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गिरिराज सिंह लोटवाड़ा |
श्री राजपूत सभा (Shri-Rajput-Sabha) जयपुर के अध्यक्ष गिरिराज सिंह लोटवाड़ा अब हमारे बीच नहीं रहे। बरसों तक समाज सेवा में जुटे रहे गिरिराज सिंह लोटवाड़ा (Giriraj Singh Lotwara) ने गुरुवार को सुबह अंतिम सांस ली। कोरोना संक्रमण (Corona infection) से पीड़ित लोटवाड़ा अंतिम सांस तक समाज सेवा से जुड़े रहे। दुख की बात तो यह है कि लोटवाड़ा मन में एक टीस लेकर दुनिया से अलविदा हुये। यह टीस थी सिस्टम की लापरवाही से हो रही आमजन परेशानी की। यह टीस थी दूसरों को सुरक्षित रखने की और सिस्टम को 'सिस्टम' में लाने की।
इस दर्द की गहराई की इंतिहा को समझें
लोटवाड़ा ने अपनी इस टीस को अपने स्वर्गवास से एक सप्ताह पूर्व सोशल मीडिया में बयां किया था। आप भी पढ़िए, जानिए और इस टीस को समझिये। पार्टी पॉलिटिक्स को परे रखकर इस टीस को महसूस कीजिये। इस दर्द की गहराई की इंतिहा को समझने की कोशिश कीजिए। बाकी परिणाम तो आज आपके सामने है ही। लोटवाड़ा ने अपनी इस टीस को फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिये 19 अप्रेल को सुबह 11 बजकर 14 मिनट पर शेयर किया था।
पढ़िये गिरिराज सिंह लोटवाड़ा की पीड़ा उन्हीं के शब्दों में
गिरिराज सिंह लोटवाड़ा ने अपनी पोस्ट में लिखा कि ''आज सुबह 9 बजे 70 km गाड़ी में आ जा कर covid का टेस्ट करवाया। मैं आभारी हूं महुआ chc के पूर्ण स्टॉफ डाक्टर्स ने आत्मीयता दिखाते हुए टेस्ट किया। मैं उनको धन्यवाद औए आभार प्रकट करता हु। परंतु मन में एक पीड़ा है। मैंने चिकित्सा मंत्री जी को निवेदन किया था कि टेस्ट की व्यवस्था मरीज़ के घर या गांव phc में व्यवस्था करवाई जावे। पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। मेरा मतलब स्वयं की जांच से नहीं था पर मंत्री जी वो दिन भूल गये जो तीन बार चुनाव हार चुके और उप चुनाव में अजमेर से चुनाव लड़ा।''
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लोटवाड़ा ने मन में दबी अपनी टीस को फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिये शेयर किया। |
राजपूत समाज सिर्फ स्वाभिमान को लेकर जिन्दा है
लोटवाड़ा ने आगे अपना दर्द बयां करते हुये लिखा ''हमारा समाज जो bjp का कट्टर समर्थक था पर आप राजपूत सभा पधारे और समाज को आश्वस्त किया कि वे समाज के साथ खड़े रहेंगे। पर आप तो चुनाव जीतने के बाद आज तक राजपूत सभा नहीं पधारे। आप फिर mla का चुनाव लड़ लिए और विजयी हुए लेकिन आज तक आपका समर्थन करने वाले मिलने को भी तरस गए। मंत्रीजी विनम्र निवेदन है अहंकार होता है पद के साथ पर अपने सहयोगियों को नज़र अंदाज करना कहां तक जायज है। राजपूत समाज सिर्फ स्वाभिमान को लेकर जिन्दा है। आपको कुर्सी मुबारक, जै हिन्द,जै भारत।।।''
सहयोग के बदले रुसवाई मिले तो क्या किया जाये ?
किसी समाज को सामाजिक स्तर पर नेतृत्व प्रदान करने वाले व्यक्ति की यह पीड़ा अपने आप में बहुत कुछ कहती है। कई बार इंसान जब बोलकर कुछ नहीं कह पाता है वह उसे कागज पर उतार देता है। अब जमाना कागज का नहीं सोशल मीडिया का है, लिहाजा लोटवाड़ा ने अपनी टीस को उस पर उतार दिया। उनकी यह टीस बहुत कुछ कहती है। उनकी यह टीस बताती है कि जब कोई समाज किसी भी पार्टी के नेता के समर्थन में किसी संस्था के माध्यम से कुछ करता है तो उसे अंदरुनी स्तर कई झंझावातों को झेलना पड़ता है। कुछ रूठ जाते हैं तो उन्हें मनाना पड़ता है। समाज का हर इंसान समाज का नेतृत्व करने वाले के फैसले से खुश नहीं होता है। लेकिन भी फिर भी संस्था बड़ी होती है। व्यक्ति नहीं। लेकिन बाद में जब उसी संस्था या समाज को बदले में रुसवाई मिलती है तो पीड़ा होना लाजिमी है।
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लोटवाड़ा ने कहा कि राजपूत समाज सिर्फ स्वाभिमान को लेकर जिन्दा है। |
टीस गहरा असर दिखाती है, वह कभी कभी नश्तर बन जाती है
कभी कभी यह पीड़ा व्यक्ति विशेष से लेकर समाज तक में घर कर जाती है। वह बड़ा नश्तर भी बन जाती है। उसके परिणाम भविष्य में नकारात्मक भी हो सकते हैं। बाद यह बाद दीगर है कि उसे समझने में कुछ समय लग जाये, लेकिन वह कहीं ना कहीं अपना असर जरुर दिखाती है। किसी भी नेता की कुर्सी का समय बड़ा अल्प होता है। उस अल्प समय में भी सैंकड़ों लोग उस कुर्सी पर नजर गड़ाये हुये हैं। कुर्सी पर बैठने वाला अगर थोड़ी सी भी असावधानी बरतता है तो उसे भविष्य में उसकी कीमत चुकानी पड़ती है।
एक या दो वोट भी नेता की कुर्सी खींचने में सक्षम होते हैं
कई बार यह कीमत भले ही सैंकड़ों या हजारों वोट के रूप में नहीं हो, लेकिन एक या दो वोट चोट भी बहुत बड़ी होती है। ये एक या दो वोट किसी भी जनाधार वाले या दमदार नेता की कुर्सी खींचने में सक्षम होते हैं। राजस्थान से लेकर पूरे देश की जनता तक इस 1 वोट की कीमत देख चुका है। 1 वोट की कीमत सरकार गिरा भी सकती है और सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के बाद नेता की टांग खींच भी सकती है। क्योंकि जीत से ज्यादा टीस बड़ी होती है। टीस दिखती नहीं है लेकिन असर गहरा दिखाती है।