महाराणा प्रताप अधर्म के आगे कभी नहीं झुके
महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा किसी से छिपी हुई नहीं है। शौर्य एवं स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप की संघर्ष की गाथा बच्चे-बच्चे की जुबान है। मेवाड़ से लेकर जयपुर और अन्य स्थानों पर कई जगह ऑन लाइन वर्चुवल कार्यक्रम हुये। वेबीनार के जरिये महाराणा प्रताप को याद किया गया। अद्भुत शौर्य, अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प के अद्वितीय प्रतीक वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने हिन्द देश का गौरव बढ़ाया। वे हर भारतीय के दिल में आज भी मौजूद हैं। राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले महाराणा प्रताप अधर्म के आगे कभी नहीं झुके। देशभक्ति से ओत-प्रोत, उनका जीवन हमें मातृभूमि पर अपना सर्वस्व समर्पित करने की सीख देता है।
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अकबर की विशाल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ
9 मई, 1540 ई. को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में में जन्मे महाराणा प्रताप भारत के मान-सम्मान, स्वाभिमान, स्वावलंबन, त्याग और वीरता के प्रतीक हैं। महाराणा प्रताप के पिता का नाम महाराणा उदय सिंह (द्वितीय) और माता का नाम रानी जीवंत कंवर था। महाराणा प्रताप अपने पच्चीस भाइयों में सबसे बड़े थे इसलिए उनको मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाया गया। उनके पास चेतक घोड़ा और रामप्रसाद हाथी स्वामी भक्त थे। 18 जून, 1576 को अकबर की विशाल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। महाराणा प्रताप को भील, इत्यादि समाज के सभी राष्ट्र भक्तों का साथ मिला। महाराणा प्रताप की सेना में झालामान, डोडिया भील, रामदास राठौड़ और हाकिम खां सूर जैसे शूरवीर थे।
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गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं
हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध में हार जीत का निर्णय नहीं निकला। युद्ध बाद महाराणा प्रताप परिवार सहित जंगलों में विचरण करते हुए अपनी सेना को संगठित करते रहे। भामाशाह की ओर से आर्थिक सहयोग से महाराणा को पुनः सेना संगठित करने में काफी सहयोग मिला। महाराणा प्रताप दुनिया के उन महान शासकों में से एक मिशाल हैं जिनकी वीरता, शौर्य-पराक्रम के किस्से और गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वियतनाम जैसा छोटा सा देश अमेरिका जैसे महाशक्ति से महाराणा प्रताप की प्रेरणा से लंबे समय तक युद्ध लड़ता रहा। महाराणा प्रताप की मौत की खबर सुनकर अकबर भी रोया था।
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महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य (इतिहास के विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त)
- नाम - श्री महाराणा प्रताप सिंह
- जन्म - 9 मई, 1540 ई.
- जन्म भूमि - कुम्भलगढ़, राजस्थान
- पुण्य तिथि - 29 जनवरी, 1597 ई.
- पिता - श्री महाराणा उदयसिंह
- माता - राणी जीवंत कंवर
- राज्य - मेवाड़
- शासन काल - 1568–1597ई.
- शासन अवधि - 29 वर्ष
- वंश - सूर्यवंश
- राजवंश - सिसोदिया
- राजघराना - राजपूताना
- धार्मिक मान्यता - हिंदू धर्म
- युद्ध - हल्दीघाटी का युद्ध
- राजधानी - उदयपुर
- पूर्वाधिकारी - महाराणा उदयसिंह
- उत्तराधिकारी - राणा अमर सिंह
एक समाज, एक मंच, एक विचारधारा, एक लक्ष्य
महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारियां-
- - महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी।
- - महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।
- - महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था। वहीं कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था।
- महाराणा प्रताप के कवच, भाला, ढाल और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।
- - महाराणा प्रताप दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में।
- - हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहां जमीनों में तलवारें पाई गईं।
- - हल्दी घाटी में आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में मिला था।
- - महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा श्री जैमल मेड़तिया जी ने दी थी।
- - उस युद्ध में 48000 मारे गए थे। इनमें 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे
- - आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान
- उदयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित है।
- - हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और
- - अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए।
- - महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है
- - महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारों लोगों ने भी घर छोड़ा
- - गाड़िया लुहारों दिन रात राणा की फौज के लिए तलवारें बनाईं। इसी
- समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाड़िया लोहार कहा जाता है।
- - मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में
- अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे।
- - राणा बिना भेदभाव के उनके साथ रहते थे।
- आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील।
- - महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ।
- - चेतक का एक टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहां चेतक घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है। वहां पर चेतक की मृत्यु हुई।
- - वहां चेतक मंदिर बना हुआ है। चेतक बहुत ताकतवर था। उसके
- मुंह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी।
- - मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था।
- - सोने चांदी और महलों को छोड़कर वे 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे।
- - अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं तो आधा हिंदुस्तान के वारिस होंगे लेकिन बादशाहत अकबर की ही रहेगी।
- - महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया।
- - महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था।
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