Showing posts with label social media forum. Show all posts
Showing posts with label social media forum. Show all posts

Sunday, May 9, 2021

महाराणा प्रताप जयंती विशेष : अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक राष्ट्र गौरव महाराणा प्रताप, पढ़िये 30 महत्वपूर्ण तथ्य

maharana-pratap-jayanti-nation-pride-maharana-pratap-symbol-of-indomitable-courage-and-valor-महाराणा-प्रताप-जयंती-अदम्य-साहस-और-शौर्य-के-प्रतीक-राष्ट्र-गौरव-महाराणा-प्रताप-पढ़िये-30-महत्वपूर्ण-तथ्य



अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक महाराणा की आज जयंती है। राष्ट्र गौरव महाराणा प्रताप की जयंती के मौके पर आज राजस्थान समेत देशभर में लोग गर्व से उनको याद कर रहे हैं। कोरोना काल होने के कारण हालांकि कहीं बड़े और सामूहिक आयोजन नहीं हुये हैं लेकिन आज दिनभर सोशल मीडिया में महाराणा प्रताप छाये रहे। सोशल मीडिया के जरिये में लाखों लोगों ने महाराणा प्रताप को नमन किया। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर तमाम राजनीतिक हस्तियों, राजपूत समेत अन्य संगठनों और आम आदमी ने श्रद्धापूर्वक महाराणा प्रताप को नमन किया।  


महाराणा प्रताप अधर्म के आगे कभी नहीं झुके

महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा किसी से छिपी हुई नहीं है। शौर्य एवं स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप की संघर्ष की गाथा बच्चे-बच्चे की जुबान है। मेवाड़ से लेकर जयपुर और अन्य स्थानों पर कई जगह ऑन लाइन वर्चुवल कार्यक्रम हुये। वेबीनार के जरिये महाराणा प्रताप को याद किया गया। अद्भुत शौर्य, अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प के अद्वितीय प्रतीक वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने हिन्द देश का गौरव बढ़ाया। वे हर भारतीय के दिल में आज भी मौजूद हैं। राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले महाराणा प्रताप अधर्म के आगे कभी नहीं झुके। देशभक्ति से ओत-प्रोत, उनका जीवन हमें मातृभूमि पर अपना सर्वस्व समर्पित करने की सीख देता है।

कटारिया के बाद मेवाड़ के एक और बीजेपी नेता ने डाला आग में 'घी', जानिये क्या कहा ?


maharana-pratap-jayanti-nation-pride-maharana-pratap-symbol-of-indomitable-courage-and-valor-महाराणा-प्रताप-जयंती-अदम्य-साहस-और-शौर्य-के-प्रतीक-राष्ट्र-गौरव-महाराणा-प्रताप-पढ़िये-30-महत्वपूर्ण-तथ्य


अकबर की विशाल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ

9 मई, 1540 ई. को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में में जन्मे महाराणा प्रताप भारत के मान-सम्मान, स्वाभिमान, स्वावलंबन, त्याग और वीरता के प्रतीक हैं। महाराणा प्रताप के पिता का नाम महाराणा उदय सिंह (द्वितीय) और माता का नाम रानी जीवंत कंवर था। महाराणा प्रताप अपने पच्चीस भाइयों में सबसे बड़े थे इसलिए उनको मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाया गया। उनके पास चेतक घोड़ा और रामप्रसाद हाथी स्वामी भक्त थे। 18 जून, 1576 को अकबर की विशाल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। महाराणा प्रताप को भील, इत्यादि समाज के सभी राष्ट्र भक्तों का साथ मिला। महाराणा प्रताप की सेना में झालामान, डोडिया भील, रामदास राठौड़ और हाकिम खां सूर जैसे शूरवीर थे। 

जानिये क्या कहता है इतिहास: खींची चौहान वंश से ताल्लुक रखती थीं पन्नाधाय


गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं

हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध में हार जीत का निर्णय नहीं निकला। युद्ध बाद महाराणा प्रताप परिवार सहित जंगलों में विचरण करते हुए अपनी सेना को संगठित करते रहे। भामाशाह की ओर से आर्थिक सहयोग से महाराणा को पुनः सेना संगठित करने में काफी सहयोग मिला। महाराणा प्रताप दुनिया के उन महान शासकों में से एक मिशाल हैं जिनकी वीरता, शौर्य-पराक्रम के किस्से और गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वियतनाम जैसा छोटा सा देश अमेरिका जैसे महाशक्ति से महाराणा प्रताप की प्रेरणा से लंबे समय तक युद्ध लड़ता रहा। महाराणा प्रताप की मौत की खबर सुनकर अकबर भी रोया था। 


श्री क्षत्रिय युवक संघ: राजपूत समाज की सामूहिक संस्कारमयी मनावैज्ञानिक कर्मप्रणाली


maharana-pratap-jayanti-nation-pride-maharana-pratap-symbol-of-indomitable-courage-and-valor-महाराणा-प्रताप-जयंती-अदम्य-साहस-और-शौर्य-के-प्रतीक-राष्ट्र-गौरव-महाराणा-प्रताप-पढ़िये-30-महत्वपूर्ण-तथ्य

महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य (इतिहास के विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त)


  • नाम - श्री महाराणा प्रताप सिंह

  • जन्म - 9 मई, 1540 ई.

  • जन्म भूमि - कुम्भलगढ़, राजस्थान

  • पुण्य तिथि - 29 जनवरी, 1597 ई.

  • पिता - श्री महाराणा उदयसिंह 

  • माता - राणी जीवंत कंवर 

  • राज्य - मेवाड़ 

  • शासन काल - 1568–1597ई.

  • शासन अवधि - 29 वर्ष
  •  वंश - सूर्यवंश 

  • राजवंश - सिसोदिया
  • राजघराना - राजपूताना

  • धार्मिक मान्यता - हिंदू धर्म
  • युद्ध - हल्दीघाटी का युद्ध

  • राजधानी - उदयपुर

  • पूर्वाधिकारी - महाराणा उदयसिंह

  • उत्तराधिकारी - राणा अमर सिंह


एक समाज, एक मंच, एक विचारधारा, एक लक्ष्य


maharana-pratap-jayanti-nation-pride-maharana-pratap-symbol-of-indomitable-courage-and-valor-महाराणा-प्रताप-जयंती-अदम्य-साहस-और-शौर्य-के-प्रतीक-राष्ट्र-गौरव-महाराणा-प्रताप-पढ़िये-30-महत्वपूर्ण-तथ्य


महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारियां-

  1. - महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी। 
  2. - महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।
  3. - महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था। वहीं कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था। 
  4. महाराणा प्रताप के कवच, भाला, ढाल और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।
  5. - महाराणा प्रताप दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में।
  6. - हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहां जमीनों में तलवारें पाई गईं। 
  7. - हल्दी घाटी में आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में मिला था। 
  8. - महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा श्री जैमल मेड़तिया जी ने दी थी। 
  9. - उस युद्ध में 48000 मारे गए थे। इनमें 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे
  10. - आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान 
  11. उदयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित है। 
  12. - हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और
  13. - अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए। 
  14. - महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है 
  15. - महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारों लोगों ने भी घर छोड़ा
  16. - गाड़िया लुहारों दिन रात राणा की फौज के लिए तलवारें बनाईं। इसी 
  17. समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाड़िया लोहार कहा जाता है।  
  18. - मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में
  19.  अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे।
  20. - राणा बिना भेदभाव के उनके साथ रहते थे।
  21.  आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील। 
  22. - महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ। 
  23. - चेतक का एक टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहां चेतक घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है। वहां पर चेतक की मृत्यु हुई।
  24. - वहां चेतक मंदिर बना हुआ है। चेतक बहुत ताकतवर था। उसके 
  25. मुंह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी। 
  26. - मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था। 
  27. - सोने चांदी और महलों को छोड़कर वे 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे। 
  28. - अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं तो आधा हिंदुस्तान के वारिस होंगे लेकिन बादशाहत अकबर की ही रहेगी।
  29. - महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया।
  30. - महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था। 


Sunday, May 2, 2021

विचारणीय : कभी गुलाबचंद कटारिया तो कभी गुलाब कोठारी, आखिर कब तक सहेगा क्षत्रिय समाज

sometimes-gulabchand-kataria-sometimes gulab-kothari-how-long-will-kshatriya-society-endure-विचारणीय-कभी-गुलाबचंद-कटारिया-तो-कभी-गुलाब-कोठारी-आखिर-कब-तक-सहेगा-क्षत्रिय-समाज
क्षत्रिय समाज के खिलाफ आखिर यह सब कब तक होता रहेगा।

देश के लिये मर मिटने वाले और अपना सब कुछ त्यागने वाले क्षत्रिय समाज (Kshatriya society) को आखिर कब तक अपमान के कड़वे घूंट पीने पड़ेंगे। कभी गुलाबचंद कटारिया (Gulabchand Kataria) जैसे नेता तो कभी गुलाब कोठारी (Gulab Kothari) जैसे कथित बुद्धीजीवी पत्रकार आखिर कब तक क्षत्रिय समाज की अस्मिता पर हमला बोलते रहेंगे। पहले कड़वे बोल बोलकर और तथ्यहीन बातों पर लेखनी चलाकर फिर चार लाइन में माफी मांगते रहेंगे। अगर यह सबकुछ ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ी हमारे गौरवशाली इतिहास (Glorious history) को संदेह की दृष्टि से देखने लगेगी। क्योंकि किसी बात को अलग-अलग मुंह और अलग-अलग तरीकों से बार-बार गलत तरीके से दोहराया जायेगा तो वह प्रथमदृष्टया इंसान को सही लगने लगती है. 

कटारिया और कोठारी की मानसिकता को समझें

राजस्थान पत्रिका के मालिक एवं प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने दो दिन पहले 30 अप्रेल के अंक में लिखे अपने अग्रलेख 'सत्ता मालदार' की शुरुआत ही क्षत्रिय समाज के पूर्वजों के अपमान से की है। गुलाब कोठारी ने क्षत्रिय समाज के पूर्वजों को 'मर्यादाहीन महाराजा' बताकर जिस तरह से तुच्छ ज्ञान का प्रदर्शन किया है वैसी उनसे कभी उम्मीद नहीं की जाती है। लेकिन उन्होंने ऐसा किया। वहीं पिछले दिनों राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने विधानसभा उपचुनाव के दौरान 12 अप्रेल को राजसमंद के कुंवारिया गांव में राष्ट्र गौरव महाराणा प्रताप को लेकर ओछे शब्दों का प्रयोग किया था. 

sometimes-gulabchand-kataria-sometimes gulab-kothari-how-long-will-kshatriya-society-endure-विचारणीय-कभी-गुलाबचंद-कटारिया-तो-कभी-गुलाब-कोठारी-आखिर-कब-तक-सहेगा-क्षत्रिय-समाज
राजस्थान पत्रिका में 30 अप्रैल को प्रकाशित गुलाब कोठारी का आलेख।

क्षत्रिय समाज का इतिहास निसंदेह किताबों में 'स्वर्ण अक्षरों' में दर्ज है। लेकिन आज किताब कोई पढ़ता नहीं है. सोशल मीडिया ही सर्वेसर्वा है। आज सोशल मीडिया से ही 'मीडिया' चल रही है. युवा पीढ़ी उसी पर टिकी है। वह वहीं से ज्ञान लेती और उसी पर अपने विचार व्यक्त करती है। इतिहास की किताबें अलमारियों में रखी हैं। जबकि वर्तमान में लिखा और बोला गया सबकुछ 'ऑनलाइन' है। वह वैश्विक यात्रा करता है। लिहाजा आज किताब की बजाय ऑललाइन ज्ञान ज्यादा हावी है। आज हर कोई भी किसी भी तरह के तथ्य रखकर अपने आप को बुद्धजीवी साबित करने में लगा है। इसका अगर समय रहते पुरजोर विरोध नहीं किया गया तो ऐसे नेताओं और लेखकों-पत्रकारों के हौंसले बुलंद होते जायेंगे। दोनों ही प्रकरणों में क्षत्रिय समाज ने जिस तरह से सोशल मीडिया के माध्यम से शालीनतापूर्वक जो विरोध दर्ज कराया वह काबिल-ए-तारीफ है। 


दर्द का विरोध करना उससे भी ज्यादा जरुरी है

फिलहाल केवल इन दो प्रकरणों की बात करें तो खुशी इस बात है कि हमें इन कड़वे बोल और असत्य लेखनी का दर्द होने लगा है। यह दर्द जरुरी है। इस दर्द का विरोध करना उससे भी ज्यादा जरुरी है। क्योंकि पुरानी कहावत है कि ''बिना रोये तो बच्चे को मां भी दूध नहीं पिलाती''। वैसे ही बिना विरोध दर्ज कराये अपने शब्दों को वापस लेने की कोई बात नहीं करता और ना ही खेद प्रकट करता है। इन दोनों प्रकरणों में क्षत्रिय समाज बंधुओं ने जिस तरह से एक स्वर में पुरजोर विरोध जताया तो परिणाम आपके सामने है। बीजेपी नेता गुलाबचंद कटारिया को भी तीन बार माफी मांगने पर मजबूर होना पड़ा वहीं राजस्थान पत्रिका को भी गुलाब कोठारी के आलेख के लिये स्पष्टीकरण (खेद) प्रकाशित करना पड़ा। इससे पहले पत्रिका ने हाल ही में पुलिस महकमे पर भी ओछी टिप्पणी की थी। उस मामले में भी विरोध होने पर पत्रिका खेद प्रकट करना पड़ा था। किसी भी अखबार के लिये एक ही सप्ताह में दो बार खेद प्रकट करना साबित करता है कि अखबार की टीम में गंभीरता की कितनी कमी है। 

कटारिया के बाद मेवाड़ के एक और बीजेपी नेता ने डाला आग में 'घी', जानिये क्या कहा ?

सोशल मीडिया की टिप्पणी आंखें खोलने के लिये काफी है

गुलाब कोठारी की ओर से अपने अग्रलेख में लिखे गये अमर्यादित शब्द के विरोध में सोशल मीडिया पर एक क्षत्रिय की ओर से लिखा गया आलेख यहां बेदह प्रासंगिक है। वहीं श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन की ओर से गुलाब कोठारी को लिखे गये पत्र से शायद उनकी आंखे खुल जानी चाहिये। आप भी पढ़िये दो खुले पत्र। 

स्व० श्री कर्पूर चन्द्र जी कुलिश के पुत्र गुलाबजी कोठारी,

    नमस्कार 

                आपके आलेख तब से पढ़ता आ रहा हूँ जब से आपने ‘मंथन’ शीर्षक से लिखना आरंभ किया था, जो बाद में पुस्तकाकार रूप में भी पत्रिका ने प्रकाशित करके बेचा। आपको व्यक्तिगत रूप से नहीं देखा किन्तु चित्रों के माध्यम से इतनी बार देखा कि हम आमने-सामने हों तो आपको पहचान जाऊँगा । सत्य कह रहा हूँ कि आपके आलेख पढ़ कर और आपका छायाचित्र देख कर मैं सदैव यह सोचता था कि इस आदमी द्वारा लिखे गये सूचनापरक (ज्ञानपरक या अनुभवपरक नहीं) लेख, संस्कारों के प्रति लेखों में टपकती हुई चिन्ता और अन्यथा लिखे लेख पढ़ कर आपके बारे में पाठक के मन में बनने वाली छवि का आपके छायाचित्र से बिल्कुल भी मेल नहीं बैठता।सोचता था मैं ग़लत हूँ; कभी आपसे रूबरू मिलूँगा तो मेरा यह भ्रम दूर हो जायेगा और आपको शायद समाज में संस्कारों के गिरते स्तर के प्रति सच्चे मन से चिन्तित होने वाले इन्सान के रूप में पाऊँगा ।

       आप द्वारा आज ३० अप्रेल, २०२१ के ‘राजस्थान पत्रिका ‘ के मुख्य पृष्ठ पर  ‘सत्ता मालदार’ नामक एक लेख लिखा गया है, जिसकी शुरुआत आपने  ‘मर्यादाहीन महाराजाओं से छुटकारा पाने’ शब्द लिख कर की है।

       इस बारे में कुछ बातें स्पष्ट कर दूँ.......। आपने लिखा है—‘ऐसी व्यवस्था(राज नहीं)’ जबकि ‘राज ही’ चाहा गया था तत्कालीन उन तथाकथित नेताओं द्वारा, यह बात अब स्पष्ट हो चुकी है और आपके कई लेखों में यह आपने ही लिखा है, आप कहेंगे तो मैं उन लेखों को आपके समक्ष ला दूँगा ।

   ‘मर्यादाहीन महाराजा’ जिनके लिये आप उपयोग कर रहे हैं, तो जहाँ तक मुझे ध्यान है आप सोडा गाँव के  रहने वाले हैं, जो तत्कालीन जयपुर राज्य के अन्तर्गत आता था। उस राज्य में जब से जयपुर बसा है तब से लेकर अर्थात् जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंहजी से लेकर स्व० महाराज कुमार ब्रिगेडियर श्रीमान भवानीसिंहजी तक (जिनके समय में यह तथाकथित संप्रभु लोक कल्याणकारी धर्मनिरपेक्ष समाजवादी प्रजातांत्रिक गणतंत्र रूपी राज  -व्यवस्था नहीं- आया है) एक भी राजा का उदाहरण आप दे दीजिये, जिसने मर्यादाहीन आचरण किया हो।

       यदि महाराजा मर्यादाहीन होते श्रीमान जैसा  आप ‘श्रीमान’ मान रहे और उनके लिये शब्दों का उपयोग कर रहे हैं तो प्रजातांत्रिक चुनाव प्रणाली में भाग लेने वाले इन राजाओं को लाखों वोटों के जीत के अंतर से ये जनता उनको लोकसभाओं और विधान सभाओं में चुनकर न भेजती। संभवतः सबसे अधिक वोटों के अंतर से जीतकर आने के जिस रिकॉर्ड को आज ७५ वर्ष के लोकतंत्र के  ‘ये मर्यादित आचरण वाले नेता’ तोड़ नहीं पाये हैं; उस रिकॉर्ड को क़ायम करने वाली जयपुर राज की-जिस राज्य की आपके ख़ानदान में पिता के समय तक की पीढ़ी प्रजा थी- की महारानी ही थी जिन्हें आप श्रीमान मर्यादाहीन कह रहे हैं और आपको याद दिला दूँ इस अटूट रिकॉर्ड को बनाने में सहयोग और समर्थन देने वाली आम जनता ही थी; कोई EVM मशीनें नहीं।

         और संपूर्ण भारत में एक भी ‘RULING PRINCE’ का उदाहरण आप ‘श्रीमान’ मुझे दे दीजिये, जो भारी मतों से जीत कर नहीं आया हो, जिसे जनता ने भारी समर्थन और सहयोग नहीं दिया हो।

     आप द्वारा बताये गये ‘मर्यादाहीनों’ का एक उदाहरण आप ‘तथाकथित मर्यादितों’ की आँखें खोलने के लिये काफ़ी होगा। बीकानेर के महाराजा करणीसिंहजी- जो पाँच बार (१९५२-१९७७ तक) लगातार बीकानेर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा में जनता द्वारा (कुल पड़े मतों में से ७०% से अधिक मत अपने पक्ष में लेकर) चुन कर भेजे गये।आख़री चुनाव में आपकी जीत का अंतर १ लाख से कम वोटों का रहा था । श्रीमान कर्पूर चन्द्र जी कुलिश के पुत्र गुलाबजी द्वारा बताये गये इन ‘मर्यादाहीन महाराजा’ ने अगला चुनाव यह कह कर लड़ने से मना कर दिया कि - अब जनता का प्रेम और विश्वास मुझमें घट रहा है। इनसे आप तुलना कीजिये आप ‘श्रीमान’ द्वारा बताये गये ‘राज नहीं व्यवस्था चाहने वाले’ प्रजातंत्र के रक्षकों की जो राजस्थान राज्य एक वोट से हार गये तो बेशर्मी पूर्वक केन्द्र में उसी जनता पर मंत्री बना दिये गये। आपको थोड़ा आश्चर्य से और भर दूँ- महाराजा करणीसिंहजी ने पाँचों चुनाव किसी पार्टी की नाव पर चढ़ कर नहीं लड़े थे; बल्कि निर्दलीय लड़ कर ७० जनता का विश्वास और प्रेम उनमें था। इस बात को सिद्ध किया था। आप बतायें कि जनता की उनके प्रति  समझ सही थी या आप जैसे बुद्धिजीवी और वित्तजीवी बता रहें हैं जो पिछले ७५ वर्षों से, वह सही है।

          फिर आप ही बतायें कि मैं आपकी लिखी हुई बात को किस प्रकार गले उतारूँगा कि मेरे पूर्वज आप बता रहे हैं वैसे थे। आप बुद्धिजीवियों और वित्तजीवियों को अब इस बात को समझना चाहिये कि आप ‘राजा लोग अच्छे नहीं थे’ इसी गढ़े हुए नैरेटिव को लेकर प्रजातंत्र ले ज़रूर आये किंतु इस प्रजातंत्र की जड़ें  जमाने के लिये आप उक्त झूठे नैरेटिव से ही काम चलाने की असफल कोशिश न करें बल्कि अब ईमानदारी से मेहनत करें और वास्तव में प्रजातंत्र को ‘राज नहीं व्यवस्था’ मान कर कार्य में जुटें तो आप प्रजातंत्र को हम सभी के लिये उपयोगी साबित कर सकेंगे—जो आप भी जान रहे हैं-श्रीमान, कि यह आप दोनों वर्गों द्वारा किया जाना लगभग असंभव हो रहा है।

        इन बुद्धिजीवियों और वित्तजीवियों की चालाकी को श्रमजीवी तो पहले समझ चुका था और आयुधजीवी भी अब समझ रहा है।अत: मेरा इशारा किस तरफ़ है यह आप काफ़ी समझदार(जिसके सबूत आपको सार्वजनिक मंचों से इस हेतु मिले पुरस्कार हैं) होने की वजह से भलीभाँति समझ रहे हैं, सो आप (चूँकि आपकी इतिहास विषय में गति नहीं है) भविष्य में मेरे पूर्वजों के लिये ऐसे शब्दों का प्रयोग करने से परहेज़ करेंगे, ऐसा आपके व्यक्तित्व को समझने की वजह से मैं आशा से भरे 

 मन से आपसे करबद्ध प्रार्थना करता हूँ । 

      मैं जानता हूँ कि मेरा यह mail यदि आप तक पहुँचा तो आपको बेधेगा परंतु इससे कम, मैं आपके प्रति कुछ कर नहीं सकता था, इसलिये आप मुझे समझेंगे, इस विश्वास के साथ ................

       एक क्षात्र धर्मी


श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन की ओर से गुलाब कोठारी को लिखा गया पत्र


sometimes-gulabchand-kataria-sometimes gulab-kothari-how-long-will-kshatriya-society-endure-विचारणीय-कभी-गुलाबचंद-कटारिया-तो-कभी-गुलाब-कोठारी-आखिर-कब-तक-सहेगा-क्षत्रिय-समाज
श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन।

इसी तरह के और भी पत्र लेखक को क्षत्रिय समाज की विभिन्न संस्थाओं की ओर से लिखे गये हैं

sometimes-gulabchand-kataria-sometimes gulab-kothari-how-long-will-kshatriya-society-endure-विचारणीय-कभी-गुलाबचंद-कटारिया-तो-कभी-गुलाब-कोठारी-आखिर-कब-तक-सहेगा-क्षत्रिय-समाज


यह क्षत्रिय समाज की अस्मिता पर हमला है

यूं देखे तो मुंह से निकला हुआ और छपा हुआ वक्तव्य को ना तो मिटाया जा सकता है और ना ही भुलाया जा सकता है। लेकिन ऐसा करने वालों को सबक जरुर सिखाया जा सकता है ताकि भविष्य में कोई भी क्षत्रिय समाज के बारे में अर्नगल बोलने या लिखने की हिम्मत ना कर सके। जिस इतिहास को क्षत्रिय समाज ने अपना सबकुछ न्योछावर करके लिखा उसके बारे में कोई कुछ भी बोल दे यह असहनीय है। यह क्षत्रिय समाज की अस्मिता पर हमला है। इनका सही समय पर विरोध किया जाना बेहद जरुरी है। 


जानिये क्या कहता है इतिहास: खींची चौहान वंश से ताल्लुक रखती थीं पन्नाधाय

पद्मावत ने दिखाया फिल्मकारों को आइना

क्षत्रिय समाज के बारे में ये दो प्रकरण पहली बार नहीं आये हैं। इससे पहले भी आते रहे हैं। फिल्मकारों ने तो ठाकुर बिरादरी को जुल्म और अन्याय का प्रतीक ही मान लिया और उसे बार-बार जनता के सामने 'आततायी' के रूप में ही पेश किया। लेकिन कभी क्षत्रिय समाज ने उसके खिलाफ आवाज नहीं उठायी। अगर उठायी तो भी दबी कुचली आवाज में। उसका कभी कोई असर नहीं हुआ। उसी का परिणाम है कि फिल्मों में बहुत सी बार क्षत्रिय परंपराओं को बेहद गलत तरीके पेश किया जाता है। लेकिन गत वर्ष 2018 में आई संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावत' के मामले में ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ पर विरोध के स्वर उठाने के बाद अब फिल्म जगत कुछ सोचने पर मजबूर हुआ है। हालांकि अब भी क्षत्रिय समाज के तथ्यों और परंपराओं से खिलवाड़ करने से वे बाज नहीं आ रहे हैं, लेकिन अगर समय पर ही उनका पुरजोर विरोध दर्ज करा दिया जायेगा तो भविष्य में कोई ऐसा काम करने से पहले चार बार सोचेगा। 

Saturday, May 1, 2021

स्मृति शेष: इस टीस के साथ दुनिया से विदा हुए राजपूत सभाध्यक्ष गिरिराज सिंह लोटवाड़ा, इसकी गहराई को समझिये

shri-rajput-sabha-jaipur-president-giriraj-singh-lotwara-departed-from-world-with-this-twinge-इस-टीस-के-साथ-दुनिया-से-विदा-हुए-राजपूत-सभा-जयपुर-अध्यक्ष-गिरिराज-सिंह-लोटवाड़ा
गिरिराज सिंह लोटवाड़ा

 श्री राजपूत सभा (Shri-Rajput-Sabha) जयपुर के अध्यक्ष गिरिराज सिंह लोटवाड़ा अब हमारे बीच नहीं रहे। बरसों तक समाज सेवा में जुटे रहे गिरिराज सिंह लोटवाड़ा (Giriraj Singh Lotwara)  ने गुरुवार को सुबह अंतिम सांस ली। कोरोना संक्रमण (Corona infection) से पीड़ित लोटवाड़ा अंतिम सांस तक समाज सेवा से जुड़े रहे। दुख की बात तो यह है कि लोटवाड़ा मन में एक टीस लेकर दुनिया से अलविदा हुये। यह टीस थी सिस्टम की लापरवाही से हो रही आमजन परेशानी की। यह टीस थी दूसरों को सुरक्षित रखने की और सिस्टम को 'सिस्टम' में लाने की। 


इस दर्द की गहराई की इंतिहा को समझें

लोटवाड़ा ने अपनी इस टीस को अपने स्वर्गवास से एक सप्ताह पूर्व सोशल मीडिया में बयां किया था। आप भी पढ़िए, जानिए और इस टीस को समझिये। पार्टी पॉलिटिक्स को परे रखकर इस टीस को महसूस कीजिये। इस दर्द की गहराई की इंतिहा को समझने की कोशिश कीजिए। बाकी परिणाम तो आज आपके सामने है ही। लोटवाड़ा ने अपनी इस टीस को फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिये 19 अप्रेल को सुबह 11 बजकर 14 मिनट पर शेयर किया था। 


पढ़िये गिरिराज सिंह लोटवाड़ा की पीड़ा उन्हीं के शब्दों में

गिरिराज सिंह लोटवाड़ा ने अपनी पोस्ट में लिखा कि ''आज सुबह 9 बजे 70 km गाड़ी में आ जा कर covid का टेस्ट करवाया। मैं आभारी हूं महुआ chc के पूर्ण स्टॉफ डाक्टर्स ने आत्मीयता दिखाते हुए टेस्ट किया। मैं उनको धन्यवाद औए आभार प्रकट करता हु। परंतु मन में एक पीड़ा है। मैंने चिकित्सा मंत्री जी को निवेदन किया था कि टेस्ट की व्यवस्था मरीज़ के घर या गांव phc में व्यवस्था करवाई जावे। पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। मेरा मतलब स्वयं की जांच से नहीं था पर मंत्री जी वो दिन भूल गये जो तीन बार चुनाव हार चुके और उप चुनाव में अजमेर से चुनाव लड़ा।'' 


shri-rajput-sabha-jaipur-president-giriraj-singh-lotwara-departed-from-world-with-this-twinge-इस-टीस-के-साथ-दुनिया-से-विदा-हुए-राजपूत-सभा-जयपुर-अध्यक्ष-गिरिराज-सिंह-लोटवाड़ा
लोटवाड़ा ने मन में दबी अपनी टीस को फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिये शेयर किया।

राजपूत समाज सिर्फ स्वाभिमान को लेकर जिन्दा है

लोटवाड़ा ने आगे अपना दर्द बयां करते हुये लिखा ''हमारा समाज जो bjp का कट्टर समर्थक था पर आप राजपूत सभा पधारे और समाज को आश्वस्त किया कि वे समाज के साथ खड़े रहेंगे। पर आप तो चुनाव जीतने के बाद आज तक राजपूत सभा नहीं पधारे। आप फिर mla का चुनाव लड़ लिए और विजयी हुए लेकिन आज तक आपका समर्थन करने वाले मिलने को भी तरस गए। मंत्रीजी विनम्र निवेदन है अहंकार होता है पद के साथ पर अपने सहयोगियों को नज़र अंदाज करना कहां तक जायज है। राजपूत समाज सिर्फ स्वाभिमान को लेकर जिन्दा है। आपको कुर्सी मुबारक, जै हिन्द,जै भारत।।।''


सहयोग के बदले रुसवाई मिले तो क्या किया जाये ?

किसी समाज को सामाजिक स्तर पर नेतृत्व प्रदान करने वाले व्यक्ति की यह पीड़ा अपने आप में बहुत कुछ कहती है। कई बार इंसान जब बोलकर कुछ नहीं कह पाता है वह उसे कागज पर उतार देता है। अब जमाना कागज का नहीं सोशल मीडिया का है, लिहाजा लोटवाड़ा ने अपनी टीस को उस पर उतार दिया। उनकी यह टीस बहुत कुछ कहती है। उनकी यह टीस बताती है कि जब कोई समाज किसी भी पार्टी के नेता के समर्थन में किसी संस्था के माध्यम से कुछ करता है तो उसे अंदरुनी स्तर कई झंझावातों को झेलना पड़ता है। कुछ रूठ जाते हैं तो उन्हें मनाना पड़ता है। समाज का हर इंसान समाज का नेतृत्व करने वाले के फैसले से खुश नहीं होता है। लेकिन भी फिर भी संस्था बड़ी होती है। व्यक्ति नहीं। लेकिन बाद में जब उसी संस्था या समाज को बदले में रुसवाई मिलती है तो पीड़ा होना लाजिमी है। 


shri-rajput-sabha-jaipur-president-giriraj-singh-lotwara-departed-from-world-with-this-twinge-इस-टीस-के-साथ-दुनिया-से-विदा-हुए-राजपूत-सभा-जयपुर-अध्यक्ष-गिरिराज-सिंह-लोटवाड़ा
लोटवाड़ा ने कहा कि राजपूत समाज सिर्फ स्वाभिमान को लेकर जिन्दा है।

टीस गहरा असर दिखाती है, वह कभी कभी नश्तर बन जाती है

कभी कभी यह पीड़ा व्यक्ति विशेष से लेकर समाज तक में घर कर जाती है। वह बड़ा नश्तर भी बन जाती है। उसके परिणाम भविष्य में नकारात्मक भी हो सकते हैं। बाद यह बाद दीगर है कि उसे समझने में कुछ समय लग जाये, लेकिन वह कहीं ना कहीं अपना असर जरुर दिखाती है। किसी भी नेता की कुर्सी का समय बड़ा अल्प होता है। उस अल्प समय में भी सैंकड़ों लोग उस कुर्सी पर नजर गड़ाये हुये हैं। कुर्सी पर बैठने वाला अगर थोड़ी सी भी असावधानी बरतता है तो उसे भविष्य में उसकी कीमत चुकानी पड़ती है। 


एक या दो वोट भी नेता की कुर्सी खींचने में सक्षम होते हैं

कई बार यह कीमत भले ही सैंकड़ों या हजारों वोट के रूप में नहीं हो, लेकिन एक या दो वोट चोट भी बहुत बड़ी होती है। ये एक या दो वोट किसी भी जनाधार वाले या दमदार नेता की कुर्सी खींचने में सक्षम होते हैं। राजस्थान से लेकर पूरे देश की जनता तक इस 1 वोट की कीमत देख चुका है। 1 वोट की कीमत सरकार गिरा भी सकती है और सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के बाद नेता की टांग खींच भी सकती है। क्योंकि जीत से ज्यादा टीस बड़ी होती है। टीस दिखती नहीं है लेकिन असर गहरा दिखाती है। 



Tuesday, April 13, 2021

एक समाज, एक मंच, एक विचारधारा, एक लक्ष्य

 


किसी भी समाज की उन्नति के लिये सबसे पहली आवश्यकता है एकजुटता। इस एकजुटता के लिये जरुरी है एक मंच। इस मंच के लिये जरुरी है समाज की सहभागिता। सहभागिता के लिये आवश्यक है संवाद। संवाद के लिये सबसे महत्वपूर्ण है साधन। वर्तमान में यह साधन है 'सोशल मीडिया।' इस मीडिया के माध्यम से आज कोई भी व्यक्ति कहीं भी किसी भी मंच पर अपनी आवाज को पहुंचा सकता है। जरुरी है कि बात में दम हो, तथ्य हो, तर्क हो और वजन हो। यह सब संभव है विचारों के आदान-प्रदान तथा लगातार संवाद तथा आपके आसपास, देश-प्रदेश और विश्वव्यापी जानकारी से। 


वर्तमान समय में हर समाज निरंतर प्रगति की ओर बढ़ रहा है। वह विषय चाहे शिक्षा का हो, व्यापार का हो, राजनीति का हो या फिर सामाजिक कुरीतियां छोड़ने का। कुछ समाज इस दिशा में बेहद तेजी के साथ सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं। कुछ समाज की गति धीमी है। क्षत्रिय समाज भी उन्हीं में शामिल है। इसकी गति को तेज करने के लिये छोटे-छोटे कदम बढ़ाने की जरुरत है। बदलाव एक साथ नहीं आता है, लेकिन उसकी शुरुआत कहीं न कहीं से करनी होती है। जरुरी नहीं कि हर कदम सही हो। हर प्रयास सफल हो। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम प्रयास ही नहीं करें। समाज का इतिहास, वर्तमान और भविष्य किसी भी समाज बंधु से छिपा हुआ नहीं है।  


हर व्यक्ति दूसरे की कामयाबी और असफलता से कुछ न कुछ सीखता है। बेशक दृष्टिकोण उसका अपना होता है। यह सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी। देश दुनिया की जानकारी आज हर कहीं मौजूद है। समाज विशेष की जानकारी और उसमें होने वाली हलचल, उसकी प्रगति के सोपान सार्वजनिक मंचों पर साझा तो होते हैं, लेकिन उनकी जानकारी सीमित होती है। देश-दुनिया के साथ-साथ हमारे समाज में क्या हो रहा है ? कौन समाज बंधु किस क्षेत्र में सफलता के सोपान गढ़ रहा है। कहां समाज में या समाज के साथ गलत हो रहा है। उसकी जानकारी एक मंच पर मिले तो हम उसके माध्यम से एकदूसरे से जुड़ सकते हैं और सहयोग कर सकते हैं. 


भारत सरकार और विभिन्न राज्यों की सरकारें हमारे समाज के लिये क्या कर रही हैं। कौन सी नयी पुरानी योजनायें हमारे लिये फायदेमंद है। कौन सी ऐसी बातें हैं जो हमारे समाज के लिये घातक हैं। किन सरकारी कदमों का समाज पर क्या असर पड़ रहा है। योजनाओं का हम किस तरह से फायदा उठा सकते हैं। किस क्षेत्र में युवाओं के लिये क्या संभावनायें हैं। कौन इन संभावनाओं का दोहन करने में सरकारी और निजी क्षेत्र में उच्च पदस्थ समाज बंधु हमें क्या गाइड कर सकते हैं। कैसे उनकी गाइडेंस का लाभ हम ले सकते हैं। सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में कौन समाज बंधु क्या बड़ी और अहम भूमिका निभा रहा है। उनसे हमें क्या मदद प्राप्त हो सकती है। इन पर जानकारी साझा करने के लिये यह मंच तैयार किया गया है। 


उम्मीद है इसमें आप सबका का यथायोग्य सहयोग प्राप्त होगा। बस जानकारी सही और सटीक होनी चाहिये ताकि इस मंच की विश्वनयीता बने। जानकारी स्वयं या दूसरे के समाज में राग द्वेष फैलाने वाली नहीं हो। सकारात्मक ऊर्जा के साथ एक मंच को शुरू करने का प्रयास किया है ताकि यह मंच समाज के लिये कुछ उपयोगी साबित हो सके। हम एक दूसरे से कुछ सीख सकें। एक दूसरे के सहयोग से आगे बढ़ सकें। मंच को और बेहतर तथा उपयोगी बनाने के लिये आपके सुझाव सादर आमंत्रित हैं। जल्द ही इसका फेसबुक फेज और सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफॉर्म पर भी उपस्थिति दर्ज कराई जायेगी।

समाज की युवा पीढ़ी को प्रोत्साहित करने वाली प्रोग्रेसिव और रचनात्मक जानकारी साझा करने के लिये इस Mail ID पर सामग्री भेज सकते हैं। kshatradharma777@gmail.com


सादर। 

जय क्षात्र धर्म।