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Tuesday, April 20, 2021

madhubani murder case: पुलिस, अपराधियों और राजनीति का बेखौफ गठजोड़, पीड़ितों के लिये कौन आयेगा आगे ?


बिहार के मधुबनी जिले में हत्याकांड के शिकार के हुये मृतकों के बच्चों का खैरख्वाह कौन है


भारत में अपराधों के लिये कुख्यात हो चुके बिहार राज्य के मधुबनी जिले में हुई पांच लोगों की हत्या कोई सामान्य घटना नहीं है। मधुबनी जिले के बेनीपट्टी थाना इलाके के महमदपुर गांव में इस हत्याकांड ने होली के दिन के एक परिवार की खुशियों रंगों को बदरंग कर दिया। यहां राजपूत समाज के एक ही परिवार के तीन सगे भाइयों समेत पांच लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या का दी गई। इस वारदात ने जातीय संघर्ष की ऐसी लकीर खींच दी जो शायद ही कभी मिटेगी। लेकिन यह घटना कैसी घटी और इसके पीछे क्या कारण रहे। क्या यह हत्याकांड पुलिस, अपराधियों और राजनीति का बेखौफ गठजोड़ का परिणाम था। इसको समझना जरुरी है। 


बेनीपट्टी हत्याकांड पर शुरू हुई राजनीति

होली पर सरेआम हुई इस गंभीर आपराधिक वारदात ने पीड़ित परिवार के बड़े बुजुर्गों को तोड़कर रख दिया है। बच्चों के सपनों को बिखर दिया है। परिवार की महिलाओं को सिसकियों में डूबो दिया है। उसके बाद इस पर जमकर राजनीति शुरू हो गई है। लेकिन मूल सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ ? किसके इशारे पर यह सब हुआ। किसकी मुखबिरी और किसके बुलंद हौंसले के कारण हुआ। उसके बाद उपजे हालात में पीड़ित परिवार का खैरख्वाह आखिर कौन है जो तात्कालिक नहीं बल्कि इन जख्मों को भरने तक उनका संबल बनेगा ? सरकार या समाज। जवाब किसी के पास नहीं है। 


पीड़ित परिवार बेबस है ? गमों में डूबा हुआ है

इस वारदात में शामिल रहे अपराधियों को कब सजा मिलेगी और कब मृतकों की आत्मा को शांति। कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन आज पीड़ित परिवार बेबस है ? गमों में डूबा हुआ है। सबसे बड़ी पीड़ा यह कि अब उस पर राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही है। राजनीति और वर्चस्व का दम दिखाया जा रहा है। इन सबकी कीमत कौन चुका रहा है। पीड़ित परिवार। क्यों इस परिवार इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है ? इस परिवार ने किसी का बिगाड़ा था जो उसे यह सजा मिली। यह पूरी तरह से साफ नहीं हो पाया है। अभी आधी अधूरी बातें सामने आ रही हैं। वारदात के पीछे के कारणों को लेकर दावे तो खूब किये जा रहे हैं, लेकिन इनमें सच्चाई कितनी है यह अभी सामने आना बाकी है। 


मधुबनी हत्याकांड के कारण अभी सामने आने बाकी है।।
मधुबनी नरसंहार केस की जांच चल रही है।

सत्ता देख रही है विपक्ष हमलावर हो रहा है

इस पूरे घटनाकम्र के बाद राजनीति चरम पर है और सत्ता देख रही है। विपक्ष सरकार पर हमलावर हो रहा है। पीड़ित परिवार को ढांढस बंधाने और न्याय दिलाने के लिये राजपूत समाज एकजुट होने की कोशिश कर रहा है। सत्ता भी शायद अभी सोच विचार कर रही है कि आखिर किसका पलड़ा भारी है। पीड़ितों का या फिर अपराधियों का। चारों तरफ से न्याय की आवाज गूंज रही है। पीड़ितों के घर रहनुमाओं की भीड़ भी लगी है। शिक्षा और आर्थिक संबल दिये जाने वालों की लंबी लाइनें लगी है। लेकिन फिर भी समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इस परिवार का खैरख्वाह कौन है ?


यह बताये जा रहे हैं हत्या के कारण

मधुबनी नरसंहार को लेकर देशभर में छायी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस पूरे कांड की वजह आरोपियों और पीड़ित परिवार दोनों पक्षों के बीच की पुरानी रंजिश को माना जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट और पुलिस के बयानों के मुताबिक यह रंजिश एक मठ (मंदिर) की जमीन को लेकर है। इस रंजिश के साथ ही दूसरा मामला गत वर्ष नवंबर में उस समय जुड़ गया जब मंदिर की इस जमीन पर बने जलाशय से मछली पकड़ने की बात को लेकर दोनों पक्ष भिड़ गये थे। इससे यह मामला पुलिस और कोर्ट कचहरी पहुंचा। उसके बाद इस मसले को लेकर वर्चस्व और साजिशों का सिलसिला तेज हो गया। 


होली के दिन दिया गया साजिशों का अंजाम

इन साजिशों को अंजाम देने के लिये आरोपी पक्ष ने होली के दिन को चुना और गुलाल से नहीं खून से होली खेल डाली। 29 मार्च को अंजाम दी गई इस वारदात ने बिहार समेत पूरे देश को हिला डाला। ये तो कतई संभव नहीं है कि किसी इलाके में इतनी बड़ी साजिश रची जा रही हो और स्थानीय स्तर पुलिस की खुफिया टोली उससे बेखबर हो। बयान तो कुछ भी दिया जा सकता है, लेकिन उस पर यकीन हो यह जरुरी नहीं है। 

आरोपियों नेे बेनीपट्टी हत्या कांड की साजिश को होली के दिन अंजाम दिया।

इस पूरी कितने राजनीतिक पेंच हैं

नीतिश कुमार सरकार में हुये इस हत्याकांड में जातीय और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में कितने राजनीतिक पेंच है समझना मुश्किल तो नहीं है लेकिन कोई समझना नहीं चाहता है। सवाल केवल सत्ता और पुलिस से ही नहीं है सवाल यह भी है कि आखिरकार पीड़ितों का खैरख्वाह कौन है जो होली के गुलाल में मिले खून को उससे अलग करेगा। तेजस्वनी यादव से लेकर तमाम विपक्षी नेता पीड़ित परिवार को संबल बंधाने आ चुके हैं। लेकिन अभी तक मामले की जड़ तक नहीं पहुंचा जा सका है। पहुंचा जा सकता है लेकिन ना तो पुलिस पहुंचना चाहती है और ना नहीं राजनीति पहुंचने देना चाहती है।   


राजनीति से जु़ड़े कई नाम सामने आये हैं

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस मामले में नामजद कुल 34 आरोपियों में से 18 ब्राह्मण, 13 राजपूत, 2 अनुसूचित जाति वर्ग से और एक अन्य वर्ग से बताया जा रहा है। आरोपियों की जातीय फेहरिस्त के आधार पर पुलिस का दावा है मामला जातीय संघर्ष का नहीं बल्कि आपसी रंजिश का है। पूरे मामले में राजनीति से जु़ड़े कई नाम सामने आये हैं। कइयों पर अंगुलियां उठ रही है। कहने को तो राज्य के मुखिया नीतीश कुमार का कहना है कि कोई आरोपी बचेगा नहीं। पुलिस का भी दावा है कि जातिगत वर्चस्व का कोई मामला नहीं है। 


आरोप है कि आरोपियों को पुलिस का खुला संरक्षण है

वहीं पुलिस यह भी का कहना है कि अब यह मामला इतना ज्यादा सुर्खियों में आ चुका है कि किसी को संरक्षण मिल सके ऐसा संभव ही नहीं है। दूसरी तरफ पीड़ित परिवार के मुखिया और अन्य परिजनों का आरोप है कि आरोपियों को पुलिस का खुला संरक्षण है। उनकी राजनीति में घुसपैठ अच्छी है। पुलिस अब भले ही आरोपों के बीच वारदात के तार जोड़ने में लगी हो। राजनीतिक दल भले ही एक दूसरे को टारगेट कर रहे हो। सरकार भले ही न्याय की दुहाई दे रही हो। लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुये फिर वही यक्ष प्रश्न सामने मुंह बाये खड़ा है कि आखिर पीड़ितों का खैरख्वाह कौन है। सरकार, समाज, पुलिस, न्यायपालिका या फिर ईश्वर। जवाब मिले तो बताइयेगा।