढ़ता देखकर कुछ भाजपाई उनके बचाव में उतर आये। इसके लिये इतिहास के ऐसे-ऐसे तथ्य पेश किये जाने लगे जो सत्यता से बिल्कुल परे हैं। उनकी फिक्र बस इतनी है कि जैसे भी हो नेताजी के मुंह से निकले शब्दबाणों को सही ठहराया जाये। उसके लिये भले ही  इतिहास के तथ्यों को तोड़ मरोड़ दिया जाये। किसी समाज के भावना आहत होती है तो होती रही। बवाल मचेगा तो वो भी माफी मांगकर इतिश्री कर लेंगे। कटारिया की विवादित टिप्पणी के बाद उनके समर्थक मेवाड़ के एक छुटभैया नेता उनसे भी आगे बढ़कर महाराणा प्रताप के भाई शक्ति सिंह को लेकर फेसबुक पर टिप्पणी कर डाली. बाद में उस पर भी विरोध होता देखकर अपनी पोस्ट को हटा लिया। लेकिन तब तक वह वायरल हो गई. जाहिर है इस तरह के आधे अधूरे ज्ञान और तथ्यों से ना केवल आमजन में भ्रम फैलता है, बल्कि युवा पीढ़ी में भी गलत संदेश जाता है। फेसबुक पर यह टिप्पणी करने वाले नेता भगवती लाल शर्मा हैं। इनकी ओर से फेसबुक पर की गई पोस्ट में लिखा गया है कि राज सत्ता नहीं मिलने के कारण शक्ति सिंह अकबर के पैरों में नतमस्तक हो गए। भगवती लाल शर्मा बीजेपी के कानोड़ मंडल अध्यक्ष बताये जाते हैं। आप भी पढ़िये क्या है वायरल टिप्पणी का मजमून।

भगवती लाल शर्मा द्वारा डाली गई पोस्ट। विरोध होता देखकर बाद में इसे हटा दिया गया. 

इतिहासकारों ने दिया ये जवाब और ये रखे तथ्य

इस वायरल पोस्ट के जवाब में कई इतिहासकारों और प्रबुद्ध लोगों ने कड़ा विरोध जताते हुये प्रतिक्रिया भी दी है और इतिहास से जुड़े तथ्य सामने रखे। इतिहासकारों के अनुसार जगमाल जी से मेवाड़ को वापस महाराणा प्रताप को दिलाने में महाराज शक्तिसिंहजी का अतुलनीय योगदान रहा है। महाराणा प्रताप जब पुनःमेवाड़ की राजगद्दी पर विराजमान हुए तब उस दिन महाराज शक्तिसिंह जी स्वयं उपस्थित थे। महाराणा प्रताप जी ने मनचाही जागीर भेंट करने की बात कही तब महाराज शक्तिसिंहजी ने कहा कि मैं तो भैंसरोडगढ़ में ही ठीक हूं। मुझे को जागीरी की आवश्यकता नहीं है ओर फिर भैंसरोड़गढ़ चले गए। उसके बाद वे अंत समय तक वहीं रहे। हल्दीघाटी युद्ध में अकबर की तरफ़ से महाराज शक्तिसिंहजी युद्ध लड़े ही नहीं थे। महाराजा मानसिंहजी का एक पुत्र या भतीजा था उनका नाम भी शक्तिसिंह ही था जो हल्दीघाटी युद्ध में अकबर की सेना में था। शक्तिसिंह जी कच्छावा को महाराज शक्तिसिंह जी सिसोदिया समझकर कुछ इतिहासकारों ने इसे प्रचारित कर दिया जो जनमानस में प्रचलन में आ गया।


 आप भी सुनिये महाराणा प्रताप के बारे में कटारिया ने क्या कहा

उल्लेखनीय है कि राजसमंद विधानसभा क्षेत्र के कुंवारिया गांव में गत 12 अप्रैल को बीजेपी प्रत्याशी दीप्ती माहेश्वरी के समर्थन में आयोजित चुनावी सभा को संबोधित करते हुये राजस्थान विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने महाराणा प्रताप का उदाहरण देते हुये यह टिप्पणी की थी। इस मामले में हुये विरोध के तत्काल बाद गुलाबचंद कटारिया ने दो बार माफी मांगी। बाद में उन्होंने माफी वाला वीडियो अपने फेसबुक पर शेयर भी किया। कटारिया ने माफी मांगते हुये कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया. उनकी भावना ऐसी नहीं थी.  




बीजेपी नेताओं का यह बड़बोलापन पार्टी पर भारी पड़ सकता है

बहरहाल पहले नेताजी और बाद में उनके समर्थकों ने इस तरह की टिप्पणियां कर आग में घी डालने का काम किया है। इससे मामला शांत होने की बजाय और ज्यादा उबलता जा रहा है। भगवती प्रसाद की इस टिप्पणी के बाद क्षत्रिय समाज एक बार फिर उद्वेलित हो रहा है। इसके लिये बीजेपी से जुड़े मेवाड़ क्षत्रिय समाज के लोग पार्टी लाइन से ऊपर से जाने की बात कहने से भी नहीं चूक रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो मेवाड़ ही नहीं प्रदेश के अन्य इलाकों में भी बीजेपी नेताओं का यह बड़बोलापन पार्टी पर भारी पड़ सकता है.