क्षत्रिय समाज को अनुशासन का पाठ पढ़ाने वाले संगठन श्री क्षत्रिय युवक संघ के 75 वर्ष पूर्ण होने पर ऐतिहासिक हीरक जयंती समारोह का गुलाबी नगरी जयपुर गवाह बनने जा रहा है। छोटी काशी न सिर्फ प्रदेश बल्कि देशभर के क्षत्रियों के समागम का गवाह बनेगा। आयोजन बुधवार 22 दिसंबर को जयपुर के सीकर रोड स्थित भवानी निकेतन में होगा। इस आयोजन में राष्ट्रीय स्तर के सभी राजपूत नेता एक साथ नजर आएंगे। भले वो बीजेपी से जुड़े हो या कांग्रेस से या अन्य किसी राजनीतिक दल से। समारोह के क्रम में बाड़मेर से रवाना होकर विभिन्न जिलों की यात्रा करते हुए हीरक जयंती रथ ने करीब 5000 किलोमीटर की यात्रा पूरी की है। श्री क्षत्रिय युवक संघ: राजपूत समाज की सामूहिक संस्कारमयी मनावैज्ञानिक कर्मप्रणाली |
Kshatriya Samaj
One society. one platform. one ideology. one goal
Tuesday, December 21, 2021
श्री क्षत्रिय युवक संघ हीरक जयंती समारोह: 22 दिसंबर को जयपुर में बनेगा इतिहास
Sunday, June 13, 2021
स्मृति शेष: 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के 20 पैटन टैंकों को नेस्तनाबूत करने वाले महावीर ब्रिगेडियर रघुवीर सिंह राजावत का निधन
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भारत पाक युद्ध के हीरो महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर रघुवीर सिंह राजावत। |
भारत पाक युद्ध के हीरो महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर रघुवीर सिंह राजावत (Mahavir Chakra winner Brigadier Raghuveer Singh Rajawat) का आज निधन हो गया। ब्रिगेडियर राजावत ने आज जयपुर स्थित में अपने राजावत फार्म में अंतिम सांस ली। उसके बाद दोपहर में पूरे सैन्य सम्मान (Military honors) के साथ उनके फार्म हाउस पर ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। कोविड प्रोटोकॉल के चलते सीमित संख्या में परिजन और सैन्यकर्मी ही अंतिम संस्कार के समय में मौजूद रहे।
ब्रिगेडियर रघुवीर सिंह राजावत का जन्म राजस्थान के टोंक जिले के सोडा गांव में 2 नवंबर 1923 को हुआ था। सोढ़ा निवासी ठाकुर प्रताप सिंह राजावत के सुपुत्र रघुवीर सिंह जी ने 22 जनवरी 1945 में सवाई मान गार्ड्स जयपुर से सेना में कमीशन लिया था। उसके बाद राजावत ने सेना के कई सैन्य और नागरिक कोर्स करने के साथ ही 1974 तक द्यितीय विश्व युद्ध समेत कई युद्धों में भाग लिया। अपने सैन्य सेवा काल में देश के विभिन्न भागों में राष्ट्र की सेवा करने के साथ ही आपने कई एशियाई और यूरोपीय देशों में उच्च सैन्य पदों पर रहते हुये अपने शौर्य और प्रशासनिक कुशलता का परिचय दिया था।
श्री क्षत्रिय युवक संघ: राजपूत समाज की सामूहिक संस्कारमयी मनावैज्ञानिक कर्मप्रणाली
युद्ध भूमि को 20 पैटन टैंकों का कब्रिस्तान बना दिया था
वर्ष 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान पंजाब के खेमकरन-लाहौर सेक्टर में आसल उत्तर की लड़ाई में राजपूताना राइफल्स की एक बटालियन के कमांडर के रूप में लेफ्टिनेंट कर्नल रघुवीर सिंह राजावत ने टैंकों के बीच गोलों की बौछार को झेलते हुये दुश्मन के आर्मड डिवीजन पर निर्णायक हमला किया। इस दौरान उन्होंने युद्ध भूमि को 20 पैटन टैंकों का कब्रिस्तान बना दिया था। उनकी इस बहादुरी और साहसपूर्ण नेतृत्व के लिये 7 सितंबर 1965 को राष्ट्रपति द्वारा लेफ्टिनेंट रघुवीर सिंह राजावत को 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया।
श्री क्षत्रिय युवक संघ: राजपूत समाज की सामूहिक संस्कारमयी मनावैज्ञानिक कर्मप्रणाली
सैन्य परंपरा के नये उच्चतम मापदंड स्थापित किये
ब्रिगेडियर राजावत ने भारत-पाक यु्द्ध ही नहीं बल्कि सेना में रहते हुये सैन्य परंपरा के नये उच्चतम मापदंड स्थापित किये थे। कई राष्ट्रीय पुरस्कारों, मैडलों और प्रशस्ती पत्रों से सम्मानित ब्रिगेडियर रघुवीर सिंह ने 1971 में बांग्लादेश युद्ध के दौरान एक लाख बंदियों के निगरानी कैम्पों की देखरेख का उत्तरदायित्व भी बड़ी कुशलता से संभाला था।
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बिग्रेडियर रघुवीर सिंह सोढ़ा सेना से रिटायर होने के बाद तीन बार सरपंच भी रहे। |
सामाजिक सेवा का कार्य भी बखूबी निभाया
सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद बिग्रेडियर रघुवीर सिंह राजावत ने सामाजिक सेवा का कार्य भी बखूबी निभाया। वे अपने गांव सोढ़ा के तीन बार सरपंच रहे। बिग्रेडियर रघुवीर सिंह राजावत के दो पुत्र हैं। बड़े बेटे संग्राम सिंह भी भारतीय सेना में मेजर रहे। छोटे बेेटे नरेन्द्र सिंह राजावत राजपूत सभा जयपुर के तीन बार अध्यक्ष रहे है।बिग्रेडियर रघुवीर सिंह राजावत के बाद उनकी पौत्री एवं नरेन्द्र सिंह राजावत की पुत्री छवि राजावत भी सोडा ग्राम पंचायत की तीन बार सरपंच रही हैं। वहीं राजावत के दामाद रणविजय सिंह भी सेना में कार्यरत रहे हैं। वे सेना से कर्नल के पद से सेवानिवृत हुये हैं। ब्रिगेडियर रघुवीर सिंह जी की पुत्री एवं रणविजय सिंह की पत्नी आशा कंवर का पिछले माह ही देहांत हुआ है.
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सीएम अशोक गहलोत ने जताया शोक। |
Sunday, May 9, 2021
महाराणा प्रताप जयंती विशेष : अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक राष्ट्र गौरव महाराणा प्रताप, पढ़िये 30 महत्वपूर्ण तथ्य
महाराणा प्रताप अधर्म के आगे कभी नहीं झुके
महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा किसी से छिपी हुई नहीं है। शौर्य एवं स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप की संघर्ष की गाथा बच्चे-बच्चे की जुबान है। मेवाड़ से लेकर जयपुर और अन्य स्थानों पर कई जगह ऑन लाइन वर्चुवल कार्यक्रम हुये। वेबीनार के जरिये महाराणा प्रताप को याद किया गया। अद्भुत शौर्य, अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प के अद्वितीय प्रतीक वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने हिन्द देश का गौरव बढ़ाया। वे हर भारतीय के दिल में आज भी मौजूद हैं। राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले महाराणा प्रताप अधर्म के आगे कभी नहीं झुके। देशभक्ति से ओत-प्रोत, उनका जीवन हमें मातृभूमि पर अपना सर्वस्व समर्पित करने की सीख देता है।
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अकबर की विशाल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ
9 मई, 1540 ई. को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में में जन्मे महाराणा प्रताप भारत के मान-सम्मान, स्वाभिमान, स्वावलंबन, त्याग और वीरता के प्रतीक हैं। महाराणा प्रताप के पिता का नाम महाराणा उदय सिंह (द्वितीय) और माता का नाम रानी जीवंत कंवर था। महाराणा प्रताप अपने पच्चीस भाइयों में सबसे बड़े थे इसलिए उनको मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाया गया। उनके पास चेतक घोड़ा और रामप्रसाद हाथी स्वामी भक्त थे। 18 जून, 1576 को अकबर की विशाल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। महाराणा प्रताप को भील, इत्यादि समाज के सभी राष्ट्र भक्तों का साथ मिला। महाराणा प्रताप की सेना में झालामान, डोडिया भील, रामदास राठौड़ और हाकिम खां सूर जैसे शूरवीर थे।
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गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं
हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध में हार जीत का निर्णय नहीं निकला। युद्ध बाद महाराणा प्रताप परिवार सहित जंगलों में विचरण करते हुए अपनी सेना को संगठित करते रहे। भामाशाह की ओर से आर्थिक सहयोग से महाराणा को पुनः सेना संगठित करने में काफी सहयोग मिला। महाराणा प्रताप दुनिया के उन महान शासकों में से एक मिशाल हैं जिनकी वीरता, शौर्य-पराक्रम के किस्से और गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वियतनाम जैसा छोटा सा देश अमेरिका जैसे महाशक्ति से महाराणा प्रताप की प्रेरणा से लंबे समय तक युद्ध लड़ता रहा। महाराणा प्रताप की मौत की खबर सुनकर अकबर भी रोया था।
श्री क्षत्रिय युवक संघ: राजपूत समाज की सामूहिक संस्कारमयी मनावैज्ञानिक कर्मप्रणाली
महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य (इतिहास के विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त)
- नाम - श्री महाराणा प्रताप सिंह
- जन्म - 9 मई, 1540 ई.
- जन्म भूमि - कुम्भलगढ़, राजस्थान
- पुण्य तिथि - 29 जनवरी, 1597 ई.
- पिता - श्री महाराणा उदयसिंह
- माता - राणी जीवंत कंवर
- राज्य - मेवाड़
- शासन काल - 1568–1597ई.
- शासन अवधि - 29 वर्ष
- वंश - सूर्यवंश
- राजवंश - सिसोदिया
- राजघराना - राजपूताना
- धार्मिक मान्यता - हिंदू धर्म
- युद्ध - हल्दीघाटी का युद्ध
- राजधानी - उदयपुर
- पूर्वाधिकारी - महाराणा उदयसिंह
- उत्तराधिकारी - राणा अमर सिंह
एक समाज, एक मंच, एक विचारधारा, एक लक्ष्य
महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारियां-
- - महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी।
- - महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।
- - महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था। वहीं कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था।
- महाराणा प्रताप के कवच, भाला, ढाल और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।
- - महाराणा प्रताप दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में।
- - हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहां जमीनों में तलवारें पाई गईं।
- - हल्दी घाटी में आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में मिला था।
- - महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा श्री जैमल मेड़तिया जी ने दी थी।
- - उस युद्ध में 48000 मारे गए थे। इनमें 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे
- - आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान
- उदयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित है।
- - हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और
- - अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए।
- - महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है
- - महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारों लोगों ने भी घर छोड़ा
- - गाड़िया लुहारों दिन रात राणा की फौज के लिए तलवारें बनाईं। इसी
- समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाड़िया लोहार कहा जाता है।
- - मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में
- अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे।
- - राणा बिना भेदभाव के उनके साथ रहते थे।
- आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील।
- - महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ।
- - चेतक का एक टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहां चेतक घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है। वहां पर चेतक की मृत्यु हुई।
- - वहां चेतक मंदिर बना हुआ है। चेतक बहुत ताकतवर था। उसके
- मुंह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी।
- - मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था।
- - सोने चांदी और महलों को छोड़कर वे 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे।
- - अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं तो आधा हिंदुस्तान के वारिस होंगे लेकिन बादशाहत अकबर की ही रहेगी।
- - महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया।
- - महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था।
कोरोना काल: चिकित्सा व्यवस्थाओं में राजस्थान के राजा-महाराजाओं की अतुलनीय देन हैं ये बड़े अस्पताल
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कोरोना वायरस ने दुनियाभर में तबाही मचा रखी है। |
कोरोना काल (Corona era) में इसकी दूसरी लहर से दुनियाभर में भय का माहौल है। संक्रमण तेजी से फैलता जा रहा है और मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। मरीज बढ़ रहे हैं संसाधन कम पड़ रहे हैं। राजस्थान (Rajasthan) में भी हालात भयावह होते जा रहे हैं। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद हालात काबू में नहीं आ रहे हैं लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य (Surprise) होगा कि राजस्थान में आज के हालात में भी बड़े शहरों में वे ही अस्पताल कोरोना मरीजों को संभाले हुये जिनकी नींव बरसों पहले राजस्थान के विभिन्न राजपूत राजा-महाराजाओं (Rajput King-Maharajas) ने रखी थी।
हजारों मरीजों के लिये जीवनरेखा बने हुये हैं ये अस्पताल
यह बात दीगर है कि राजस्थान पत्रिका के संपादक गुलाब कोठारी जैसे कुछ तथाकथित बु्द्धिजीवी राज-महाराजाओं की मंशा पर गाहे-बगाहे सवाल उठाते हुये उन्हें खलनायक बताने से नहीं चूकते, लेकिन वे भूल जाते हैं कि राजस्थान में आज भी बड़े सरकारी एवं सार्वजनिक भवन वे चाहे अस्पताल हों या फिर कचरही सभी तत्कालीन राजा महाराजाओं की ही देन है। इन इमारतों की नींव इतनी मजबूत है कि वे आधुनिक समय में अल्ट्रा मॉर्डन और मजबूत कही जाने वाली बिल्डिंगों के मुकाबले आज भी शान से खड़ी हैं। वर्तमान हालात में अस्पताल सबसे ज्यादा अहम हो रहे हैं। आज हम आपको बताते हैँ राजस्थान के वे बड़े अस्पताल जिन्हें राजपूत राजाओं ने बनावाया और वे कोरोना काल में हजारों मरीजों के लिये जीवन रेखा बने हुये हैं।
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सवाई मानसिंह अस्पताल, जयपुर। |
सवाई मानसिंह अस्पताल, जयपुर
राजस्थान का सबसे बड़ा और देशभर में ख्याति प्राप्त सवाई मानसिंह अस्पताल का निर्माण 1934 में शुरू किया गया था। यह 1936 में बनकर तैयार हुआ। इसका नाम जयपुर के तत्त्कालीन महाराजा सवाई मानसिंह के नाम पर रखा गया। शुरुआत में इसे 200 बेड का अस्पताल बनाया गया था। लेकिन अस्पताल के के लिये इतनी रिजर्व जमीन रखी गई कि वह आने वाले 80-90 बरसों में पर्याप्त रूप से अपना विस्तार कर सके। आज इस अस्पताल में 4200 बेड हैं। इसमें 1500 डॉक्टर और रेजिडेंट डॉक्टर हैँ। वहीं करीब 1800 का नर्सिंग स्टाफ है। आज इस अस्पताल पर पूरे प्रदेश का भार है क्योंकि यहां सभी सुविधायें उपलब्ध हैं।
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महात्मा गांधी अस्पताल, जोधपुर। |
महात्मा गांधी अस्पताल एवं उम्मेद अस्पताल, जोधपुर
महात्मा गांधी अस्पताल को जोधपुर के तत्कालीन महाराजा उम्मेद सिंह ने 1932 में बनवाया था। उस समय अस्पताल का नाम विंडम अस्पताल रखा गया था। बाद में इसे ही 1949 में महात्मा गांधी अस्पताल नाम दे दिया गया। पहले अस्पताल की क्षमता 500 बेड की थी। उसका अब विस्तार कर दिया गया है। महाराजा उम्मेद सिंह ने इसके बाद 1938 में महिलाओं के अलग से उम्मेद जनाना अस्पताल का निर्माण करवाया। इसमें शुरुआत में 66 कॉटेज वार्ड के साथ एक हजार बेड की क्षमता रखी गई। बाद में इसकी सुविधाओं में और विस्तार कर दिया गया। ये दोनों अस्पताल आज स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में जोधपुर संभाग की बैक बोन हैं।
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महाराणा भूपाल अस्पताल, उदयपुर। |
विश्वप्रसिद्ध पर्यटन स्थल एवं लेकसिटी उदयपुर संभाग के सबसे बड़े अस्पताल महाराणा भूपाल अस्पताल का निर्माण 1937 में उदयपुर के तत्कालीन महाराणा ने करवाया। उस समय इस अस्पताल की शुरुआत छोटे स्तर पर हुई। बाद में इसकी सुविधाओं में विस्तार होता गया। वर्तमान में यहां 1500 बेड हैं। यहां भी चिकित्सा संबंधी लगभग सभी सुविधायें उपलब्ध हैं। यह अस्पताल राजस्थान से सटे मध्यप्रदेश के लोगों के लिये भी जीवन रेखा बना हुआ है।
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महाराव भीम सिंह अस्पताल, कोटा। |
महाराव भीम सिंह अस्पताल, कोटा
कोटा संभाग के इस सबसे बड़े अस्पताल के लिये कोटा के महाराव भीम सिंह ने अपने पोलो ग्राउंड की जमीन दी थी। वर्ष 1952 में इसकी नीवं रखी गई। यह पांच साल में बनकर तैयार हुआ और 1958 में महाराव भीम सिंह ने इसका उद्घाटन किया। आज इस अस्पताल की क्षमता करीब 750 बेड की है। यहां भी आधुनिक चिकित्सा से जुड़ी प्रमुख सुविधायें उपलब्ध है। यह अस्पताल भी हाड़ौती संभाग के कोटा-बूंदी, झालावाड़ और बारां जिले की बैक बोन है। यहां भी हाड़ौती संभाग के साथ ही इससे सटे मध्यप्रदेश राज्य के कई लोग इलाज करवाने आते हैं।
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पीबीएम अस्पताल, बीकानेर। |
पीबीएम अस्पताल, बीकानेर
आधुनिकता और विकास कार्यों के लिये दुनियाभर में पहचाने जाने वाले बीकानेर रियासत के तत्कालीन महाराज गंगा सिंह ने 1937 में इसका निर्माण करवाया। शुरुआती दौर में इसमें कोटेज वार्ड समेत 244 बेड की व्यवस्था रखी गई। इनमें 137 बेड पुरुषों और 107 महिलाओं के बेड रखे गये थे। कालांतार में इस अस्पताल का भी अच्छा विकास हुआ। आज इस अस्पताल की क्षमता करीब 1700 बेड है। किसी समय यह अस्पताल अपने संसाधनों और विशेषज्ञ डॉक्टरों के कारण नार्थ इंडिया का बेहतरीन अस्पताल था।
प्रदेश में दर्जनों अस्पताल राजा महाराजाओं के नाम पर हैं
इनके अलावा प्रदेशभर में पुराने समय में राजा महाराजाओं ने कई अस्पतालों और डिस्पेंसरियों का निर्माण कराया। वहीं कहीं अस्पतालों के लिये जमीनें उपलब्ध करवाई। प्रदेश के दर्जनों अस्पताल राजा महाराजाओं के नाम पर हैं। इन अस्पतालों के भवन इतने खुले स्वरूप में मजबूत बनाये गये थे कि आज भी शान से खड़े प्रदेश की जनता को चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध करवा रहे हैं।
Friday, May 7, 2021
Amazing-Success-Story-3 : जैसलमेर के सांकड़ा गांव की बहू प्रियंका कंवर बनी डॉक्टर, धोरों से निकली प्रतिभा
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प्रियंका कंवर जैसलमेर |
सफलता (Success) किसी की थाती नही है। सफलता की राहत दृढ़ इच्छाशक्ति (Strong will power) से निकलती है। पश्चिमी राजस्थान में भारत-पाकिस्तान की सरहद पर बसे जैसलमेर और बाड़मेर (Jaisalmer and Barmer) जैसे इलाके से इन दिनों कुछ सुकुनभरी खबरें आ रही हैं। रेतीले धोरों में बसे इन इलाकों में भी अब राजपूत समाज की बेटियां (Daughters of rajput society) शिक्षा के क्षेत्र में कदम आगे बढ़ा रही हैं। अब इन इलाकों की बेटियां भी समय के साथ कदम ताल मिलाकर अपना और परिवार का भविष्य संवारने में जुटी है। गति भले ही धीमी हो लेकिन चलने की शुरुआत करने से रास्ते बनने लगे हैं। प्रतिभायें घंघूट की आड़ छोड़कर करियर (Career) आगे आने लगी हैं। ऐसा ही एक सुखद समाचार जैसलमेर जिले के सांकड़ा गांव से आया है। यहां की बहू प्रियंका कंवर (Priyanka Kanwar) ने डॉक्टर बनकर घर परिवार का नाम रोशन किया है।
शिक्षा के क्षेत्र में मजबूत कदम बढ़ाया
जैसलमेर के सांकडा गांव की बहू प्रियंका कंवर ने एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर चिकित्सा जगत में पदार्पण किया है। प्रियंका कंवर की इस कामयाबी से इलाके में खुशी की लहर है। प्रियंका कंवर ने जैसलमेर जैसे परापंगत जिले में नारी शक्ति की शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ती भूमिका को और मजबूत किया है। अब प्रियंका का डॉक्टर बनने सपना साकार हो गया है।
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प्रियंका ने पश्चिमी राजस्थान में शिक्षा के क्षेत्र में नया आयाम स्थापित किया है। |
पिता की प्रेरणा और ससुराल के सहयोग ने दिलाई सफलता
प्रियंका ने अपनी इस सफलता का श्रेय बताया माता पिता को दिया है। बकौल प्रियंका पिता सेवानिवृत्त एक्सईएन जैतसिंह पडिहार की प्रेरणा और ईश्वर के आशीर्वाद से उसने पश्चिमी राजस्थान की महिलाओं की लिए कठिन समझे जाने वाली चिकित्सा पेशे में जाने की ठानी। शादी के बाद पति और ससुराल वालों का भी पिछले चार साल से सकारात्मक सहयोग मिला। पिता की प्ररेणा, पति व ससुराल का साथ और ईश्वर के आशीर्वाद का परिणाम है कि आज प्रियंका का डॉक्टर बनने का उनका सपना साकार हो गया।
प्रियंका कंवर के पति भी लेखा अधिकारी हैं
जैसलमेर जिला हेडक्वार्टर से ही लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सांकडा गांव निवासी प्रियंका के ससुर शिक्षाविद गिरधरसिंह राठौड ने भी बहू की सफलता पर ससुर ईश्वर का शुक्रिया अदा किया है। प्रियंका के पति देरावर सिंह राठौड़ राजस्थान प्रशासनिक सेवा में चयन उपरांत लेखा अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। देरावर सिंह का इससे पहले बैंक, शिक्षक और असिस्टेंट कमांडेंट में चयन हो चुका है। जाहिर इस दंपति ने शिक्षा के महत्व को समझा है और अपना मुकाम पाने के लिये दोनों ने अच्छी मेहनत भी की है। इसका नतीजा सबके सामने है.
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अपना मुकाम पाने के लिये प्रियंका ने कड़ी मेहनत की और इसका नतीजा सामने है। |
बेटियों और बहुओं के लिये प्ररेणा बनी प्रियंका कंवर
जैसलमेर जैसे जिले में राजपूत परिवार की बेटी और बहू का शिक्षा के क्षेत्र में आगे आना निश्चित तौर पर अन्य बेटियों और बहुओं के लिये मील का पत्थर साबित होगा। प्रियंका की यह उपलब्धि जिले में बेटियों की शिक्षा को लेकर की नई अलख जगाएगा। प्रियंका ख़ुद भी क्षेत्र की नारी शक्ति को आगे बढ़ाने एवं उनकी मदद करने की इच्छुक है ताकि इलाके का सर्वांगीण विकास हो और प्रतिभायें आगे आयें। इसके लिये वे अब खुद भी प्रयास करेंगी.
धारणायें धीरे-धीरे टूटती जा रही हैं
उल्लेखनीय है कि पश्चिमी राजस्थान में स्थित बाड़मेर और जैसलमेर इलाके में बेहद परंपरागत होने के साथ ही अभी यहां पढ़ाई के प्रति रुझान अन्य इलाकों के मुकाबले काफी कम है। विशेषकर राजपूत समाज में आज भी लड़के और लड़कियों की शिक्षा में भेद किया जाता है। हालांकि अब ये धारणायें धीरे-धीरे टूटती जा रही हैं। लड़कों के साथ ही लड़कियां भी घर से बाहर निकलकर शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में कदम बढ़ाने लगी हैं। इन इलाकों के कई साधारण परिवारों से राजपूत लड़के और लड़कियों ने शिक्षा, खेल और सरकारी नौकरियों में अपना मुकाम हासिल किया है। ऐसी ही प्रतिभा प्रियंका कंवर को डॉक्टर बनने पर क्षत्रिय समाज की तरफ हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनायें।
जरुरत है हौसला बढ़ाने की
ऐसा नहीं है कि इन इलाको में राजपूत समाज में प्रतिभाओं की कमी है। जरुरत है तो बस उन्हें प्रोत्साहित करने और आगे बढ़ाने की। क्योंकि इन रेतीले धोरों से कई ऐसे हीरे निकले हैं जिन्होंने देश दुनिया में न केवल राजपूत समाज का बल्कि पूरे प्रदेश का नाम रोशन किया है। आज उनकी रोशनी में दूसरी प्रतिभायें भी अपना भविष्य संवारने में जुटी है।
Sunday, May 2, 2021
विचारणीय : कभी गुलाबचंद कटारिया तो कभी गुलाब कोठारी, आखिर कब तक सहेगा क्षत्रिय समाज
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क्षत्रिय समाज के खिलाफ आखिर यह सब कब तक होता रहेगा। |
देश के लिये मर मिटने वाले और अपना सब कुछ त्यागने वाले क्षत्रिय समाज (Kshatriya society) को आखिर कब तक अपमान के कड़वे घूंट पीने पड़ेंगे। कभी गुलाबचंद कटारिया (Gulabchand Kataria) जैसे नेता तो कभी गुलाब कोठारी (Gulab Kothari) जैसे कथित बुद्धीजीवी पत्रकार आखिर कब तक क्षत्रिय समाज की अस्मिता पर हमला बोलते रहेंगे। पहले कड़वे बोल बोलकर और तथ्यहीन बातों पर लेखनी चलाकर फिर चार लाइन में माफी मांगते रहेंगे। अगर यह सबकुछ ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ी हमारे गौरवशाली इतिहास (Glorious history) को संदेह की दृष्टि से देखने लगेगी। क्योंकि किसी बात को अलग-अलग मुंह और अलग-अलग तरीकों से बार-बार गलत तरीके से दोहराया जायेगा तो वह प्रथमदृष्टया इंसान को सही लगने लगती है.
कटारिया और कोठारी की मानसिकता को समझें
राजस्थान पत्रिका के मालिक एवं प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने दो दिन पहले 30 अप्रेल के अंक में लिखे अपने अग्रलेख 'सत्ता मालदार' की शुरुआत ही क्षत्रिय समाज के पूर्वजों के अपमान से की है। गुलाब कोठारी ने क्षत्रिय समाज के पूर्वजों को 'मर्यादाहीन महाराजा' बताकर जिस तरह से तुच्छ ज्ञान का प्रदर्शन किया है वैसी उनसे कभी उम्मीद नहीं की जाती है। लेकिन उन्होंने ऐसा किया। वहीं पिछले दिनों राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने विधानसभा उपचुनाव के दौरान 12 अप्रेल को राजसमंद के कुंवारिया गांव में राष्ट्र गौरव महाराणा प्रताप को लेकर ओछे शब्दों का प्रयोग किया था.
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राजस्थान पत्रिका में 30 अप्रैल को प्रकाशित गुलाब कोठारी का आलेख। |
क्षत्रिय समाज का इतिहास निसंदेह किताबों में 'स्वर्ण अक्षरों' में दर्ज है। लेकिन आज किताब कोई पढ़ता नहीं है. सोशल मीडिया ही सर्वेसर्वा है। आज सोशल मीडिया से ही 'मीडिया' चल रही है. युवा पीढ़ी उसी पर टिकी है। वह वहीं से ज्ञान लेती और उसी पर अपने विचार व्यक्त करती है। इतिहास की किताबें अलमारियों में रखी हैं। जबकि वर्तमान में लिखा और बोला गया सबकुछ 'ऑनलाइन' है। वह वैश्विक यात्रा करता है। लिहाजा आज किताब की बजाय ऑललाइन ज्ञान ज्यादा हावी है। आज हर कोई भी किसी भी तरह के तथ्य रखकर अपने आप को बुद्धजीवी साबित करने में लगा है। इसका अगर समय रहते पुरजोर विरोध नहीं किया गया तो ऐसे नेताओं और लेखकों-पत्रकारों के हौंसले बुलंद होते जायेंगे। दोनों ही प्रकरणों में क्षत्रिय समाज ने जिस तरह से सोशल मीडिया के माध्यम से शालीनतापूर्वक जो विरोध दर्ज कराया वह काबिल-ए-तारीफ है।
दर्द का विरोध करना उससे भी ज्यादा जरुरी है
फिलहाल केवल इन दो प्रकरणों की बात करें तो खुशी इस बात है कि हमें इन कड़वे बोल और असत्य लेखनी का दर्द होने लगा है। यह दर्द जरुरी है। इस दर्द का विरोध करना उससे भी ज्यादा जरुरी है। क्योंकि पुरानी कहावत है कि ''बिना रोये तो बच्चे को मां भी दूध नहीं पिलाती''। वैसे ही बिना विरोध दर्ज कराये अपने शब्दों को वापस लेने की कोई बात नहीं करता और ना ही खेद प्रकट करता है। इन दोनों प्रकरणों में क्षत्रिय समाज बंधुओं ने जिस तरह से एक स्वर में पुरजोर विरोध जताया तो परिणाम आपके सामने है। बीजेपी नेता गुलाबचंद कटारिया को भी तीन बार माफी मांगने पर मजबूर होना पड़ा वहीं राजस्थान पत्रिका को भी गुलाब कोठारी के आलेख के लिये स्पष्टीकरण (खेद) प्रकाशित करना पड़ा। इससे पहले पत्रिका ने हाल ही में पुलिस महकमे पर भी ओछी टिप्पणी की थी। उस मामले में भी विरोध होने पर पत्रिका खेद प्रकट करना पड़ा था। किसी भी अखबार के लिये एक ही सप्ताह में दो बार खेद प्रकट करना साबित करता है कि अखबार की टीम में गंभीरता की कितनी कमी है।
कटारिया के बाद मेवाड़ के एक और बीजेपी नेता ने डाला आग में 'घी', जानिये क्या कहा ?
सोशल मीडिया की टिप्पणी आंखें खोलने के लिये काफी है
गुलाब कोठारी की ओर से अपने अग्रलेख में लिखे गये अमर्यादित शब्द के विरोध में सोशल मीडिया पर एक क्षत्रिय की ओर से लिखा गया आलेख यहां बेदह प्रासंगिक है। वहीं श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन की ओर से गुलाब कोठारी को लिखे गये पत्र से शायद उनकी आंखे खुल जानी चाहिये। आप भी पढ़िये दो खुले पत्र।
स्व० श्री कर्पूर चन्द्र जी कुलिश के पुत्र गुलाबजी कोठारी,
नमस्कार
आपके आलेख तब से पढ़ता आ रहा हूँ जब से आपने ‘मंथन’ शीर्षक से लिखना आरंभ किया था, जो बाद में पुस्तकाकार रूप में भी पत्रिका ने प्रकाशित करके बेचा। आपको व्यक्तिगत रूप से नहीं देखा किन्तु चित्रों के माध्यम से इतनी बार देखा कि हम आमने-सामने हों तो आपको पहचान जाऊँगा । सत्य कह रहा हूँ कि आपके आलेख पढ़ कर और आपका छायाचित्र देख कर मैं सदैव यह सोचता था कि इस आदमी द्वारा लिखे गये सूचनापरक (ज्ञानपरक या अनुभवपरक नहीं) लेख, संस्कारों के प्रति लेखों में टपकती हुई चिन्ता और अन्यथा लिखे लेख पढ़ कर आपके बारे में पाठक के मन में बनने वाली छवि का आपके छायाचित्र से बिल्कुल भी मेल नहीं बैठता।सोचता था मैं ग़लत हूँ; कभी आपसे रूबरू मिलूँगा तो मेरा यह भ्रम दूर हो जायेगा और आपको शायद समाज में संस्कारों के गिरते स्तर के प्रति सच्चे मन से चिन्तित होने वाले इन्सान के रूप में पाऊँगा ।
आप द्वारा आज ३० अप्रेल, २०२१ के ‘राजस्थान पत्रिका ‘ के मुख्य पृष्ठ पर ‘सत्ता मालदार’ नामक एक लेख लिखा गया है, जिसकी शुरुआत आपने ‘मर्यादाहीन महाराजाओं से छुटकारा पाने’ शब्द लिख कर की है।
इस बारे में कुछ बातें स्पष्ट कर दूँ.......। आपने लिखा है—‘ऐसी व्यवस्था(राज नहीं)’ जबकि ‘राज ही’ चाहा गया था तत्कालीन उन तथाकथित नेताओं द्वारा, यह बात अब स्पष्ट हो चुकी है और आपके कई लेखों में यह आपने ही लिखा है, आप कहेंगे तो मैं उन लेखों को आपके समक्ष ला दूँगा ।
‘मर्यादाहीन महाराजा’ जिनके लिये आप उपयोग कर रहे हैं, तो जहाँ तक मुझे ध्यान है आप सोडा गाँव के रहने वाले हैं, जो तत्कालीन जयपुर राज्य के अन्तर्गत आता था। उस राज्य में जब से जयपुर बसा है तब से लेकर अर्थात् जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंहजी से लेकर स्व० महाराज कुमार ब्रिगेडियर श्रीमान भवानीसिंहजी तक (जिनके समय में यह तथाकथित संप्रभु लोक कल्याणकारी धर्मनिरपेक्ष समाजवादी प्रजातांत्रिक गणतंत्र रूपी राज -व्यवस्था नहीं- आया है) एक भी राजा का उदाहरण आप दे दीजिये, जिसने मर्यादाहीन आचरण किया हो।
यदि महाराजा मर्यादाहीन होते श्रीमान जैसा आप ‘श्रीमान’ मान रहे और उनके लिये शब्दों का उपयोग कर रहे हैं तो प्रजातांत्रिक चुनाव प्रणाली में भाग लेने वाले इन राजाओं को लाखों वोटों के जीत के अंतर से ये जनता उनको लोकसभाओं और विधान सभाओं में चुनकर न भेजती। संभवतः सबसे अधिक वोटों के अंतर से जीतकर आने के जिस रिकॉर्ड को आज ७५ वर्ष के लोकतंत्र के ‘ये मर्यादित आचरण वाले नेता’ तोड़ नहीं पाये हैं; उस रिकॉर्ड को क़ायम करने वाली जयपुर राज की-जिस राज्य की आपके ख़ानदान में पिता के समय तक की पीढ़ी प्रजा थी- की महारानी ही थी जिन्हें आप श्रीमान मर्यादाहीन कह रहे हैं और आपको याद दिला दूँ इस अटूट रिकॉर्ड को बनाने में सहयोग और समर्थन देने वाली आम जनता ही थी; कोई EVM मशीनें नहीं।
और संपूर्ण भारत में एक भी ‘RULING PRINCE’ का उदाहरण आप ‘श्रीमान’ मुझे दे दीजिये, जो भारी मतों से जीत कर नहीं आया हो, जिसे जनता ने भारी समर्थन और सहयोग नहीं दिया हो।
आप द्वारा बताये गये ‘मर्यादाहीनों’ का एक उदाहरण आप ‘तथाकथित मर्यादितों’ की आँखें खोलने के लिये काफ़ी होगा। बीकानेर के महाराजा करणीसिंहजी- जो पाँच बार (१९५२-१९७७ तक) लगातार बीकानेर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा में जनता द्वारा (कुल पड़े मतों में से ७०% से अधिक मत अपने पक्ष में लेकर) चुन कर भेजे गये।आख़री चुनाव में आपकी जीत का अंतर १ लाख से कम वोटों का रहा था । श्रीमान कर्पूर चन्द्र जी कुलिश के पुत्र गुलाबजी द्वारा बताये गये इन ‘मर्यादाहीन महाराजा’ ने अगला चुनाव यह कह कर लड़ने से मना कर दिया कि - अब जनता का प्रेम और विश्वास मुझमें घट रहा है। इनसे आप तुलना कीजिये आप ‘श्रीमान’ द्वारा बताये गये ‘राज नहीं व्यवस्था चाहने वाले’ प्रजातंत्र के रक्षकों की जो राजस्थान राज्य एक वोट से हार गये तो बेशर्मी पूर्वक केन्द्र में उसी जनता पर मंत्री बना दिये गये। आपको थोड़ा आश्चर्य से और भर दूँ- महाराजा करणीसिंहजी ने पाँचों चुनाव किसी पार्टी की नाव पर चढ़ कर नहीं लड़े थे; बल्कि निर्दलीय लड़ कर ७० जनता का विश्वास और प्रेम उनमें था। इस बात को सिद्ध किया था। आप बतायें कि जनता की उनके प्रति समझ सही थी या आप जैसे बुद्धिजीवी और वित्तजीवी बता रहें हैं जो पिछले ७५ वर्षों से, वह सही है।
फिर आप ही बतायें कि मैं आपकी लिखी हुई बात को किस प्रकार गले उतारूँगा कि मेरे पूर्वज आप बता रहे हैं वैसे थे। आप बुद्धिजीवियों और वित्तजीवियों को अब इस बात को समझना चाहिये कि आप ‘राजा लोग अच्छे नहीं थे’ इसी गढ़े हुए नैरेटिव को लेकर प्रजातंत्र ले ज़रूर आये किंतु इस प्रजातंत्र की जड़ें जमाने के लिये आप उक्त झूठे नैरेटिव से ही काम चलाने की असफल कोशिश न करें बल्कि अब ईमानदारी से मेहनत करें और वास्तव में प्रजातंत्र को ‘राज नहीं व्यवस्था’ मान कर कार्य में जुटें तो आप प्रजातंत्र को हम सभी के लिये उपयोगी साबित कर सकेंगे—जो आप भी जान रहे हैं-श्रीमान, कि यह आप दोनों वर्गों द्वारा किया जाना लगभग असंभव हो रहा है।
इन बुद्धिजीवियों और वित्तजीवियों की चालाकी को श्रमजीवी तो पहले समझ चुका था और आयुधजीवी भी अब समझ रहा है।अत: मेरा इशारा किस तरफ़ है यह आप काफ़ी समझदार(जिसके सबूत आपको सार्वजनिक मंचों से इस हेतु मिले पुरस्कार हैं) होने की वजह से भलीभाँति समझ रहे हैं, सो आप (चूँकि आपकी इतिहास विषय में गति नहीं है) भविष्य में मेरे पूर्वजों के लिये ऐसे शब्दों का प्रयोग करने से परहेज़ करेंगे, ऐसा आपके व्यक्तित्व को समझने की वजह से मैं आशा से भरे
मन से आपसे करबद्ध प्रार्थना करता हूँ ।
मैं जानता हूँ कि मेरा यह mail यदि आप तक पहुँचा तो आपको बेधेगा परंतु इससे कम, मैं आपके प्रति कुछ कर नहीं सकता था, इसलिये आप मुझे समझेंगे, इस विश्वास के साथ ................
एक क्षात्र धर्मी
श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन की ओर से गुलाब कोठारी को लिखा गया पत्र
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श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन। इसी तरह के और भी पत्र लेखक को क्षत्रिय समाज की विभिन्न संस्थाओं की ओर से लिखे गये हैं |
यह क्षत्रिय समाज की अस्मिता पर हमला है
यूं देखे तो मुंह से निकला हुआ और छपा हुआ वक्तव्य को ना तो मिटाया जा सकता है और ना ही भुलाया जा सकता है। लेकिन ऐसा करने वालों को सबक जरुर सिखाया जा सकता है ताकि भविष्य में कोई भी क्षत्रिय समाज के बारे में अर्नगल बोलने या लिखने की हिम्मत ना कर सके। जिस इतिहास को क्षत्रिय समाज ने अपना सबकुछ न्योछावर करके लिखा उसके बारे में कोई कुछ भी बोल दे यह असहनीय है। यह क्षत्रिय समाज की अस्मिता पर हमला है। इनका सही समय पर विरोध किया जाना बेहद जरुरी है।
जानिये क्या कहता है इतिहास: खींची चौहान वंश से ताल्लुक रखती थीं पन्नाधाय
पद्मावत ने दिखाया फिल्मकारों को आइना
क्षत्रिय समाज के बारे में ये दो प्रकरण पहली बार नहीं आये हैं। इससे पहले भी आते रहे हैं। फिल्मकारों ने तो ठाकुर बिरादरी को जुल्म और अन्याय का प्रतीक ही मान लिया और उसे बार-बार जनता के सामने 'आततायी' के रूप में ही पेश किया। लेकिन कभी क्षत्रिय समाज ने उसके खिलाफ आवाज नहीं उठायी। अगर उठायी तो भी दबी कुचली आवाज में। उसका कभी कोई असर नहीं हुआ। उसी का परिणाम है कि फिल्मों में बहुत सी बार क्षत्रिय परंपराओं को बेहद गलत तरीके पेश किया जाता है। लेकिन गत वर्ष 2018 में आई संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावत' के मामले में ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ पर विरोध के स्वर उठाने के बाद अब फिल्म जगत कुछ सोचने पर मजबूर हुआ है। हालांकि अब भी क्षत्रिय समाज के तथ्यों और परंपराओं से खिलवाड़ करने से वे बाज नहीं आ रहे हैं, लेकिन अगर समय पर ही उनका पुरजोर विरोध दर्ज करा दिया जायेगा तो भविष्य में कोई ऐसा काम करने से पहले चार बार सोचेगा।
Saturday, May 1, 2021
स्मृति शेष: इस टीस के साथ दुनिया से विदा हुए राजपूत सभाध्यक्ष गिरिराज सिंह लोटवाड़ा, इसकी गहराई को समझिये
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गिरिराज सिंह लोटवाड़ा |
श्री राजपूत सभा (Shri-Rajput-Sabha) जयपुर के अध्यक्ष गिरिराज सिंह लोटवाड़ा अब हमारे बीच नहीं रहे। बरसों तक समाज सेवा में जुटे रहे गिरिराज सिंह लोटवाड़ा (Giriraj Singh Lotwara) ने गुरुवार को सुबह अंतिम सांस ली। कोरोना संक्रमण (Corona infection) से पीड़ित लोटवाड़ा अंतिम सांस तक समाज सेवा से जुड़े रहे। दुख की बात तो यह है कि लोटवाड़ा मन में एक टीस लेकर दुनिया से अलविदा हुये। यह टीस थी सिस्टम की लापरवाही से हो रही आमजन परेशानी की। यह टीस थी दूसरों को सुरक्षित रखने की और सिस्टम को 'सिस्टम' में लाने की।
इस दर्द की गहराई की इंतिहा को समझें
लोटवाड़ा ने अपनी इस टीस को अपने स्वर्गवास से एक सप्ताह पूर्व सोशल मीडिया में बयां किया था। आप भी पढ़िए, जानिए और इस टीस को समझिये। पार्टी पॉलिटिक्स को परे रखकर इस टीस को महसूस कीजिये। इस दर्द की गहराई की इंतिहा को समझने की कोशिश कीजिए। बाकी परिणाम तो आज आपके सामने है ही। लोटवाड़ा ने अपनी इस टीस को फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिये 19 अप्रेल को सुबह 11 बजकर 14 मिनट पर शेयर किया था।
पढ़िये गिरिराज सिंह लोटवाड़ा की पीड़ा उन्हीं के शब्दों में
गिरिराज सिंह लोटवाड़ा ने अपनी पोस्ट में लिखा कि ''आज सुबह 9 बजे 70 km गाड़ी में आ जा कर covid का टेस्ट करवाया। मैं आभारी हूं महुआ chc के पूर्ण स्टॉफ डाक्टर्स ने आत्मीयता दिखाते हुए टेस्ट किया। मैं उनको धन्यवाद औए आभार प्रकट करता हु। परंतु मन में एक पीड़ा है। मैंने चिकित्सा मंत्री जी को निवेदन किया था कि टेस्ट की व्यवस्था मरीज़ के घर या गांव phc में व्यवस्था करवाई जावे। पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। मेरा मतलब स्वयं की जांच से नहीं था पर मंत्री जी वो दिन भूल गये जो तीन बार चुनाव हार चुके और उप चुनाव में अजमेर से चुनाव लड़ा।''
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लोटवाड़ा ने मन में दबी अपनी टीस को फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिये शेयर किया। |
राजपूत समाज सिर्फ स्वाभिमान को लेकर जिन्दा है
लोटवाड़ा ने आगे अपना दर्द बयां करते हुये लिखा ''हमारा समाज जो bjp का कट्टर समर्थक था पर आप राजपूत सभा पधारे और समाज को आश्वस्त किया कि वे समाज के साथ खड़े रहेंगे। पर आप तो चुनाव जीतने के बाद आज तक राजपूत सभा नहीं पधारे। आप फिर mla का चुनाव लड़ लिए और विजयी हुए लेकिन आज तक आपका समर्थन करने वाले मिलने को भी तरस गए। मंत्रीजी विनम्र निवेदन है अहंकार होता है पद के साथ पर अपने सहयोगियों को नज़र अंदाज करना कहां तक जायज है। राजपूत समाज सिर्फ स्वाभिमान को लेकर जिन्दा है। आपको कुर्सी मुबारक, जै हिन्द,जै भारत।।।''
सहयोग के बदले रुसवाई मिले तो क्या किया जाये ?
किसी समाज को सामाजिक स्तर पर नेतृत्व प्रदान करने वाले व्यक्ति की यह पीड़ा अपने आप में बहुत कुछ कहती है। कई बार इंसान जब बोलकर कुछ नहीं कह पाता है वह उसे कागज पर उतार देता है। अब जमाना कागज का नहीं सोशल मीडिया का है, लिहाजा लोटवाड़ा ने अपनी टीस को उस पर उतार दिया। उनकी यह टीस बहुत कुछ कहती है। उनकी यह टीस बताती है कि जब कोई समाज किसी भी पार्टी के नेता के समर्थन में किसी संस्था के माध्यम से कुछ करता है तो उसे अंदरुनी स्तर कई झंझावातों को झेलना पड़ता है। कुछ रूठ जाते हैं तो उन्हें मनाना पड़ता है। समाज का हर इंसान समाज का नेतृत्व करने वाले के फैसले से खुश नहीं होता है। लेकिन भी फिर भी संस्था बड़ी होती है। व्यक्ति नहीं। लेकिन बाद में जब उसी संस्था या समाज को बदले में रुसवाई मिलती है तो पीड़ा होना लाजिमी है।
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लोटवाड़ा ने कहा कि राजपूत समाज सिर्फ स्वाभिमान को लेकर जिन्दा है। |
टीस गहरा असर दिखाती है, वह कभी कभी नश्तर बन जाती है
कभी कभी यह पीड़ा व्यक्ति विशेष से लेकर समाज तक में घर कर जाती है। वह बड़ा नश्तर भी बन जाती है। उसके परिणाम भविष्य में नकारात्मक भी हो सकते हैं। बाद यह बाद दीगर है कि उसे समझने में कुछ समय लग जाये, लेकिन वह कहीं ना कहीं अपना असर जरुर दिखाती है। किसी भी नेता की कुर्सी का समय बड़ा अल्प होता है। उस अल्प समय में भी सैंकड़ों लोग उस कुर्सी पर नजर गड़ाये हुये हैं। कुर्सी पर बैठने वाला अगर थोड़ी सी भी असावधानी बरतता है तो उसे भविष्य में उसकी कीमत चुकानी पड़ती है।
एक या दो वोट भी नेता की कुर्सी खींचने में सक्षम होते हैं
कई बार यह कीमत भले ही सैंकड़ों या हजारों वोट के रूप में नहीं हो, लेकिन एक या दो वोट चोट भी बहुत बड़ी होती है। ये एक या दो वोट किसी भी जनाधार वाले या दमदार नेता की कुर्सी खींचने में सक्षम होते हैं। राजस्थान से लेकर पूरे देश की जनता तक इस 1 वोट की कीमत देख चुका है। 1 वोट की कीमत सरकार गिरा भी सकती है और सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के बाद नेता की टांग खींच भी सकती है। क्योंकि जीत से ज्यादा टीस बड़ी होती है। टीस दिखती नहीं है लेकिन असर गहरा दिखाती है।
Friday, April 30, 2021
Amazing-Success-Story-2 : फ्लाइट लेफ्टिनेंट स्वाति राठौड़ ने राजपथ पर कैसे रचा इतिहास, पढ़ें सफलता की पूरी कहानी
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स्वाति राठौड़ ने अपने करियर के अल्प समय में वो कर दिया जिसकी लोग केवल कल्पना करके ही रह जाते हैं। |
सफलता (Success) क्या होती है और उसे कैसे पाया जा सकता है इसका सबसे उम्दा उदाहरण है राजस्थान की बेटी एवं भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) की फ्लाइट लेफ्टिनेंट स्वाति राठौड़ (Flight Lieutenant Swati Rathore)। राजस्थान के नागौर जिले के एक छोटे से गांव की इस बहादुर बेटी ने अपने करियर (Career) के अल्प समय में वो कर दिया जिसकी लोग केवल कल्पना करके ही रह जाते हैं। लेकिन स्वाति ने उसे हकीकत में बदल कर यह बता दिया कि अगर आप में जुनून है तो आप कोई भी मुकाम पा सकते हो। मुश्किलें कतई आड़े नहीं आती हैं। वे आपके हौंसले को देखकर अपने आप दूर हो जाती हैं।
जिद और जुनून से सपनों को पूरा भी किया जा सकता है
वर्ष 2021 में गणतंत्र दिवस के मौके पर इतिहास रचने वाली राजस्थान के नागौर जिले की प्रेमपुरा की इस बेटी ने राजधानी दिल्ली में राजपथ पर फ्लाई पोस्ट का नेतृत्व कर बता दिया कि जिद और जुनून से सपनों को पूरा भी किया जा सकता है। अजमेर में पली बढ़ी और यहीं से शिक्षा प्राप्त कर इंडियन एयरफोर्स के चुनने वाली स्वाति की यह उपलब्धि न केवल राजस्थान बल्कि देशभर की बेटियों के लिये मील का वो पत्थर है जो उन्हें हमेशा आगे बढ़ने और सपनों को पूरा करने की प्रेरणा देता रहेगी। भारत में गणतंत्र दिवस के इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी महिला पायलट को फ्लाई पोस्ट का जिम्मा मिला था.
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स्वाति ने बचपन से ही पायलट बनने का सपना देखा था। |
स्कूल अजमेर और कॉलेज जयपुर से किया
कृषि विभाग में उपनिदेशक पद पर तैनात डॉ. भवानी सिंह राठौड़ और राजेश कंवर की लाडली बेटी स्वाति ने अपनी स्कूली शिक्षा अजमेर के मयूर स्कूल और कॉलेज जयपुर के आईसीजी से किया। स्वाति ने बचपन से ही पायलट बनने का सपना देखा था। स्वाति ने स्कूली शिक्षा के बाद कॉलेज में पढ़ाई के दौरान एनसीसी एयर विंग ज्वॉइन कर अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में पहला कदम रखा था। स्वाति ने एनसीसी एयरविंग में कैडेट रहते हुये ही रक्षा सेवाओं में करियर बनाने की पूरी प्लानिंग कर ली थी।
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वर्ष 2014 में पहले ही प्रयास में स्वाति का चयन एयरफोर्स में हो गया था। |
पहले ही प्रयास में हो गया एयरफोर्स में चयन
जयपुर में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान स्वाति को यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत सिंगापुर जाने का मौका मिला। वहां स्वाति ने यूरोप और अमरिकन देशों से आये अन्य प्रतिभागियों के बीच निशानेबाजी प्रतियोगिता में मुकाबला करते हुये गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। वर्ष 2014 में पहले ही प्रयास में उनका चयन एयरफोर्स में हो गया। स्वाति वर्ष 2013 में एयरफोर्स कॉमन एडमिशन टेस्ट में शामिल हुई थी। टेस्ट क्लियर करने के बाद उन्हें मार्च 2014 में एयरफोर्स सलेक्शन बोर्ड देहरादून में साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। उस समय वहां देशभर से करीब 200 छात्राएं इंटरव्यू के लिये आईं थी। इनमें से करीब 50 फीसदी को स्क्रीनिंग के लिए चुना गया था। स्क्रीनिंग के बाद केवल पांच छात्राएं ही मैदान में रहीं। उनमें फ्लाइंग ब्रांच के लिए एकमात्र स्वाति का चयन हुआ।
पूर्व सीएम राजे और केन्द्रीय मंत्री शेखावत समेत कई दिग्गजों ने दी थी बधाई
एयरफोर्स ज्वॉइन करने के बाद वर्ष 2018 में केरल में आई बाढ़ के दौरान स्वाति ने अपनी जान जोखिम में डालकर हजारों लोगों को एयरलिफ्ट कर उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया था. बाढ़ राहत में किये गये स्वाति के इस कार्य के दौरान वे काफी चर्चा में रही थी। वहीं 26 जनवरी पर फ्लाई पोस्ट का नेतृत्व करने पर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत समेत कई दिग्गजों नेताओं और अन्य हस्तियों ने मरुधरा की इस बेटी को उपलब्धि पर बधाई और शुभकामनायें दी।
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स्वाति ने बचपन में जो सपना देखा था उसे उसने बहुत जल्द पूरा कर लिया। |
बेटा और बेटी में अंतर नहीं रखें
अपनी लाडो की इस उपलब्धि पर उनके माता पिता बेहद खुश हैं। स्वाति के पिता डॉ. भवानी सिंह राठौड़ बताते हैँ उन्हें स्वाति पर गर्व है. उसने बचपन में जो सपना देखा था उसे उसने पूरा कर लिया। डॉ. भवानी सिंह और उनकी पत्नी राजेश कंवर दोनों का कहना है कभी बेटा और बेटी में अंतर नहीं रखें. बेटियां भी सपने देखती हैं। उन्हें उनके सपनों की मंजिल तक पहुंचाने के लिय उन पर भरोसा करें और कंधे से कंधा मिलाकर उनका सहयोग करे. यकीनन बेटियां आपका सिर गर्व से ऊंचा कर देगी। स्वाति इसका उदाहरण है।
Monday, April 26, 2021
Amazing Success Story-1: 1.70 करोड़ रुपये के सालाना पैकेज पर US में कार्यरत हैं कंचन शेखावत
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कंचन शेखावत राजस्थान के शेखावाटी इलाके के सीकर जिले के किरडोली छोटी की रहने वाली है। |
सफलता (Success) कोई सपना नहीं है इसे कोई भी आम इंसान हकीकत में बदल सकता है। जरुरत बस दृढ़ इच्छाशक्ति (Willpower) की होती है। पहले के मुकाबले वर्तमान में समय सफलता के कई सोपान सामने आ रहे हैं। बेहतर जॉब और करियर (Jobs & Careers) के वर्तमान में जितने विकल्प युवाओं को मिल रहे हैं उतने शायद पहले कभी नहीं थे। इन विकल्पों का दोहन करना आपके हाथ में है। सरकारी और निजी क्षेत्रों में नौकरियां (Government and private sector jobs) के बहुविकल्प युवाओं के सामने बाहें फैलाये खड़े हैं।
सफलता में ना तो साधन आड़े आते हैं और ना ही संसाधन
यह आप पर निर्भर है कि आप उन विकल्पों को किस तरह से लेते हैं। इन विकल्पों में से कोई चीज ऐसी नहीं है जो आप पा नहीं सकते। आप हर वो चीज पा सकते हैं जिसकी इच्छा रखते हैं। हां, यह जरुर है कि उसे पाने के लिये सीढ़ियां आपको की चढ़नी पड़ेगी। इसमें ना तो साधन आड़े आते हैं और ना ही संसाधन। इसके हजारों उदाहरण आपके सामने हैं। इनमें एक हैं यूएस बेस्ड सॉफ्टवेयर कंपनी अमेजॉन में सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर पद पर तैनात राजस्थान की बेटी कंचन शेखावत (Kanchan Shekhawat)।
महज 26 साल की उम्र में गढ़ी सफलता की कहानी
सीमित साधनों के बूते सफलता की नई कहानियां गढ़ने वालों की लंबी फेहरिस्त है। सरकारी क्षेत्र में आरक्षण को रोड़ा मानकर आप हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे रह सकते हैं। ये व्यवस्था के हिस्से हैं। अगर इनके भरोसे रहेंगे तो जितना आपको मिलना चाहिये आप उतना नहीं पा सकेंगे और मन ही मन में कुढ़ते रहेंगे। लेकिन अगर कुछ कर गुजरने की इच्छा है तो आपकी राह रोकने वाला कोई नहीं है। ऐसा ही एक उदाहरण है राजस्थान की शेखावाटी इलाके के सीकर जिले की युवा सॉफ्टवेयर इंजीनियर कंचन शेखावत। कंचन ने बचपन में जो सपना देखा उसे अपनी मेहनत के बूते महज 26 साल की युवा अवस्था में पूरा कर दिखाया।
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कंचन मानती हैं कि जननी और जन्मभूमि की तुलना किसी से नहीं की जा सकती. ये अतुल्य हैं। |
कंचन का सालाना पैकेज 1.70 करोड़ रुपये का है
आज कंचन अपने सपने को जी रही हैं। यही नहीं वह सपनों से भी आगे निकलने का भी प्रयास कर रही हैं। परंपरागत राजपूत समाज में ऐसी कई प्रतिभायें है जो साधनों और संसाधनों की फिक्र को एक तरफ रखकर अपने लक्ष्य के प्रति इतने ज्यादा जनूनी हो जाती हैं कि वे उसे पाकर ही दम लेती हैं। उन्हीं में से एक है कंचन शेखावत। क्षत्रिय समाज के युवाओं के लिये वो आइडिल हैं, जिन्होंने सीमित संसाधनों में नई ऊचाइंयों को छुआ है। क्षत्रिय समाज की इस बेटी ने अपनी सफलता के बूते ना केवल मां-पिता का बल्कि समाज का भी मान बढ़ाया है। कंचन अमेरिका की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर पद पर तैनात हैं. कंचन का सालाना पैकेज 1.70 करोड़ रुपये का है. आज हम आपको रू-ब-रू करवाते हैं कंचन शेखावत और उसके संघर्ष की गाथा तथा विकास यात्रा से।
जिद और जुनून से बढ़कर कुछ भी नहीं है
राजस्थान के शेखावाटी इलाके के सीकर जिले का छोटा सा गांव है किरडोली छोटी। इसी छोटे से गांव से निकलकर महज 26 वर्ष उम्र में कंचन ने अमेरिका तक का सफर तय किया है। सीकर के किरोडोली गांव निवासी कंचन ने बचपन में जो सपना देखा उसे बेदह कम उम्र में पूरा कर यह साबित कर दिया कि जिद और जुनून से बढ़कर कुछ भी नहीं है। कंचन ने बचपन में ही शिक्षा के महत्व को समझकर उसे आत्मसात कर लिया। कचंन ने यह अच्छी तरह से समझ लिया कि शिक्षा वो शस्त्र है जिसके बूते वह हर वो मुकाम पा सकती है। जिसकी वो इच्छा रखती हैं और हकदार है। कंचन ने 10वीं कक्षा तक आते-आते इंजीनियर बनने के लक्ष्य को तय कर लिया.
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कंचन के पिता भंवर सिंह गांव में खेती बाड़ी का कार्य करते हैं। |
सफलता के लिये दृढ़ संकल्प और सटीक रणनीति होनी चाहिये
उसके बाद कंचन ने अपने मुकाम को पाने के लिये खुद को इतना झौंक दिया कि उसने बाकी सभी चीजों की सुध छोड़ दी। बकौल कंचन सपने को पूरा करने के लिये दृढ़ संकल्प और उसे पूरा करने की रणनीति आपके पास होनी चाहिये। फिर धैर्य के साथ सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ते जाये सफलता आपके कदम जरुर चूमेगी। अपने लक्ष्य को पाने के लिये उस समय तक मेहनत करो और हार मत मानो जब तक कि आपको अपनी मंजिल मिल ना जाये. सफलता एक पड़ाव नहीं है। यह सफर है। इस पर जितना चलोगे उतने ही ज्यादा सफल होंगे।
सफल होने के लिये मां से सीखा 'हार्ड वर्क' का पाठ
कंचन ने अपनी प्राथमिक शिक्षा का सफर गुजराती माध्यम से वडोदरा से शुरू किया। उसके बाद कंचन ने 8वीं से लेकर 12वीं तक की शिक्षा हिंदी माध्यम से अपने गृह जिले सीकर से प्राप्त की. 12वीं तक पहुंचते-पहुंचते कंचन ने अपने लक्ष्य को उड़ान देना शुरू कर दिया। अपने सपनों को पूरा करने के लिये कंचन मिजोरम पहुंची और वहां एनआईटी मिजोरम से बीटेक की डिग्री प्राप्त कर लक्ष्य का अहम पड़ाव पूरा किया। साधारण राजपूत परिवार से ताल्लुक रखने वाली कंचन के पिता भंवर सिंह शेखावत पहले प्लास्टिक फैक्ट्ररी में ठेकेदारी करते थे. वर्तमान में अपने गांव में खेती बाड़ी का कार्य करते हैं. कंचन की मां चांद कंवर सीधीसाधी घरेलू महिला हैं, लेकिन वे मेहनती काफी हैं। कंचन ने मां चांद कंवर से मेहनत का पाठ पढ़ा।
हर अवसर में सीखने की आदत डालें, यह आपको सफल बनाती हैं
अपनी सफलता का श्रेय परिजनों और शिक्षकों को देने वाली कंचन मानती की उनकी प्रेरणा और सहयोग के बिना शायद यह संभव नहीं हो पाता। अमेरिका जैसे देश में इतने बड़े पैकेज पर पहुंचने के बाद भी अपनी कंचन जड़ों से नहीं कटी हैं। उनका कहना है कि जननी और जन्मभूमि की तुलना किसी से नहीं की जा सकती. ये अतुल्य हैं। उनका मान-सम्मान ही दुनियाभर में आपको ऊंचाइयां प्रदान करता है। कंचन कहती है अभी तक पंख फैलायें हैं उड़ान बाकी है। बकौल कंचन ये जॉब उनके लिये सीखने का अवसर है. अभी और आगे जाना है। हर अवसर में सीखने की आदत डालें। यह आपकी सफलता की निरंतरता के लिये जरुरी है।
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कंचन ने एनआईटी मिजोरम से बीटेक की डिग्री प्राप्त की है। |
पहले सपने देखने का साहस करो फिर से पूरा करने का प्रयास करो
यूएस बेस्ड सॉफ्टवेयर कंपनी अमेजॉन में सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत कंचन का वर्तमान में सालाना पैकेज 1.70 करोड़ रुपये का है. कंचन को इससे पहले भी कई बड़े ऑफर मिल चुके हैं। पूर्व में कंचन को 7 लाख से लेकर 40 लाख रुपये के ऑफर मिल चुके हैं। कंचन की खूबी यह है कि वह अपने हर कार्य और जॉब को पूरी शिद्दत से पूरा करती है। 'काम ही काम आता है' में विश्वास करने वाली कंचन की सफलता का यह सफर न केवल क्षत्रिय समाज बल्कि हर उस युवा के लिये प्रेरणा का स्त्रोत है जो अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं। कंचन विश्व के ख्यातनाम वैज्ञानिक एंव भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे कलाम के उस थीम में विश्वास करती है जिसके अनुसार 'अगर अगर आपको सफल होना है तो पहले सपने देखने का साहस करो और फिर उसे पूरा करने के लिये अपनी पूरी ताकत झौंक दो'